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सतना। यूं तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव दीपक बावरिया हाईकमान के निर्देश पर संभावित प्रत्याशियों की नब्ज टटोलकर एकजुटता का संदेश देने आए थे लेकिन उन्होनें जिस प्रकार का पालिटिकल स्टैंड यहां लिया उससे संगठन के ही लोग हैरान हैं। प्रदेश प्रभारी व राष्टÑीय महासचिव दीपक बावरिया ने यहां प्रेस से चर्चा के दौरान एक ऐसे विवाद को हवा दे दी है जिस विवाद से कांग्रेस का शीर्ष प्रबंधन मप्र से लेकर देश के अन्य राज्यों तक में बचता रहा है।

अभी कांग्रेस का शीर्ष प्रबंधन राजस्थान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच लगी वर्चस्व की आग पर ठीक से पानी भी नहीं डाल पाया था कि राष्टÑीय महासचिव ने मप्र के कांग्रेसी मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा कर ठीक वैसी ही आग लगा दी है जिस आग से फिलहाल राजस्थान कांग्रेस तप रही है। अमूमन कांग्रेस की परंपरा किसी भी प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ने की नहीं रही है, लेकिन सरकार बनने पर संभावित मुख्यमंत्री का नाम लेकर दीपक बावरिया ने जिस प्रकार की राजनैतिक आग संगठन में लगाई है उसकी तपिश संगठन के भीतर लंबे समय तक महसूस होती रहेगी।
क्या कहा था राष्टÑीय महासचिव ने
प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया से चर्चा करते हुए दीपक बावरिया ने शनिवार को कहा था कि यदि मप्र में कांग्रेस को बहुमत मिला तो कमलनाथ या ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इस मामले में दागे गए निजी विचार संबंधी सवाल के जवाब में उन्होने दावा किया था कि यह उनके निजी विचार नहीं बल्कि शीर्ष प्रबंधन की अधिकृत योजना है। बेशक यह सच हो लेकिन जानकारों का मानना है कि राष्टÑीय महासचिव को ऐसे बयान देकर संगठन में विद्रोह की चिंगारी नहीं जलानी चाहिए थी। यह सर्वविदित है कि मप्र में कांग्रेस की राजनीति बहुध्रुवीय है, और कार्यकर्ता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य , अजय सिंह राहुल खेमों में बटा हुआ है। ऐसे में येन-केन-प्रकारेण एकजुट होने की कोशिश कर रही कांग्रेस में ऐसे बयानों से विघटना पैदा करना और किसी खास नेता का नाम लेकर अन्य गुटों को नाराज करना मिशन 2018 की तैयारियों में जुटी कांग्रेस को भारी पड़ सकता है।
क्या होंगे दुष्परिणाम
बेशक कमलनाथ प्रदेशाध्यक्ष हों और ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव प्रभारी समिति के अध्यक्ष हों लेकिन प्रदेश की राजनीति में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नेताओं का दबदबा है। प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद कमलनाथ प्रदेशव्यापी प्रभाव बनाने में अवश्य जुटे हुए हैं लेकिन अलग-अलग इलाकों के क्षत्रपों का साथ ही ऐसा प्रदेशव्यापी प्रभाव पैदा कर सकता है। जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की फतह तभी हो सकती है जब प्रदेश के सभी कद्दवार नेताओं को एकसूत्र में पिरोकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोला जाय। कांग्रेस ऐसी तैयारियां करती नजर भी आ रही थी लेकिन बावरिया के बयान ने कांग्रेस के एक बड़े धड़े को राजनैत्रिम रूप से बावला बना दिया है । अब इसे नादानी कहें अथवा शीर्ष प्रबंधन की सोची समझी रणनीति यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन राष्टÑीय महासचिव ने जिस प्रकार से एक तरफा बैटिंग की है उससे एक गुट मायूस नजर आ रहा है। यह मायूसी विंध्य में कांग्रेस की चुनावी तैयारियों को प्रभावित कर सकती है।
सतना में भाजपा का विजयरथ रोकने की चुनौती
