जगन्नाथ मिश्रा: खानदानी कांग्रेसी, अंत में बीजेपी के ऐसे आए करीब
पटना
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा का 82 साल की उम्र में सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया. वे काफी लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे. डॉ. जगन्नाथ मिश्रा बिहार की सियासत में दो दशक तक कद्दावर चेहरा बनकर रहे. मिश्रा को विरासत में सियासत मिली थी. उन्होंने अपने बड़े भाई ललित नारायण मिश्रा के नक्से पर चलते हुए कांग्रेस से अपनी सियासी सफर का आगाज किया, लेकिन वक्त के साथ वो बदलते गए और बिहार की सियासत में अपनी जगह भी खोते गए.
डॉ. जगन्नाथ मिश्रा का जन्म बिहार के सुपौल जिला के बलुआ बाजार में 1937 में हुआ था. जगन्नाथ मिश्रा लंबे समय तक कांग्रेस में रहे. वे खानदानी कांग्रेसी थे. उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्रा कांग्रेस के दिग्गज नेता और केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके हैं. जगन्नाथ मिश्रा अपने बड़े के भाई नक्शे कदम पर चलते हुए छात्र जीवन में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए थे. बिहार कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे मिश्र ने अपने बड़े भाई ललित नारायण मिश्र से राजनीति का ककहरा सीखा था.
जगन्नाथ मिश्रा ने शिक्षा पूरी करने के बाद प्रोफेसर के रूप में अपना करियर शुरू किया था और बाद में बिहार विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने. अकादमिक क्षेत्र में रहते हुए भी जगन्नाथ मिश्रा राजनीति में सक्रीय रहे. 3 जनवरी 1975 को समस्तीपुर बम-विस्फोट कांड में ललित नारायण मिश्रा की मृत्यु होने के बाद जगन्नाथ मिश्रा ने अपने बड़े भाई की सियासत को आगे बढ़ाया.
यही वो दौर था जब जगन्नाथ मिश्रा को प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और राजनीति के केंद्र में आ गए. वे तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. जगन्नाथ मिश्रा 1975 से 1977, 1980 से 1983 और 1989 से 1990 तक मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 1990 के दशक के मध्य में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रहे.
बिहार में डॉ. मिश्र का नाम बड़े नेताओं के तौर पर जाना जाता है. मिश्रा के बाद कांग्रेस का कोई भी नेता बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बन सका. मध्य 90 के दशक में कांग्रेस कमजोर होने लगी तो जगन्नाथ मिश्रा ने शरद पवार की पार्टी एनसीपी का दामन थाम लिया. हालांकि कांग्रेस में रहते हुए जो उनका राजनीतिक कद था, उसे वो चारा घोटाला में नाम आने के बाद दोबारा हासिल नहीं कर सके.
हालांकि जगन्नाथ मिश्रा अपने सियासी वर्चस्व को दोबारा से पाने के लिए कई राजनीतिक दांवपेच आजमाए, लेकिन वो किसी में कामयाब नहीं हो सके. एनसीपी के बाद उन्होंने जेडीयू का दामन थामा, लेकिन वहां पर भी अपनी जगह नहीं बना सके.
2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान बैकडोर से वह बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में एंट्री करना चाहते थे. इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बकायदा सियासी बिसात बिछाई. मांझी ने अपने 6 उम्मीदवारों के जो नाम बीजेपी को दिए थे, उसमें जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा का भी नाम शामिल था.
इसके बाद जगन्नाथ मिश्रा ने 'बिहार बढ़कर रहेगा' नाम की एक किताब लिखी. जिसके विमोचन में डिप्टी सीएम सुशील मोदी पहुंचे थे. इस तरह से उनकी बीजेपी से नजदीकियां बढ़ीं. यही वजह रही कि जब चारा घोटाले से जगन्नाथ मिश्रा बरी हुए तो आरजेडी ने कहा था कि बीजेपी की करीबी के वजह से उन्हें बरी किया गया है.
डॉ जगन्नाथ मिश्र ने 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी. इस दौरान मिश्र ने प्रधानमंत्री को 'मधुबनी-द आर्ट कैपिटल' पुस्तक की प्रति भेंट की थी. उन्होंने प्रधानमंत्री को बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र की सभ्यता, संस्कृति, वास्तुकला, चित्रकला और ऐतिहासिक-धार्मिक पर्यटन स्थलों के बारे में एक सहज-सुलभ जानकारी दुनिया के सामने लाने की बात कही थी.