बंदरगाहों पर अटका यूरिया

बंदरगाहों पर अटका यूरिया

नई दिल्ली

देश में अभी यूरिया की उतनी किल्लत तो नहीं है लेकिन राज्यों को समुचित आपूर्ति नहींं  हुई तो परेशानी हो सकती है। पिछले कुछ दिनों से देश के उत्तरी राज्यों के किसान यूरिया की कमी का सामना कर रहे हैं। हालांकि कुछ राज्यों में काफी हद तक स्थिति अब सामान्य हो गई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि यूरिया की किल्लत कभी भी पैदा हो सकती है। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि 16 लाख टन आयातित उर्वरक 24 दिसंबर तक ढुलाई के अभाव में जमा थे। इनमें 9 से 10 लाख टन यूरिया की मात्रा है। 
 
अगर समय रहते इनकी ढुलाई नहीं की गई तो बंदरगाहों पर उर्वरकों का अंबार लग सकता है, क्योंकि बाहर से नई खेप भी आ रही है। उद्योग जगत के अनुमानों के अनुसार करीब 45 लाख टन यूरिया खुदरा विक्रेताओं के पास पड़ा है। इनकी बिक्री किसानों को अब तक नहीं हो पाई है। रेल मंत्रालय और उर्वरक  एवं रसायन विभाग ने ढुलाई के लिए माल डिब्बों की कमी होने की बात से साफ इनकार किया। उन्होंने दावा किया कि उर्वरकों के परिवहन की राह में कोई समस्या आड़े नहीं आ रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पिछले साल के मुकाबले कैलेंडर वर्ष 2018 के दौरान उर्वरकों से लदे 472 अतिरिक्त माल डिब्बे रवाना किए गए हैं। एक बात तो स्पष्ट है कि कहीं न कहीं तालमेल का अभाव दिख रहा है। रेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले दो महीने में रेलवे ने यूरिया और कोयले की खेप पहुंचाने के लिए माल डिब्बों की उपलब्धता में कोई कमी नहीं होने दी है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'रेलवे की कहीं कोई गलती नहीं है। इसने समय पर खेप पहुंचाई है। इन राज्यों में असल समस्या वितरण स्तर पर है। उर्वरक एक आवश्यक जिंस है और इसका समय पर परिवहन जरूरी है। रेलवे ने समय रहते यूरिया के परिवहन में हमेशा सक्रियता दिखाई है।'
 
देश में करीब 2.4 करोड़ टन यूरिया का उत्पादन होता है और बाहर से सालाना 60 लाख टन यूरियाआयात होता है। इस पूरे मामले पर नजर रखने वाले एक सूत्र ने कहा कि रेलवे के माध्यम से उर्वरकों की ढुलाई में 2.4 प्रतिशत बढ़ोतरी देखी गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो 2017 में अप्रैल से नवंबर तक 3.36 करोड़ टन यूरिया की ढुलाई हुई थी, जबकि इसके मुकाबले इस साल आलोच्य अवधि में 3.44 करोड़ टन की ढुलाई हुई थी। एक दिलचस्प बात यह रही कि पिछले सप्ताह कोयला क्षेत्र के लिए माल डिब्बे की उपलब्धता प्रति दिन 461 के स्तर तक पहुंच गई। रेल मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि अतिरिक्त ढुलाई से पूरे देश में मांग की पूर्ति करने में मदद मिली है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'उर्वरक विभाग के अनुसार इस अवधि में पूरे देश में उर्वरक की कमी का कोई मामला नहीं दिखा है। अहम बात माल डिब्बों की समय रहते पर्याप्त आपूर्ति रही है।' 
 
देश में उर्वरक सत्र मोटे तौर पर खरीफ (अप्रैल-सितंबर) और रबी (अक्टूबर-नवंबर) सत्रों में बाटा गया है। मांग की समीक्षा के आधार पर उर्वरक विभाग सभी राज्यों की जरूरतें पूरी करने के लिए विभिन्न उर्वरक कंपनियों को माहवार आपूर्ति योजना जारी करती है। निर्देश के अनुसार सभी कंपनियां रेलवे को इसकी सूचना देती हैं और उसके बाद संबंधित संयंत्रों और बंदरगाहों तक उर्वरकों की ढुलाई होती है।