आदि उत्सव का समापन नहीं वरन पुनः भव्य आयोजन तक अल्प विराम है - फग्गन सिंह कुलस्ते
आदि उत्सव का समापन नहीं वरन पुनः भव्य आयोजन तक अल्प विराम है - फग्गन सिंह कुलस्ते
संगोष्ठी एवं लोकनृत्यों से सजा दूसरा दिन, विशिष्ट अतिथियों की रही गरिमामय उपस्थिति
मंडला - ऐतिहासिक रामनगर में प्रतिवर्ष आयोजित हो रहे जनजातीय महापर्व आदि उत्सव का 8 मई को भव्य रूप से समापन हुआ। आदि उत्सव के दूसरे दिन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केन्द्रीय इस्पात एवं राज्यमंत्री श्री कुलस्ते ने कहा कि पाँचवे आदि उत्सव का आज समापन नहीं हो रहा है बल्कि अगले और बड़े आयोजन तक का अल्प विराम है। उन्होंने कहा कि आदि उत्सव का आने वाले वर्षों में बड़े स्तर पर आयोजन करेंगे। श्री कुलस्ते ने कहा कि इसी वादे के साथ थोड़े समय के लिए विराम ले रहे हैं। हम सब जानते हैं कि भाषा, बोली और पोशाक भले ही अलग-अलग हो लेकिन जनजाति समाज एक है। राष्ट्र के प्रति जनजाति समाज का समर्पण को कोई नहीं भुला सकता है। स्वाधीनता आंदोलन में जनजाति समाज के योद्धाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। केन्द्रीय मंत्री ने सिवनी में हुई घटना के प्रति मंच से संवेदना भी व्यक्त की। उन्होंने केन्द्र सरकार द्वारा जनजाति कल्याण के लिए किए जा रहे कल्याणकारी कार्यों की जानकारी देते हुए सरकार को संकल्प की जानकारी भी दी।
श्री कुलस्ते ने कहा कि आज जब भारत वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तब हम उन वीरों और वीरांगनाओं का स्मरण करते हैं, उन्हें प्रणाम करते हैं। जनजातीय समाज में अनेक वीर योद्धा हुए जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास बदल दिया। राज्य की सीमाओं से परे देशभूमि उनके लिए थी, इसलिए समूचा जनजातीय समाज गौरव के साथ भगवान माने गए बिरसा मुंडा, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, टंट्या भील, खाज्या नायक, भीमा नायक, रघुनाथसिंह मंडलोई जैसे अनेक वीर नायक हुए तो टुरिया शहीद मुड्डे बाई और रानी दुर्गावती ने अपने पराक्रम से भारत वर्ष का नाम ऊंचा किया है। इन नामों के साथ-साथ और भी कई जननायकों के नाम ऐसे हैं जिन्हें हम भारतवासी प्रणाम करते हैं।
केन्द्री मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि देश की आजादी के लिए संघर्ष में देशभक्ति की गाथा लिखने वाले लोगों का स्मरण करते हुए हम जनजातीय समाज की परंपरा संस्कृति बोली भाषा गोंड राजाओं के इतिहास से आज की पीढ़ी को परिचय कराने के लिए आदि उत्सव का आयोजन करते हैं। यह उत्सव एक औपचारिक उत्सव नहीं है बल्कि यह आदिम संस्कृति, साहित्य, परम्परा से देश-समाज को परिचय कराने का एक विनम्र आयोजन है। उन्होंने कहा कि आदि उत्सव में सभी अतिथि जनजाति समाज के प्रतिनिधि सहित प्रदेश भर से आए नागरिकजनों ने उपस्थित होकर हमारे प्रयासों को सराहा है और आने वाले समय में आदि उत्सव को बेहतर तरीके से आयोजित करने के लिए हौसला दिया है। श्री कुलस्ते ने कहा कि 2015 से आरंभ किया गया ‘आदि उत्सव’ आहिस्ता-आहिस्ता उड़ान भर रहा है। बीच में कोविड महामारी में ‘आदि उत्सव’ कुछ समय के लिए स्थगित रहा लेकिन अब पूरे उत्साह के साथ ‘आदि उत्सव का दो दिवसीय भव्य आयोजन किया गया और यह निरंतर किया जाएगा।
अतिथियों का किया गया पारंपरिक स्वागत -
आदि उत्सव के दूसरे दिन जनजातीय कार्य राज्यमंत्री रेणुका सिंह, उप मुख्यमंत्री त्रिपुरा जिष्णु देवशर्मा, सदस्य राष्ट्रीय जनजातीय आयोग अनंतनायक, विधायक सिहोरा नंदनी मरावी, विधायक कुशीनगर उत्तरप्रदेश विनयप्रकाश गौंड़, पूर्व विधायक डिंडौरी दुलीचंद कुरैती, महापौर रांची आशा लाकरा, अखिल भारतीय गौंड़ आदिवासी संघ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अरूणा सिंह, प्रो. आर.डी. कॉलेज डॉ. उर्मिला खरपूसे, जिला पंचायत उपाध्यक्ष शैलेष मिश्रा, सांसद प्रतिनिधि जयदत्त झा, जनप्रतिनिधि, जनजातीय प्रतिनिधि, लोक कलाकारों का पारंपरिक रूप से स्वागत किया गया। इस दौरान विशिष्ट अतिथियों के अलावा जनजातीय समुदाय एवं बड़ी संख्या में आमजन उपस्थित रहे।
जनजातीय जीवन पर संगोष्ठी आयोजित -
आदि उत्सव के दूसरे दिन 8 मई को जनजातीय शोध, कला, संस्कृति, इतिहास तथा जनजातीय जीवन के वृहद पहलुओं पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में विद्वानों द्वारा जनजातीय जीवन कला संस्कृति, मान्यताओं, ऐतिहासिकता एवं अन्य बिन्दुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। इसी प्रकार विभिन्न राज्यों से आए जनजातीय लोक कलाकारों की आकर्षक प्रस्तुति हुई जिसमें जनजातीय वाद्ययंत्र एवं लोकनृत्वों ने उपस्थित लोगों का मन मोहा। कार्यक्रम का समापन सभी राज्यों से आए जनजातीय लोक संस्कृति के कलाकारों की सामूहिक प्रस्तुति के साथ हुआ।