झाबुआ जिले में कांग्रेस जीती, लेकिन भीतरघात ने भूरिया को हरा दिया

झाबुआ जिले में कांग्रेस जीती, लेकिन भीतरघात ने भूरिया को हरा दिया

झाबुआ
मध्य प्रदेश की आदिवासी बहुल जिले झाबुआ की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है, लेकिन प्रतिष्ठा वाली सीट कांग्रेस हार गई. इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया की साख दांव पर लगी हुई थी, लेकिन भूरिया अपने बेटे विक्रांत भूरिया को चुनाव नहीं जीता सके.

झाबुआ जिले में जनादेश कांग्रेस के पक्ष में गया है. पेटलावद और थांदला सीट भले ही कांग्रेस के खाते में गई, लेकिन यहां कांग्रेस के लिए नाक का सवाल माने जाने वाली झाबुआ सीट पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा. झाबुआ सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और सांसद कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया मैदान में थे. शुरूआत से ही विरोध झेल रहे विक्रांत भूरिया आखिर तक पार्टी के भीतर उठ रहे विरोध से पार नहीं पा सके और नतीजा चुनाव में हार. यहां से भाजपा के गुमान सिंह डामोर ने जीत दर्ज की है.

झाबुआ में विक्रांत भूरिया की हार का कारण बने कांग्रेस के बागी और पूर्व विधायक जेवियर मेड़ा. चुनाव नतीजों के आंकड़ों पर नजर डाले तो यह साफ हो जाता है कि झाबुआ में कांग्रेस की गुटबाजी और भीतरघात ने बीजेपी की जीत का रास्ता साफ कर दिया. झाबुआ सीट से भाजपा के गुमान सिंह ने 10437 वोट से जीत दर्ज की है. गुमान सिंह को 66598 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के विक्रांत भूरिया को 56161 वोट मिले. कांग्रेस के बागी और निर्दलीय जेवियर मेडा को 35943 वोट मिले.

कांग्रेस की हार का कारण भूरिया की ढीली होती जमीनी पकड़ भी है, तो जिले में उनका सियासी औरा भी कम हो रहा है. पिछले चुनाव में स्टार प्रचारक की भूमिका में प्रदेश भर में सभाएं करने वाले कांतिलाल भूरिया पुत्र मोह में ऐसा उलझे की झाबुआ सीट से ही बाहर नहीं निकल पाए. कांतिलाल भूरिया पिछले 40 साल से राजनीति में हैं और कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते हैं.

2013 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी जेवियर मेड़ा के सामने कांतिलाल भूरिया की भतीजी कलावती भूरिया ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जेवियर मेड़ा को जीत से रोका तो 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी भूरिया के सामने निर्दलीय चुनाव लड़कर जेवियर मेड़ा ने अपनी हार का बदला ले लिया. झाबुआ से बेटे की हार भूरिया के लिए शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि पूरे संसदीय क्षेत्र में सैलाना को छोड़कर इस बार टिकट वितरण को लेकर हर जगह कांतिलाल भूरिया का खासा विरोध रहा, जिसका असर 2019 के आम चुनाव में जरूर देखने को मिलेगा.