नई दिल्ली, कश्मीर मुद्दा शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र में पहुंच गया, लेकिन यहां भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। पाकिस्तान से दोस्ती निभाने के लिए चीन ने यह मुद्दा उठा तो दिया, बंद कमरे में 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्यों की बैठक हुई, लेकिन यहां चीन को छोड़कर बाकी सभी देश भारत के साथ खड़े नजर आए। रूस ने तो साफ शब्दों में कहा कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के अंदरूनी मामला है। जानिए बैठक में क्या कुछ हुआ -
1971 के बाद यह पहला मौका है जब बंद कमरे में इस मुद्दे पर बात हुई। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने United Nations Security Council को चिट्ठी लिखी थी, जिसका समर्थन करते हुए चीन ने इस पर बैठक बुलाने की मांग की थी।
बैठक शुरू होने से ठीक पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को फोन लगाया और कश्मीर मुद्दे पर यूएन में सहयोग मांगा। खबर है कि दोनों नेताओं के बीच करीब 12 मिनट तक बात हुई। हालांकि पाकिस्तान को अमेरिका का साथ नहीं मिला।
बैठक में प्रवेश करते समय रूस के प्रतिनिधि ने साफ कहा कि कश्मीर विवाद में संयुक्क राष्ट्र का कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय विवाद है।
बैठक से ठीक पहले पाकिस्तान को दो बड़े झटके लगे हैं। पहला - United Nations Security Council ने बैठक में पाकिस्तान को शामिल करने की मांग ठुकरा दी है। पाकिस्तान न तो स्थायी सदस्य है ना ही अस्थायी। दूसरा - चीन के अलागा किसी और स्थायी सदस्य ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया है। ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस और रूस का कहना है कि यह मुद्दा यूएन को नहीं, बल्कि दोनों देशों को मिलकर सुलझाना चाहिए। साथ ही खबर है कि इस बैठक में कश्मीर मसले पर सिर्फ चर्चा होगी, कोई प्रस्ताव पारित नहीं होगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने United Nations Security Council एजेंडा आइटम 'India Pakistan Question' पर बहस की मांग की है। वहीं भारत अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को पहले ही कह चुका है कि कश्मीर उसका अंदरूनी मामला है और पाकिस्तान को सच्चाई स्वीकार कर लेना चाहिए। वहीं पाकिस्तान का कहना है कि भारत ने आर्टिकल 370 हटाकर संयुक्त राष्ट्र के नियमों का उल्लंघन किया है।
हाल ही में जब कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा तो संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने दोनों से अधिकतम संयम बरतने की अपील करते हुए कहा था कि वे ऐसे कदम उठाने से बचें जिनसे जम्मू-कश्मीर की स्थिति प्रभावित होती हो।
चीन की मजबूरी
ऐसा नहीं है कि चीन, पाकिस्तान का घनिष्ठ पड़ोसी है और वह अपने मित्र राष्ट्र के लिए कुछ भी कर सकता है. चीन के सामने बड़ी मजबूरी बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरओ) है जिसका बड़ा हिस्सा पाकिस्तान से होकर गुजर रहा है. सड़क निर्माण के इस बड़े प्रोजेक्ट में चीन ने बहुत कुछ झोंक दिया है. अरबों युआन की राशि उसने रोड प्रोजेक्ट में लगाई है और पाकिस्तान से यारी बनाए रखने के लिए वहां बड़ी मात्रा में निवेश किया है.
ऐसे में चीन के सामने दो ही विकल्प हैं. पहला यह कि वह पाकिस्तान को झिड़क दे और अपने बूते बीआरओ को आगे बढ़ाए. दूसरा विकल्प उसके सामने सबकुछ बर्दाश्त करते हुए पाकिस्तान को मदद देने का है. पाकिस्तान को चीन झिड़क नहीं सकता क्योंकि उसे पता है इससे उसका पैसा तो डूबेगा ही, रोड प्रोजेक्ट में जान-माल की भी बड़ी क्षति होगी.
गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तानी आतंकी कई देशों में कोहराम मचा चुके हैं लेकिन अभी तक उन्होंने किसी चीनी नागरिक को नहीं छुआ है जो बीआरओ प्रोजेक्ट में लगे हैं. इसलिए चीन हर नफा-नुकसान देखते हुए पहले विकल्प में टिकना चाहता है. लिहाजा यूएनएससी की बैठक में वह पाकिस्तान की मदद कर रहा है.
अस्थाई सदस्यों से चीन को ठेंगा
कुल 10 अस्थाई देशों में पोलैंड अकेला राष्ट्र जो पाकिस्तान के साथ खड़ा दिख रहा है. हालांकि यह उसकी राजनयिक मजबूरी है. उसने भारत और पाकिस्तान के इस बखेड़े से खुद को काफी दूर रखा है लेकिन पोलैंड चूंकि इस वक्त यूएनएससी का रोटेटिंग प्रेसिडेंट है, इसलिए उसके सामने बैठक कराना ही अंतिम विकल्प है. इसका अर्थ यह कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि पोलैंड कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ है. वह किसी राष्ट्र के साथ नहीं है बल्कि अस्थाई देशों की ओर से बैठक की मेजबानी कर रहा है.
पोलैंड के अलावा बेल्जियम, कोट डीवोएर, डोमिनिक रिपब्लिक, इक्वेटोरियल गुएनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू और साउथ अफ्रीका पाकिस्तान को पूरी तरह नकार चुके हैं. इन देशों से पाकिस्तान को धेले भर का समर्थन नहीं मिलने वाला. तभी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने विश्व बिरादरी के सामने दुखड़ा रोया कि गए तो सबकी दहलीज पर लेकिन भाव किसी ने नहीं दिया.