Navratri special: बुद्धि और कला की अधिष्ठात्री देवी शारदा, जानिए मैहर स्थित इस शक्तिपीठ के बारे में
सतना, मध्यप्रदेश के सतना जिले में त्रिकूट पर्वत (trikuta mountain) पर देवी शारदा (Goddess Sharda) का एक अति प्राचीन मंदिर हैं। इस मंदिर से चमत्कार के कई किस्से जुड़े हैं। देवी शारदा का यह मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों (shaktipeeths) में भी शामिल हैं। पौराणिक मान्यता (mythological belief) है कि जब देवी सती (goddess sati) को अपने कंधे पर लेकर भगवान शिव शोक में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रहे थे, तब देवी सती का हार इसी पहाड़ी पर गिरा था। देवी सती का हार (necklace of goddess sati) यहां गिरने की वजह से ही इस स्थान का नाम माई का हार यानि मैहर पड़ा।
बुद्धि और कला की अधिष्ठात्री देवी (goddess of wisdom and art)
सनातन परंपरा (Sanatan Tradition) में मां शारदा को विद्या, बुद्धि और कला की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है. परीक्षा-प्रतियोगिता की तैयारी में जुटे छात्र मां शारदा का विशेष आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में यहां पर पहुंचते हैं. मां शारदा की सच्चे मन से पूजा करने वाले साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती. मां शारदा की कृपा से वह हमेशा तमाम प्रकार के भय, रोग आदि तमाम प्रकार की व्याधियों से भी बचा रहता है.
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साल भर लगा रहता है भक्तों का तांता
साल भर इस शक्तिपीठ में भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां लाखों की संख्या में भक्त मां शारदा के दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर में नवरात्र के दिनों में पैर रखने की भी जगह नहीं होती। भक्त माता की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर तक कतार लगाए दर्शन की आस में खड़े रहते हैं।
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आल्हा- ऊदल करते हैं देवी शारदा की सबसे पहली पूजा (alha-udal)
मैहर के शारदा मंदिर (Sharda Temple of Maihar) से चमत्कार के कई किस्से जुड़े हैं। उन्हीं में से एक किस्सा है देवी की सबसे पहली पूजा का। कहा जाता है कि मंदिर में देवी शारदा की सबसे पहली पूजा पुजारी नहीं बल्कि उनके अनन्य भक्त "आल्हा- ऊदल" करते हैं। हर दिन रात में मंदिर की आखिरी आरती के बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं लेकिन हर सुबह जब मंदिर को खोला जाता है तो देवी मां की प्रतिमा पर ताजे फूल चढ़े हुए मिलते हैं। आज तक किसी ने भी मंदिर में किसी को आते-जाते नहीं देखा, सारे दरवाजे बंद होने के बाद भी नियमित तौर पर मंदिर में देवी मां की पूजा करने के प्रमाण मिलते हैं। कई बार इस रहस्य को जानने की कोशिश भी की गई, लेकिन इसके राज से आज तक कोई पर्दा नहीं उठा सका।
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आल्हा और ऊदल ने की थी मंदिर की खोज
सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित करीब 600 फीट ऊंची पहाड़ी पर मंदिर यह स्थित है। मंदिर की गिनती देश के 52 शक्तिपीठों में होती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 1063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर की खोज आल्हा और ऊदल दोनों भाइयों ने मिलकर की थी। मंदिर के चारो और जंगल था। इसी जंगल के बीच आल्हा ने 12 वर्षों तक माता शारदा की तपस्या की थी वह देवी को शारदा माई कहकर पुकारा करते थे मंदिर के नाम के पीछे कुछ लोगों का मानना है कि इसलिए उनका नाम माई की वजह से मैहर पड़ा है। मंदिर से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि यहां सर्वप्रथम आदिगुरू शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी।
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अपनी जीभ काटकर मां को चढ़ा दी थी
यह भी कहा जाता है कि आल्हा और ऊदल ने देवी मां को प्रसन्न करने के लिए अपनी जीभ काटकर उन्हें अर्पित कर दी थी। तब मां ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी जीभ फिर से जोड़ दी थी। इस मंदिर में मां के दर्शन करने के लिए 1001 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों से यहां रोपवे सुविधा भी शुरू हो चुकी है और तकरीबन 150 रुपये में भक्त इस सुविधा का उपयोग कर सकते हैं।
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क्या है मंदिर से जुड़ी कहानी
-माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती (Sati, daughter of Daksha Prajapati) शिव से विवाह करना चाहती थी। उनकी यह इच्छा राजा दक्ष (king daksh) को मंजूर नहीं थी।
-वे शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। फिर भी सती ने अपनी जिद पर भगवान शिव से विवाह कर लिया।
-एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया।
-शंकर जी की पत्नी (wife of shankar ji) और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुईं।
-यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे।
-इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
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सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित किया
-भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला, तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया।
-उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे।
-ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ।
-अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया।
सर्वप्रथम आदि गुरु शंकराचार्य ने पूजा-अर्चना की थी
इसके अलावा, ये भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी।
-शारदा देवी का मंदिर सिर्फ आस्था और धर्म के नजरिये से खास नहीं है। इस मंदिर का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है।
-माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएंगे।
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-दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए कनिंग्घम (A. Cunningham) ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है।
-इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव (Brajnath Judeo) ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।
इस मंदिर को लेकर लोगों का मनना है की यदि मंदिर में कोई व्यक्ति रात के समय रूकने की कोशिश करता है, तो वह अगली सुबह नहीं देख पाता है।
इस मंदिर में माता शारदा की पूजा की मुख्य पूजा की जाती है लेकिन इनके साथ-साथ देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, श्री काल भैरवी, भगवान, फूलमति माता, ब्रह्म देव, हनुमान जी और जलापा देवी की भी पूजा होती है।