विधानसभा पन्ना: कौन हासिल करेगा नाराज मतदाताओं का विश्वास?

विधानसभा पन्ना: कौन हासिल करेगा नाराज मतदाताओं का विश्वास?
कुल मतदाता- 2,24,471 पोलिंग बूथ- 290 nadeem khan पन्ना। जिला मुख्यालय में वैसे तो तीन विधानसभा सीट हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला पन्ना विधानसभा में ही देखने को मिलता है। पिछले विधानसभा चुनाव में यहां सभी समीकरणों के उलट भाजपा प्रत्याशी कुसुम सिंह महदेले ने रिकार्ड वोटों से जीत दर्ज की थी। उनके जीत के अंतर के मुकाबले किसी प्रत्याशी को वोट तक नहीं मिल सके थे। जबकि वर्ष 2008 में हुए चुनाव में यहां भाजपा की कद्दव नेत्री को कांग्रेस के श्रीकांत दुबे ने 42 वोटों से कांटे के मुकाबले में हरा कर सीट पर कब्जा जमाया था। लेकिन कांग्रेस की गुटबाजी के चलते इस बार श्रीकांत दुबे का ही टिकट काट दिया गया। जिसके चलते 2013 में कांग्रेस ने न सिर्फ सीट गंवाई, बल्कि कांग्रेस को बसपा प्रत्याशी से भी कम वोट मिले और कांग्रेस की मीना यादव तीसरे स्थान पर रहीं, यहां तक कि पहली बार इस विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत तक जप्त हो गई। कांग्रेस के टिकट बटवारे से नाराज लोगों ने चुनाव में एकतरफा वोट किये और भाजपा को यहां एतिहासिक जीत मिली। इस चुनाव में न तो कोई मुद्दा था और न ही कोई जाति समीकरण काम आया। विधानसभा क्षेत्र के लोगों ने राजनेताओं के सभी समीकरणों के उलट अपना फैसला सुनाया था। जिससे इस बार पन्ना विधानसभा में जाति के आधार पर टिकट पाने वालों के लिये बडी चुनौती खडी हो गई। जिले में हुए दो चुनाव में कोई मुद्दा चुनाव में हावी नहीं था। वैसे तो क्षेत्र में ढेरों समस्याएं हैं, लेकिन चुनाव के समय प्रत्याशी की छवि पर ही अधिक ध्यान दिया गया और उसी के आधार पर ही मतदान हुआ। [caption id="attachment_6" align="aligncenter" width="353"] bhavtarini[/caption] विधानसभा का जातिय समीकरण गौरतलब है कि पन्ना विधानसभा को ब्राम्हण बहुल कहा जाता है। यहां यादव और लोधी जाति के लोगों का भी खासा प्रभाव है। इसके अलावा सर्ववैष्य समाज, मुस्लिम और दलित वोट चुनाव में निर्णयक भूमिका निभाते है। सभी पार्टियों का ध्यान भी इन्हीं जातियों को सधने में रहता है। वर्ष 2013 के चुनाव में जहां कांग्रेस ने अपने ब्राम्हण प्रत्याशी की टिकट काट कर भाजपा में जा रहे यादव वोटों को साधने का प्रयास किया और मीना यादव को प्रत्याशी बनाया। वहीं भाजपा ने क्षेत्र की कद्दावर नेत्री कुसुम महदेले को टिकट दिया। लोधी जाति से आने वाली महदेले के लिये बसपा ने मुसीबत खडी करने का प्रयास किया। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के लोधी नेता लोधी महेन्द्रपाल वर्मा को बसपा ने प्रत्याशी बनाया। बसपा के लिये यह फैसला बेहद सुखद रहा। दलित और लोधी वोटों के समीकरण से बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रही। जबकि 2008 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी को 5वां स्थान हासिल हुआ था। चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाजपा से नाराज होकर चुनाव लडने उतरे रामऔतार बबलू पाठक ने सभी के समीकरण बिगाड दिये। लेकिन चुनाव में जाति पर केन्द्रित राजनीति लोगों को रास नहीं आई और परिणामों ने सभी को चौंका दिया। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक जिले में ब्राम्हण सर्वाधिक है। इसके बाद सर्ववैष्य, दलित, यादव, लोधी, मुस्लिम, कायस्थ, वोटरों की बारी आती है। चुनाव में सामान्य वर्ग और पिछडा वर्ग के बीच में अधिक संघर्ष की स्थिति देखने मिलती रही है। पिछले चुनाव में अधिकांश प्रत्याशी पिछडा वर्ग से थे, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी रामऔतार पाठक को सामान्य। जिसका फायदा भी पाठक को हुआ और निर्दलीय होने के बावजूद उन्होंने 20 हजार से अधिक वोट प्राप्त किये। दलित वोटरों को रूझान इस चुनाव में भी बसपा के साथ ही रहा। जबकि मुस्लिम वोटरों ने पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में शतप्रतिशत वोटिंग नहीं की। मुस्लिम वोटरों के बटने से कांग्रेस को अधिक नुकसान हुआ। विधानसभा में मतदाता संख्या वर्ष 2013 के चुनाव में पन्ना विधानसभा में कुल 215292 वोटर थे, जिसमें 69.05 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। जिले के 228 केन्द्रों में मतदान कराये गये थी। इसी तरह 2008 के चुनाव में 161371 मतदाताओं में से 66.66 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले। 