भगवान शिव के हैं कई रूप, जानें- किस रूप की क्या है महिमा

भगवान शिव के हैं कई रूप, जानें- किस रूप की क्या है महिमा

 
नई दिल्ली 

देवों के देव महादेव के जितने नाम हैं उतने ही उनके रूप भी हैं. भोलेनाथ के हर रूप की उपासना से नया वरदान मिलता है. भगवान शिव भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं. बस भक्त के मन की मधुर भावनाएं शिव को निहाल कर देती हैं और प्रसन्न होकर महादेव अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं. महादेव का हर रूप कल्याणकारी है. मान्यता है कि जिस पर शिव की कृपा हो जाती है उसे कोई बाधा नहीं सताती. भक्तों के लिए तो शिव का दरबार हमेशा ही खुला रहता है. ऐसे ही हैं देवों के देव महादेव. उनके हर स्वरूप की अलग ही महिमा है. आइए आपको बताते हैं महादेव के कुछ स्वरूप और उनके महत्व के बारे में...

शिव जी का पहला रूप 'महादेव'

मान्यता है कि सबसे पहले शिव जी ने ही अपने अंशों से तमाम देवताओं को जन्म दिया था. इसके साथ ही भगवान शिव ने अपने अंश से शक्ति को जन्म दिया. सभी देवी देवताओं के सृजनकर्ता होने से शिव को महादेव कहते हैं. महादेव रूप की उपासना से सभी देवी-देवताओं की पूजा का फल मिलता है. सोमवार को महादेव रूप की उपासना से हर ग्रह नियंत्रित रहता है.

शिव जी का दूसरा रूप 'आशुतोष'

- शिव जी अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव के बहुत जल्दी प्रसन्न होने के कारण उन्हें आशुतोष कहा जाता है. शिव के आशुतोष रूप की उपासना से तनाव दूर होता है. आशुतोष रूप की आराधना से मानसिक परेशानियां मिट जाती हैं. कहा जाता है कि सोमवार के दिन शिवलिंग पर इत्र और जल चढ़ाने से आशुतोष प्रसन्न होते हैं. आशुतोष स्वरूप की उपासना का मंत्र-  "ॐ आशुतोषाय नमः"

शिव जी का तीसरा रूप- 'रूद्र'

शिव में संहार की शक्ति होने से उनका एक नाम रूद्र भी है. उग्र रूप में शिव की उपासना "रूद्र" के रूप में की जाती है. संहार के बाद इंसान को रोने के लिए रूद्र मजबूर करते हैं. शिव जी का ये रूप इंसान को जीवन के सत्य से दर्शन कराता है. मान्यता है कि रूद्र रूप में शिव वैराग्य भाव जगाते हैं. सोमवार के दिन शिवलिंग पर कुश का जल चढ़ाकर रूद्र की पूजा होती है. रूद्र रुप की उपासना का मंत्र है- "ॐ नमो भगवते रुद्राय"


शिव जी का चौथा रूप - 'नीलकंठ'

कहा जाता है कि संसार की रक्षा के लिए शिव ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष पिया था. हलाहल विष पीने से शिव जी का कंठ नीला हो गया था. शिव जी के इस रूप को नीलकंठ कहा जाता है. नीलकंठ रूप की उपासना करने से शत्रु बाधा दूर होती है. नीलकंठ रूप की उपासना से साजिश और तंत्र मंत्र का असर नहीं होता है. सोमवार को शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाकर नीलकंठ की पूजा होती है. नीलकंठ रूप की उपासना का मंत्र है - "ॐ नमो नीलकंठाय"

शिव जी का पांचवां रूप- 'मृत्युंजय'

मान्यता है कि शिव के मृत्युंजय रूप की उपासना से मृत्यु को भी मात दी जा सकती है. मृत्युंजय रूप में शिव अमृत का कलश लेकर भक्तों की रक्षा करते हैं. इनकी आराधना से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है. मृत्युंजय की पूजा से आयु रक्षा और सेहत का लाभ मिलता है. शिव का यह रूप ग्रह बाधा से मुक्ति दिलाता है. सोमवार को शिव लिंग पर बेल पत्र और जलधारा अर्पित करें. मृत्युंजय स्वरूप का मंत्र है - "ॐ हौं जूं सः"