8 साल में 1.11 करोड़ बच्चे नहीं मना पाए अपना 5वां जन्मदिन, जिम्मेदार कौन?

नई दिल्ली
बिहार में लू और चमकी बुखार से मौतें हो रही हैं. 135 बच्चों की मौत हो चुकी है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने स्वास्थ्य प्रणाली में कमियों के कारण हो रही मौतों पर संज्ञान लिया है. इसको लेकर आयोग ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार को नोटिस जारी किया है. साथ ही चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी गई है. लेकिन उन करोड़ों बच्चों का क्या जो अपना पांचवां जन्मदिन भी नहीं मना पाए. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
वर्ष 2008 से 2015 के बीच भारत में 1.11 करोड़ बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन नहीं मना पाए. चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इनमें से 62.40 लाख बच्चे जन्म के पहले महीने (जन्म के 28 दिन के भीतर) में ही दुनिया छोड़कर चले गए. यानी बच्चों की कुल मौतों में से 56% बच्चों की मौत नवजात अवस्था में ही हो गई. ये जानकारी भारत सरकार के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (SRS) से मिली है.
बढ़ गई है नवजात बच्चों की मृत्यु की दर
वर्ष 2008 में देश में पांच साल से कम के 50.9 फीसदी बच्चों की मौत हुई थी. यह 2015 में बढ़कर 58.1 फीसदी हो गया था. वर्ष 2015 में हर घंटे 74 नवजात शिशुओं का दिल काम करना बंद कर रहा था. जबकि, 2008 से 2015 के बीच हर घंटे औसतन 89 नवजात शिशुओं की मृत्यु होती रही है.
2008 से 2015 तक किस राज्य में कितने नवजात की मौत
देश के चार राज्यों (उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान) में देश की कुल नवजात मौतों की संख्या में से 56 प्रतिशत मौतें दर्ज होती हैं.
उत्तर प्रदेश - 16.84 लाख
बिहार - 6.64 लाख
मध्यप्रदेश - 6.18 लाख
राजस्थान - 5.12 लाख
आंध्र प्रदेश - 3.35 लाख
गुजरात - 2.95 लाख
महाराष्ट्र - 2.92 लाख
झारखंड - 1.70 लाख
91 लाख बच्चे तो पहला जन्मदिन भी नहीं देख पाए
2008 से 2015 के दौरान देश में 91 लाख बच्चे पहला जन्मदिन ही नहीं मना पाए. इस अवधि में शिशु मृत्यु दर 53 से घट कर 37 पर आई है. लेकिन वर्ष 2015 में ही 9.57 लाख बच्चों की मृत्यु हुई थी. भारत के चार राज्यों - उत्तरप्रदेश (24.37 लाख), बिहार (10.3 लाख), मध्यप्रदेश (8.94 लाख) और राजस्थान (7.31 लाख) में सबसे ज्यादा संकट की स्थिति है. हालांकि, आंध्रप्रदेश (5.11 लाख), गुजरात (4.13 लाख), महाराष्ट्र (3.96 लाख) और प. बंगाल (3.68 लाख) की स्थिति भी दर्दनाक है.
समय से पहले जन्म लेने के कारण होने वाली जटिलताएं - 43.7 प्रतिशत
निमोनिया, सेप्सिस और अतिसार यानी संक्रमण के कारण- 20.8 प्रतिशत
विलंबित और जटिल प्रसव के कारण - 19.2 प्रतिशत
जन्मजात असामान्यताओं के कारण - 8.1 प्रतिशत
SRS के मुताबिक भारत में शिशुओं की मौत का कारण
समय पूर्व जन्म लेना और जन्म के समय बच्चों का वज़न कम होना - 35.9 प्रतिशत
निमोनिया - 16.9 प्रतिशत
जन्म एस्फिक्सिया/जन्म आघात - 9.9 प्रतिशत
अन्य गैर संचारी बीमारियां - 7.9 प्रतिशतडायरिया रोग - 6.7 प्रतिशत
जन्मजात विसंगतियां - 4.6 प्रतिशत
संक्रमण - 4.2 प्रतिशत
देश में कम लोग कराते हैं मृत्यु का पंजीयन
देश में अब भी शिशु मृत्यु की पंजीकृत संख्या और अनुमानित संख्या में बड़ा अंतर दिखता है. क्योंकि स्वास्थ्य व शासन व्यवस्था के बीच समन्वय नहीं है. मृत्यु का पंजीयन कम होता है. एसआरएस की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में भारत में 76.6% मृत्युओं का ही पंजीयन हुआ. बिहार में मृत्यु के 31.9%, मध्यप्रदेश में 53.8%, उत्तरप्रदेश में 44.2%, और प. बंगाल में 73.5% पंजीयन हुए.