तीन बार से चुने जा रहे शंकरलाल, कांग्रेस को चाहिए जिताने वाला ‘ लाल’ सतना। विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर की जा रही तैयारियों के बीच यह सवाल अहम हो गया है कि कांग्रेस पार्टी भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए किस प्रत्याशी को क्या रणनीति बनाकर उतारती है? कभी कांग्रेस का गढ़ रही सतना विधासभा सीट कांग्रेस की दु:खती रग रही है , जहां भाजपा के शंकरलाल तिवारी के आंगे कांग्रेस पिछले तीन चुनावों से पनाह मांगती रही है। सतना विधानसभा क्षेत्र से शंकरलाल तिवारी लगातार तीन बार से विधायक हैं। शंकरलाल ने 2003 में सर्वाधिक 42.18 प्रतिशत वोट पाकर कांग्रेस के प्रत्याशी सईद अहमद को हराकर जीत का जो सिलसिला बरकरार किया वह अब तक बरकरार है। हैट्रिक जीत हासिल करने वाले शंकरलाल की निगाह चौथी बार जीत हासिल करने पर है, ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि जिला मुख्यालय की इस अहम सीट पर कांग्रेस किस स्ट्रेटजी के साथ इस मर्तबा चुनाव लड़ती है। बहरहाल सतना विधानसभा की चुनावी तस्वीर को देखें तो तीन बार से लगातार भाजपा की टिकट पर चुने जा रहे शंकरलाल को मात देने के लिए कांग्रेस को एक ऐसे ‘लाल’ की जरूरत है जो भाजपा को हराकर कांग्रेस को जीत के घोड़े पर सवार कर सके।
कंकर से चावल बीनने की चुनौती
चुनावी टिकट के लिए अपने-अपने स्तर पर चल रही लामबंदी के बीच न केवल कांग्रेसियों के बल्कि शहरवासियों के जेहन को भी यह सवाल मथ रहा है कि आखिर कांग्रेस भाजपा के विजयरथ को रोकने के लिए किस पर भरोसा जताएगी। यूंतो कांग्रेस में चुनावी लड़ाकों की एक लंबी सूची है जिसमें वरिष्ठ नेताओं से लेकर युवा तक हैं, लेकिन लड़ाकों की इस भीड़ में जिताऊ प्रत्याशी को छाटना ठीक वैसा ही है जैसे कंकर के बीच चावल बीनने की चुनौती हो। कांग्रेसी लड़ाकों की सूची को देखें तो पूर्व मंत्री सईद अहमद, पूर्व महापौर राजाराम त्रिपाठी, मनीष तिवारी , सुधीर सिंह तोमर , उर्मिला त्रिपाठी, रवींद्र सिंह सेठी, अनिल अग्रहरि शिवा, राजभान सिंह, राजदीप सिंह मोनू, शिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू समेत कई नाम हैं, जो टिकट की दौड़ में हैं। इनमें से सईद अहमद को प्रदेश उपाध्यक्ष का दायित्व देकर पार्टी ने संकेत दे दिया है कि वे चुनाव के दौरान संगठन को मजबूत बनाने का प्रयास करेंगे। हालांकि अल्पसंख्यक वर्ग का फार्मूला अपनाने पर उनकी दावेदारी को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। राजाराम त्रिपाठी पर पार्टी पहले भी दांव लगा चुकी है जिसमें वे अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे थे लेकिन राजाराम की शहर के व्यवसायी वर्ग में बनी पैठ व महापौर के कार्यकाल में किए गए कार्यों को भुनाने के लिए कांग्रेस उन्हें टिकट थमा सकती है। मेयर के चुनाव में निगम क्षेत्र में अपना जनाधार दिखाने वाले मनीष तिवारी को सशक्त प्रत्याशी माना जा रहा है। स्व. प. शालिगराम तिवारी के नाती व स्व.डा.यूसी तिवारी के पुत्र मनीष तिवारी की व्यवसाइयों में पकड़ व सतना विधानसभा सीट का जातीय समीकरण उन्हें कांग्रेस का सशक्त दावेदार बनाता है। माना जा रहा है कि यदि कांग्रेस ने जातिगत समीकरण समेत जीत के विभिन्न पहलुओं पर गौर किया तो मनीष तिवारी पर दांव लगाया जा सकता है। रवींद्र सिंह सेठी भी लंबे अर्से से कांग्रेस में सक्रिय हैं और अपनी निर्विवाद छवि के चलते संगठन के पसंदीदा रहे हैं। कई अहम पदों में रहते हुए पीसीसी सदस्य तक का सफर करने वाले रवींद्र सिंह सेठी भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। इसके अलावा मेयर पद के लिए चुनावी किला लड़ा चुकीं उर्मिला त्रिपाठी भी टिकट की दौड़ में हैं लेकिन महापौर के चुनाव में मिली करारी मात उनकी दावेदारी पर गृहण लगा सकती है। इसके अलावा कांगेस के वरिष्ठ नेता सुधीर सिंह तोमर भी टिकट की दौड़ में है लेकिन इसके पूर्व संगठन द्वारा दिए गए मौकों को न भुना पाना उनकी टिकट की राह में रोड़ा बन सकता है।