मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान की प्रादेशिक राजनैतिक सरजमी पर कुछ महीनों बाद विधानसभायी चुनावी दावतों का जश्न मना रहे होगें, हम और आप। प्रश्न इस बात का कतई नहीं, कौन जीतेगा? कौन पराजय को वरण करेगा? हर व्यक्ति उस सुप्त ज्वालामुखी की तरह है, जो अभी सुशुप्तावस्था में है। कौन कब जाग जाये? अनजाना है।
नोट बंदी हो, जी.एस.टी. हो अथवा आरक्षण कब कौन कहां किस समय अपना चमत्कार दिखा दें, कुछ नहीं कहा जा सकता? हाँ! यह अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है, कि चुनावी परिणाम रहस्यमय होंगे, जो चमत्कृत कर देंगे राजनैतिक बहुरूपियों को। बडे़-बडे़ राजनैतिक रणबांकुरे दिखने वाले प्रत्याशी भी पराजय का स्वाद चख सकते हैं?
यह चुनावी महाभारत भाषणों, प्रदर्शनों, अखवारी विज्ञापनों, दूरर्शन पर लफ्फाजी मारते तथाकथित नेताओं की राजनैतिक कब्रगाह भी बन सकती है? क्योंकि आज के मतदाता - का मन दुखी है तन दुखी है, भरण पोषण की समस्या से व्यथित है? सड़कें, भवन, भोजन नहीं देतीं। ऐसे में कोई नया समूह खड़ा हो जाए। जैसे श्री अन्ना हजारे के अखाड़े से निकला एक कर्म योगी(श्री अरविंद केजरीवाल) जिसने कांग्रेस से लेकर भाजपा को दिल्ली की सरजमीं पर शिकस्त दी।
क्या इस सम्भावना से इंकार किया जा सकता है, किसी अन्य प्रदेश में ऐसा सम्भव नहीं है। कभी भी कोई गुदडी का लाल आयेगा और इन राजनैतिक धन्नासेठों को छटी के दूध की याद दिला देगा? जमीनी हकीकत से अनजान है सभी दलों से जुड़े राजनैतिक कारन्दे, अथवा जानकर भी अनजान है। यह फलसफा किसी राजनैतिक क्रांति का आगाज तो नहीं है?
मराठी भाषी परिवार में जन्में रजनीकांत दक्षिण भारत में देवता सरीखे पूजे जाते हैं। फिल्म इन्डस्ट्री में वे एक शहन्शाह की हैसियत रखते हैं। आगामी राजनैतिक कुम्भ में सुश्री ममता बनर्जी, सुश्री मायावती और श्रीमति सोनिया गांधी की त्रिभुजाकार राजनैतिक काया कमलहासन को अपनी राजनैतिक दीपमाला में सजा सकती है, किन्तु अनुकूल राजनैतिक परिस्थितियों में रजनीकांत सरीखे व्यक्तित्वों को जोड़ने में भाजपा यदि सफल रही तो रजनीकांत अपनी राजनीति को दक्षिण तक सीमित न रखकर अखिल भारतीय स्तर पर राजनैतिक हंगामा बरफा सकते हैं? राजनीति के क्षेत्र में दक्षिण भारत से यह राजनैतिक बाहुबली कभी भी अवतरित हो सकता हैं?
सोलहवीं लोकसभा में भाजपा ने चमत्कृत कर देने वाली सफलता प्राप्त कर ली। सौभाग्यवश श्री नरेन्द्र मोदी सरीखे ओजस्वी महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व ने प्रधानमंत्री पद सम्हालकर देश आल्हादित तो हुआ, किन्तु श्री अमित शाह सरीखे राजनैतिक व्यक्तित्व को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा श्री अरूण जेटली सरीखे जो अर्थशास्त्र को कानूनी चश्मे से देखने के आदी हैं, उन्हें वित्तमंत्री बनवा कर स्वयं विश्व रंगमंच पर एक राजनैतिक तीर्थ यात्री बनकर हवाई यात्राएं करते रहते हैं।
श्री अरूण जेटली एक वरिष्ठ कानूनविद् होने के साथ ईमानदार व्यक्तित्व हैं किन्तु अर्थशास्त्री तो नहीं, नतीजा क्या हुआ? नोट बंदी से लेकर जी.एस.टी. ने जहां व्यवसायियों में हताशा का भाव पैदा किया वहीं लाखों छोटे-छोटे कारखाने और कुटीर उद्योगों से जुड़े कामगार बेरोजगार हो गये।?
युवा पीढ़ी भी बेरोजगारी से व्यथित है, किसान कर्ज के दमघांटू यातना से मर्मान्तक पीड़ा भोग रहा हैं। आरक्षण पर नेताओं ने वेवजह की नुक्ताचीनी कर आरक्षण के भूत को जगा दिया। बार-बार इस पर बोलना सभी दलों के बक्रतुण्ड नेताओं ने आग में घी का काम किया और आरक्षण रूपी जिन्न को, जो बोतल में बंद था, उसे निकाल दिया।
भाजपा भी उसी घटोत्कच्छीय मायाजाल में फंस गई, जिसमें साठ वर्षों से कांग्रेस की जादूगरी चल रही थी। श्रीमति इंदिरागांधी के बाद देश को एक ही काबिल जुझारू नेता मिला (श्री अटल विहारी बाजपेयी को छोड़कर) मगर भाजपा के बड़बोले नेताओं ने एक काबिल नेता की चमक फीकी कर दी। आज आवश्यकता है, दिल्ली के तख्ते ताऊस को संजीदगी से सम्हाले तथा विदेश यात्री न बने रहें, श्री नरेन्द्र मोदी जी। क्योंकि आज की युवा पीढ़ी बेरोजगारी से व्यथित तो है ही और यदि बदलाहट की ओर मुड़ गई तो कांग्रेस के पक्ष में न जाकर किसी नये दलीय संगठन को जन्म दे सकती है?
