श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद: हाईकोर्ट हुआ सख्त, 4 महीने में सभी अर्जियों का निपटारा करने के निर्देश 

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद: हाईकोर्ट हुआ सख्त, 4 महीने में सभी अर्जियों का निपटारा करने के निर्देश 

4 महीने में सभी अर्जियों का निपटारा करने के निर्देश 

rahul pandey

प्रयागराज, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की अदालत को निर्देश देते हुए मूल वाद से जुड़े सभी प्रार्थना पत्रों को जल्द से जल्द निपटाने को कहा है। कोर्ट ने अधिकतम 4 महीने में सभी अर्जियों का निपटारा करने के निर्देश दिए हैं। हाई कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य पक्षकारों के सुनवाई में शामिल ना होने पर एकपक्षीय आदेश जारी करने का निर्देश दिया है। इस मामले में जस्टिस सलिल कुमार राय की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान के वाद मित्र मनीष यादव की अर्जी पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

मुकदमों की सुनवाई जल्द से जल्द पूरा करने अर्जी दाखिल की गई थी
मथुरा की अदालत में जन्मभूमि विवाद से जुड़े सभी मुकदमों की सुनवाई जल्द से जल्द पूरा करने और उनका निस्तारण किए जाने की मांग को लेकर अर्जी दाखिल की गई थी। मथुरा की अदालत में चल रहे सभी मुकदमों को क्लब कर एक साथ सुनवाई किए जाने की भी मांग की गई थी। मथुरा की एक अदालत में श्री कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई है।

2020 को मस्जिद को हटाने वाली याचिका खारिज कर दी थी
पिछले सप्ताह मथुरा की एक जिला अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। जिला न्यायाधीश राजीव भारती 19 मई को अपना निर्णय सुनाएंगे कि यह मामला सुनने योग्य है अथवा नहीं। श्रीकृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग बहुत पुरानी है। कोर्ट ने साल 2020 को मस्जिद को हटाने वाली याचिका खारिज कर दी थी।

1969 में हुआ समझौता हुआ था, वह अवैध था
उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री सहित छह अन्य कृष्णभक्तों ने विराजमान ठाकुर को वादी बनाते हुए उनकी ओर से मथुरा के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में सितम्बर’ 2020 में यह दावा किया था कि वर्ष 1969 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा समिति एवं शाही ईदगाह इंतजामिया कमेटी के बीच जो समझौता हुआ था, वह पूरी तरह से अवैध था, क्योंकि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा समिति को इस प्रकार का कोई भी करार करने का कानूनी हक ही नहीं था।