पंडितों व ज्योतिषियों के मुताबिक यह खंडग्रास व साल का पहला सूर्य ग्रहण होगा, जोकि कंकणाकृति खंड ग्रास सूर्य ग्रहण मृगशिरा एवं आद्रा नक्षत्र में रहेगा। सूर्य ग्रहण का ज्यादा असर मिथुन राशि के जातकों पर पड़ेगा।

ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि इस बार सूर्य ग्रहण मृगशिरा व आद्रा नक्षत्र और मिथुन राशि पर पड़ रहा है। इस कारण मिथुन राशि वालों को यह ग्रहण विशेष कष्टदायक होगा। वहीं शासन-प्रशासन पर यह ग्रहण शुभ नहीं है, क्योंकि सूर्य प्रशासन का प्रतिनिधि माना जाता है। जब-जब सूर्य एवं चंद्र ग्रहण पड़ते हैं तो उनका दीर्घकालीन प्रभाव विसर्ग राजनीति पर भी दिखता है। ग्रहण के समय 6 ग्रह बुध, शुक्र, गुरु, शनि, राहु, केतु वक्री रहेंगे। मिथुन राशि पर सूर्य बुध, राहु, चंद्र की युक्ति रहेगी जो कि अशुभ मानी जाती है।
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दो चंद्रग्रहण के बीच सूर्य ग्रहण
पंडितों व ज्योतिषियों के अनुसार इससे पहले चूड़ामणि सूर्य ग्रहण का महायोग 870 साल पहले आया था। इस ग्रहण के 15 दिन पहले चंद्रग्रहण पड़ा था और 15 दिन बाद फिर चंद्र ग्रहण पड़ेगा। इन दोनों ग्रहणों के बीच सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। इस साल 2020 की सबसे बड़ी खगोलीय घटना 21 जून को होने जा रही है। 21 जुलाई 2009 के बाद 21 जून को सबसे अधिक समय तक लगभग साढ़े तीन घंटे तक सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा। ग्रहण के दौरान सूर्य का लगभग 88 प्रतिशत भाग चंद्रमा द्वारा ढंक लिया जाएगा।
चूड़ामणि योग
रविवार को खग्रास सूर्यग्रहण हो रहा है, जो पूरे भारत में दिखाई देगा। जब रविवार को सूर्यग्रहण होता है, तब चूड़ामणि योग बनता है। अर्थात सोमवार को चंद्रग्रहण और रविवार को सूर्यग्रहण होने से चूड़ामणि योग बनता है, जो दान-पुण्य और जप के लिए अनंत गुना पुण्य फल प्रदान करता है।
ग्रहण का समय
ग्रहण का प्रारंभ - सुबह 10.33 से
ग्रहण का मध्यकाल - दोपहर 12.11 तक
ग्रहण का मोक्ष - दोपहर 2.04 बजे
21 मई 2034 को लगेगा वलयाकार सूर्य ग्रहण
जानकारों के मुताबिक इस तरह का वलयाकार सूर्य ग्रहण 21 अगस्त 1933 को लगा था। 21 जून के बाद यह 21 मई 2034 को लगेगा। ज्योतिर्विद् पं. आनंद शंकर व्यास के अनुसार इसके फल के रूप में कहीं-कहीं वर्षा, कहीं रोग-भय के अलावा अन्ना का लाभ भी बताया गया है। यह ग्रहण मृगशिरा नक्षत्र, मिथुन राशि पर हो रहा है। सूर्य व राहु मृगशिरा नक्षत्र में रहेंगे। मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी मंगल है। मंगल मीन राशि में शनि की दृष्टि में है।
खास बातें
- ग्रहण के सूतक एवं ग्रहणकाल में स्नान, दान, जप-पाठ, मंत्र स्रोत पाठ, मंत्र सिद्घि, ध्यान, हवनादि, शुभ कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होता है।
- झूठ, कपटादि, बेकार की बातें, मल-मूत्र त्याग, नाखून काटने से बचें
- वृद्घ, रोगी, बालक एवं गर्भवती को भोजन, दवाई लेने में कोई दोष नहीं होता है।
- धार्मिक ग्रंथ का पाठ करते हुए प्रसन्न रहें।
- दूध,दही, अचार, चटनी, मुरब्बा में तुलसी का पत्ता, कुश रखें।
प्राकृतिक आपदा की संभावना
ग्रहण के अशुभ प्रभाव से कीटाणुयुक्त महामारी फैलने, अतिवृष्टि, ओला, बाढ़, तूफान, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं की संभावना है।
900 साल बाद लगने जा रहा है यह दुर्लभ ग्रहण
21 जून का सूर्य ग्रहण बहुत दुर्लभ बताया जा रहा है। जिस तरह का यह ग्रहण है वैसा 900 साल बाद घटित होगा। ग्रहण के दौरान सूर्य वलयाकार की स्थिति में केवल 30 सेकंड की अवधि तक ही रहेगा। इसके चलते सौर वैज्ञानिक इसे दुर्लभ बता रहे हैं। ग्रहण के दौरान सूर्य किसी छल्ले की भांति नजर आएगा। उत्तराखंड के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के सीनियर सांइटिस्ट व पूर्व निदेशक डॉ. वहाबउद्दीन का कहना है कि ग्रहण तो एक अद्भुत संयोग है। इस बार के सूर्यग्रहण में जो स्थिति बनने जा रही है, उसी ने इसे दुर्लभ ग्रहणों में शामिल किया है।
गर्भवती महिलाएं रखें इन बातों का ध्यान
