बिना कुलपति चल रहा DAVV विश्वविद्यालय, तीसरे दिन भी राजभवन से नहीं हुआ आदेश जारी
इंदौर
प्रदेश की आर्थिक राजधानी स्थित देवी अहिल्या विश्वविद्यालय का कामकाज अभी बिना कुलपति के ही चल रहा है। विश्वविद्यालय में धारा-52 लागू हो जाने के कारण बीते तीन दिनों से नालंदा परिसर की पहली मंजिल पर बने कुलपति कक्ष में कुलपति की कुर्सी सूनी है। विश्वविद्यालय में कुलपति ना होने की वजह से जरुरी प्रशासनिक कामकाज नहीं हो पा रहे हैं।
कुलपति की नियुक्ति में हो रही देरी के लिए प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने राजभवन को जिम्मेदार बताया है। सूत्रों की माने तो यदि किसी वजह से कुलपति की नियुक्ति में अधिक समय लगता है तो सामान्य कामकाज प्रभावित न हो इसलिए संभागायुक्त को कुलपति का प्रभार दिया जा सकता है।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय द्वारा बीते रविवार को आयोजित हुई सीईटी की परीक्षा में भारी गड़बड़ी पाई गई थी। इसके चलते करीब 1300 छात्रों की परीक्षा निरस्त करनी पड़ी। इसके बाद छात्रों एवं उनके अभिवावकों ने बड़ा हंगामा किया था। इस वजह से राज्य सरकार ने विवि के कुलपति नरेन्द्र धाकड़ को सोमवार को बर्खास्त कर विश्वविद्यालय में धारा-52 लागू कर दी गई गई थी। हालांकि कुलपति को बर्खास्त किए जाने के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि 24 जून अर्थात सोमवार तक यूनिवर्सिटी में प्रभारी कुलपति नियुक्त कर दिया जाएगा। लेकिन आज 3 दिन हो जाने के बाद भी ना तो स्थाई कुलपति और ना ही प्रभारी कुलपति का आदेश राजभवन से जारी किया गया है। आपको बता दें कि विश्वविद्यालय में तीसरी बार धारा-52 का उपयोग कर कुलपति को हटाया गया है।
आपको बता दें कि विवि में धारा 52 यह पहला मामला नहीं है। कुलपति को बर्खास्त कर धारा-52 लागू किए जाने का यह तीसरा मामला है। पहली बार डीएवीवी में इस धारा का उपयोग कर उमरावसिंह चौधरी को हटाया गया था। इसके बाद फरवरी 2003 में राज्य सरकार ने तत्कालीन कुलपति डॉ. भारत छापरवाल को धारा 52 लगाकर हटा दिया था। अब नरेन्द्र धाकड़ को इस धारा का उपयोग कर हटाया गया है।
विधानसभा चुनावो में प्रदेश सरकार में हुए फेरबदल के कारण अनेक शैक्षणिक संस्थानों में बड़े पदों पर बदलाव हुए हैं। राजधानी स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि एवं उज्जैन के विक्रम विवि जैसे संस्थानों सहित कई संस्थानों में बदलाव हो चुके हैं। इन दोनों ही संस्थानों में कुलपतियों ने अपना स्तीफा दिया था इस दौरान नए कुलपति की नियुक्ति किये जाने तक दोनों ही जगह कुलपति का प्रभार अन्य व्यक्ति को सौंपा गया था।
मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा-52 के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार होता है कि वह प्रदेश के किसी विश्वविद्यालय में अव्यवस्था, आर्थिक अनियमितता, भ्रष्ट्राचार, विश्वविद्यालय संचालन में लापरवाहीं आदि पाए जाने पर वह कुलपति को बर्खास्त कर सकती है।