नए वैश्विक टैक्स सिस्टम से सर्वाधिक प्रभावित होंगी अमेरिकी-चीनी कंपनियां

नए वैश्विक टैक्स सिस्टम से सर्वाधिक प्रभावित होंगी अमेरिकी-चीनी कंपनियां

तोक्यो
अगर प्रस्तावित वैश्विक न्यूनतम टैक्स (ग्लोबल मिनिमम टैक्स) व्यवस्था लागू हुई, तो उसका असर जिन कंपनियों पर होगा, उनमें सबसे ज्यादा अमेरिकी और चीनी कंपनियां होंगी। बताया गया है कि इस कर व्यवस्था के दायरे में वे कंपनियां आएंगी, जिनका सालाना मुनाफा 100 अरब डॉलर से ज्यादा का है। टोक्यो से चलने वाली वेबसाइट निक्कई एशिया के अनुसंधान में ऐसी 81 कंपनियों की पहचान की गई है। क्विक फैक्टसेट नामक आंकड़ाकोश से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर किए गए इस विश्लेषण के मुताबिक इन 81 कंपनियों की आमदनी और मुनाफा प्रस्तावित टैक्स सिस्टम में अपनाई जाने वाली कसौटी के अनुरूप है।

इनमें कम से कम 11 कंपनियां ऐसी हैं, जो चीन की मुख्य भूमि से संचालित होती हैं। उनमें टेन्सेंट होल्डिंग्स और अलीबाबा ग्रुप होल्डिंग शामिल हैं। उधर फेसबुक, फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल और माइक्रोसॉफ्ट समेत कुल 35 अमेरिकी कंपनियां इस दायरे में आएंगी। प्रस्ताव के मुताबिक ये टैक्स सिस्टम उन कंपनियों पर लागू होगा, जिनकी सालाना आमदनी 23.7 अरब डॉलर है और जिनका प्रॉफिट मार्जिन दस फीसदी से ज्यादा है। बैंकिंग, बीमा और रिसोर्स कंपनियों को इस टैक्स दायरे में शामिल नहीं किया जाएगा।

नई वैश्विक कर व्यवस्था का प्रस्ताव सबसे पहले डिजिटल कंपनियों के लिए आया था। लेकिन बाद में अमेरिका की मांग पर इसे 100 सबसे बड़ी कंपनियों पर लागू करने पर सहमति बनी, चाहे वे कंपनियां किसी क्षेत्र की हों। वैसे विशेषज्ञों का कहना है कि इस बारे में अभी बारीकियां तय नहीं हुई हैं। इसलिए संभव है कि आगे बातचीत के दौरान टैक्स लागू करने संबंधी कसौटियों में बदलाव हो। इस बारे में वार्ता अगले अक्तूबर तक पूरी करने का लक्ष्य रखा गया है।

चीन की जो कंपनियां इसके दायरे में आएंगी, उनमें लॉन्गफोर ग्रुप होल्डिंग्स और वेंके भी है। इसके अलावा हांगकांग से चलने वाली कई चीनी कंपनियां नई व्यवस्था से प्रभावित होंगी। उनमें चाइना ओवरसीज लैंड एंड इन्वेस्टमेंट और चाइना रिसोर्सेज लैंड भी शामिल हैं। निक्कई एशिया के मुताबिक जापान की कम से कम छह कंपनियां नई व्यवस्था से प्रभावित होंगी। उनमें केडीडीआई, सॉफ्टबैंक कॉर्प, एनटीटी, सोनी ग्रुप, टाकेदा फार्मास्यूटिकल और टोयोटा मोटर शामिल हैं।

जिन 81 कंपनियों की सूची अभी बनाई गई है, उनका सकल सालाना मुनाफा 410 अरब यूरो का है। धनी देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने कहा है कि नई व्यवस्था से 100 अरब डॉलर से अधिक का अतिरिक्त कर विभिन्न सरकारों के खजाने में हर साल आएगा। निक्कई के विश्लेषण के मुताबिक अभी आमदनी और मुनाफे की सीमा बहुत ऊपर रखी गई है। इससे ज्यादातर कंपनियों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। इसलिए मुमकिन है कि जब सात साल के बाद इस कर व्यवस्था की समीक्षा होगी, तब इस सीमा को घटाया जाए।

पर्यवेक्षकों के मुताबिक नई कर व्यवस्था लागू करने का विचार इसलिए आया, क्योंकि सरकारें बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से वाजिब टैक्स नहीं वसूल पा रही हैं। इन कंपनियों ने अपना कारोबार दुनियाभर में फैला लिया है। ये कंपनियां टैक्स बचाने के लिए अलग-अलग देशों की अलग टैक्स दरों का लाभ उठाती हैं। निक्कई एशिया के विश्लेषण के मुताबिक गूगल, एपल, फेसबुक और अमेजन ने 2018 में 15.4 फीसदी की दर से टैक्स चुकाया, जबकि टैक्स का वैश्विक औसत 25.1 फीसदी है। नई व्यवस्था में सभी देशों में कॉरपोरेट टैक्स की दरें न्यूनतम 15 फीसदी रखने का प्रस्ताव है।