श्री नरेन्द्र मोदी जी अपना घर देखें। ये विदेश यात्राएं सिर्फ व्यापारिक ताने बाने बुनती है। देश को इस तिलस्म से फिलहाल दूर रखकर बेरोजगारों, कृषकों की समस्याओं के समाधान को अमलीजामा पहनाये, कागजी नहीं। राष्ट्र आपके प्रति आस्थावान है, आपको जो विजय मिली थी 2014 में, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या भाजपा की नहीं थी, वस्तुतः यह विजय मिली थी, कांग्रेसी शासन व्यवस्था के प्रति जनाक्रोश से। यह दर्प आप सरीखे विशाल व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को शोभा नहीं देता कि देश को कांग्रेस विहीन कर देंगे। कांग्रेस एक संस्था है अच्छे बुरे कमजोर मानसिकता वाले किसी संस्था को कुछ समय तक शक्तिहीन बना सकते हैं, किन्तु जब सशक्त नेतृत्व आयेगा तब वह भी चुनावी ताल ठोक कर विजयी रथ पर आरूढ़ हो सकता है। मैं देख रहा हूँ कि आपके चेहरे की वह चमक दमक कुछ आभाहीन हो गई। समय का दावतनामा है कि कर्मठता के युग पुरूष बन पुनः आत्मविश्वास जाग्रत कर देश की चौपट होती अर्थव्यवस्था को नई योजनाओं के श्रृंगारदान से इन्द्रधनुषी रंग में संवारे।
प्रस्थान बिन्दु - 1. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय नागपुर से उड़ती खबरें सुनने को मिल रही है, जिसमें 75 वर्ष से अधिक आयु वाले आर.एस.एस. से जुड़े राजनीतिज्ञों को भाजपा चुनावी वेतरणी में जोर अजमाइस का अवसर देनें जा रही है, जिसमें श्री लालकृष्ण आड़वाणी, श्री मुरली मनोहर जोशी, श्री शान्ताराम, मध्यप्रदेश से श्री बाबूलाल गौर तथा सरदार श्री सरताज सिंह सरीखे अन्य वरिष्ठ नेताओं को लोकसभा तथा विधानसभायी चुनावों में प्रत्याशी बनाये जायेंगे? इस मामले में 75 बर्षीय श्री अमित शाह का चुनावी फार्मूला काल कवलित हो जायेगा क्योंकि आर.एस.एस. के वरिष्ठ समूह का मानना है कि वरिष्ठों को राजनीति से अलग करना पार्टी को कमजोर कर रहा है। साथ ही उच्चासीन संघ प्रमुख म.प्र. में पार्टी की गिरती साख से भी चिंतित हैं और इस संदर्भ में उन्होंने श्री नरेन्द्र मोदी एवं श्री अमित शाह से अपना असंतोष गम्भीर वाणी में व्यक्त कर दिया है। हो सकता है? यादव जाति के कद्दावर नेता श्री बाबूलाल गौर एवं सिख समुदाय को पार्टी से जोड़ने के लिए सरदार श्री सरताज सिंह को मंत्री मण्डल में पुनः शामिल कर लिया जाएं?
2. राजनेता जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ हैं, भीतर ही भीतर विरोध का यह ज्वालामुखी भाजपा और कांग्रेस दोनों को हानि पहुंचा सकता है? आरक्षण की जो रासलीला इन दोनों राष्ट्रीय दलों के द्वारा अभिनीत की जा रही है, वह सवर्ण समाज को रास नहीं आ रही, खास कर युवा पीढ़ी को। यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण स्वीकार किया जावे तो राजनैतिक दलों, खासकर भाजपा अथवा कांग्रेस को चुनावी संजीवनी का काम कर सकता है।
3. राजनैतिक यक्ष मौन है? क्योंकि वह जानता है कि सत्य का हस्तान्तरण नहीं होता। जब आवाम न्यायालय वन जाता है तब असहयोग का दण्ड दिया जाता है। महात्मा गांधी के अहिंसक आन्दोलन का तरीका आज भी कारगर सिद्ध हो सकता है। यूक्रेन में एक सार्वजनिक बगीचे में भ्रष्ट लोगों के घर और दफ्तर से जप्त वस्तुओं को प्रदर्शित किया जाता है। इसी तर्ज पर हमारे यहां बैंकों को चूना लगाकर भागने वालों के घरों और दफ्तरों को भी भ्रष्टाचार के म्यूजियम में बदला जा सकता है। क्या यह सत्य का हस्तान्तरण नहीं होगा कि विजय माल्या व नीरव मोदी के भव्य भवन भ्रष्टाचार के म्यूजियम बनाये जाएं। यदि ऐसा हो जाए तो हर नगर, ग्राम अथवा महानगरों में भ्रष्टाचार में म्यूजियमों के बोर्ड लटकते नजर आयेंगे? तब राजनैतिक यक्ष अपना मौन भंग करेगा। प्रतीक्षा कीजिए आज नहीं ंतो अगली दशाब्दी में कुछ ऐसे मिलते जुलते दृश्य आपको दिखाई दे जाएंगे।