208 केन्द्रों में मतदान सम्पंन कराया गया था। वर्तमान में चुनाव आयोग द्वारा 31 जुलाई 2018 को जारी सूची में पन्ना विधानसभा में कुल 224471 मतदाता हैं। संवेदनशील केन्द्र पिछले चुनाव में 10 संवेदनशील एवं 3 अति संवेन्दनशील केन्द्र बनाये गये थे। जहां किसी तरह का कोई विवाद उत्पन्न नहीं हुआ था और शांतिपूर्ण मतदान हुआ। संवेदनशील केन्द्र गौरा में मतदान के दौरन स्थानीय लोगों ने बहिस्कार की घोषणा की थी। मूलभूत सुविधाएं नहीं होने के कारण लोगों ने मतदान का बहिस्कार किया था। अधिकारियों की समझाईश के बाद भी लोगों ने मतदान नहीं किया। जिले के इस मतदान केन्द्र मात्र 4 वोट ही पडे थे। भाजपा को मिले सर्वाधिक वोट वर्ष 2013 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी कुसुम सिंह महदेले ने जीत दर्ज की थी। उन्हें इस चुनाव में 54778 वोट मिले, जो कुल वोटों का 37.64 प्रतिशत थे। वहीं उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा प्रत्याशी महेन्द्र पाल वर्मा को 25742 वोट यानि 17.69 प्रतिशत वोट हासिल हुए। कांग्रेस प्रत्याशी मीना यादव 16.10 प्रतिशत 23439 वोट हासिल कर सकीं। जबकि निदर्जलीय प्रत्याशी रामऔतार बबलू पाठक को 14.54 प्रतिशत 21162 वोट मिले थे। जबकि वर्ष 2008 में कांग्रेस और भाजपा के बीच यहां काटे का मुकाबला हुआ था। भाजपा प्रत्याशी कुसुम महदेले को 22541 यानि 21.06 वोट मिले और विजयी प्रत्याशी कांग्रेस के श्रीकांत दुबे को 22583 यानि 21.10 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। कांग्रेस ने यह सीट महज 42 वोटों के अंतर से जीती थी और भाजपा के गढ में सैंध लगाई थी। बिना वादों का हुआ चुनाव विधानसभा चुनाव में प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी ने जनता से सिर्फ एक मात्र ही वादा किया था और वह वादा विकास का था। विकास का कोई पैमाना तय नहीं था, सिर्फ विकास के नाम पर ही वोट मांगे गये थे। इसके अलावा नेताओं को सिर्फ अपने समीकरण पर भरोसा था और उसी के बल पर चुनाव लडा गया। विधानसभा के क्षेत्र के मुद्दे पन्ना विधानसभा मुख्य चुनावी मुद्दा रोजगार है। क्षेत्र में निरंतर पलायन हो रहा है और यहां लम्बे समय से औद्योगिक विकास की बात हो रही है। इसके अलावा रेल का मुद्दा हमेशा ही चुनाव में रहता है। लेकिन इस बार रेलवे लाइन का कार्य प्रारंभ कराना और जल्द पूरा करना नेताओं के वादों में शामिल होगा। इसी क्रम में वन विभाग की मनमानी भी चुनावी मुद्दा बनती है। पन्ना विधानसभा में टाइगर रिजर्व का बफर जोन है, जहां पार्क की मनमानी हावी है। ऐसे में यह भी एक चुनावी मुद्दा है। पन्ना में डायमण्ड पार्क और बेहतर चिकित्सा युविधाएं भी चुनावी मुद्दा रहेंगी। संभावित प्रत्याशी भाजपा में संभावित प्रत्याशियों में कुसुम महदेले, सतानंद गौतम, और सुधीर अग्रवाल  वहीं कांग्रेस के संभावित प्रत्याषियों में श्रीकांत दुबे, मनोज गुप्ता केसरवानी, शिवजीत सिंह भईया राजा, जमीनी हकीकत भाजपा और कांग्रेस की जमीनी हकीकत की बात करें तो दोनों ही पार्टियों ने जनता का विश्वास लगभग खो दिया है। चुनाव में दो में से एक को चुनना जनता की मजबूरी है। ऐसे में पार्टी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण प्रत्याशी का व्यक्तित्व है। अधिकांश चुनाव में पार्टी के स्थान पर जाति एवं व्यक्तिगत आधार पर ही वोट मांगे जाते है। लम्बे समय तक पन्ना विधानसभा में कांग्रेस का दबदबा रहा है और उसके बाद भाजपा ने यहां काफी समय राज किया। लेकिन दोनें ही पार्टियों ने यहां कोई विकास नहीं किया। जिससे क्षेत्रवासियों में राजनैतिक दलों के प्रति खासी नाराजगी है। ऐसे में चुनाव के परिणामों का सटीक आंकलन दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों की घोषणा के बाद ही संभव हो पाता है।