ग्रहण काल में ग्रहण को न देखें।घर से बाहर न निकलें।सिलाई, कढ़ाई एवं काटने-छीलने जैसे कार्यों को न करें।सुई व चाकू का प्रयोग न करें। ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के समय चाकू और सुई का उपयोग करने से गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों को क्षति पहुंचाती है। हमारी पृथ्वी पर सूर्यादि ग्रहों का सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव सदैव से ही रहा है। सूर्यादि ग्रह नक्षत्रों पर घटने वाली घटनाओं से हमारी पृथ्वी अछूती नहीं रह सकती है। पृथ्वी पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव से मानव जीवन सदैव ही प्रभावित होता रहता है। यह बात किसी से छुपी नही है।
पौराणिक महत्व
मत्स्यपुराण के अनुसार राहु (स्वरभानु) नामक दैत्य द्वारा देवताओं की पंक्ति मे छुपकर अमृत पीने की घटना को सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया और देवताओं व जगत के कल्याण हेतु भगवान सूर्य ने इस बात को श्री हरि विण्णु जी को बता दिया। जिससे भगवान उसके इस अन्याय पूर्ण कृत से उसे मृत्यु दण्ड देने हेतु सुदर्शन चक्र से वार कर दिया। परिणामतः उसका सिर और धड़ अलग हो गए। जिसमें सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना गया। क्योंकि छल द्वारा उसके अमृत पीने से वह मरा नहीं और अपने प्रतिशोध का बदला लेने हेतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रसता हैं, जिसे हम सूर्य या चंद्र ग्रहण कहते हैं।
आपदाएं और ग्रहण
भारतीय ज्यातिष की मेदिनी सिद्धांत अनुसार जब कभी एक पक्ष अर्थात १५ दिन में दो ग्रहण पड़ते हैं तो उसके ६ मास के भीतर भूकम्प आते हैं।सिद्धांत अनुसार जब कभी शनि का संबंध बुध या मंगल से अथवा पृथ्वी तत्व राशियों (वृष, कन्या व मकर) के स्वामियों से हो तो भूकंप की संभावना बढ़ जाती है।सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण व चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा की कुंडली में सूर्यदेव अष्टमेश से पीड़ित हों। मंगल या बुध व शनि का आपस में संबंध हो या बुध व शनि या मंगल व शनि का संबंध लग्न, लग्नेश, अष्टम भाव या अष्टमेश से होता है।बुध वक्री या सूर्य से कम अंश का होता है या अस्त होता हो तो भूकंप की संभवना बढ़ जाती है।राहु व केतु के मध्य चार या अधिक ग्रह अशुभ स्वामियों के नक्षत्र पर होते हों गुरु-मंगल या गुरु-बुध का युति या दृष्टि संबंध होता हो तो भूकंप की संभवना बढ़ जाती है।
ध्यान रखने योग्य बातें
नहाना ग्रहण के बाद चाहिए
यह भारतीय मान्यता है कि ग्रहण के पहले या बाद में राहु वा केतु का दुष्प्रभाव रहता है जो नहाने के बाद ही जाता है। इस मान्यता के पीछे भी एक विज्ञान है। सूर्य के अपर्याप्त रोशनी के कारण जीवाणु या कीटाणु ज्यादा पनपने लगते हैं जिसके कारण इंफेक्शन होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। इसलिए ग्रहण के बाद नहाने से शरीर से अवांछित टॉक्सिन्स निकल जाते हैं और बीमार पड़ने के संभावना को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है।
ग्रहण के दौरान उपवास
ग्रहण प्रेरित गुरुत्वाकर्षण के लहरों के कारण ओजोन के परत पर प्रभाव पड़ने और ब्रह्मांडीय विकिरण दोनों के कारण पृथ्वीवासी पर कुप्रभाव पड़ता है। इसके कारण ग्रहण के समय जैव चुंबकीय प्रभाव बहुत सुदृढ़ होता है जिसके प्रभाव स्वरूप पेट संबंधी गड़बड़ होने की ज्यादा आशंका रहती है। इसलिए शरीर में किसी भी प्रकार के रासायनिक प्रभाव से बचने के लिए उपवास करने की सलाह दी जाती है।
वैदिक व पौराणिक ग्रथों में ग्रहण के संदर्भ में कहा गया है कि ग्रहण काल मे सौभाग्यवती स्त्रियों को सिर के नीचे से ही स्नान करना चाहिए, अर्थात् उन्हें अपने बालों को नहीं खोलना चाहिए। उन्हे जल स्रोतों से बाहर स्नान करना चाहिए। सूतक व ग्रहण काल में देवमूर्ति को स्पर्श कतई नहीं करना चाहिए। ग्रहण काल में भोजन करना, अर्थात् अन्न, जल को ग्रहण नहीं करना चाहिए। सोना, सहवास करना, तेल लगाना तथा बेकार की बातें नहीं करना चाहिए। बच्चे, बूढे, रोगी एवं गर्भवती स्त्रियों को आवश्यकता के अनुसार खाने-पीने या दवाई लेने में दोष नहीं होता है।
सावधानी-गर्भवती महिलाओं को होने वाली संतान व स्व के हित को देखते हुए यह संयम व सावधानी रखना जरूरी होता है कि, वह ग्रहण के समय में नोकदार जैसे सुई व धारदार जैसे चाकू आदि वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस समय उन्हें प्रसन्नता से रहते हुए भगवान के चरित्र को स्मरण करना चाहिए।