सैयद हैदर रज़ा के जन्मोत्सव पर कल से शुरू होगा रज़ा उत्सव
रज़ा की कब्र पर पेश की जाएगी चादर
माटी के रंग में चित्रकार दिखाएंगे अपना हुनर
सांस्कृतिक संध्या में गूंजेगा शास्त्रीय संगीत
Syed Javed Ali
मंडला - विश्वप्रसिद्ध चित्रकार सैयद हैदर रज़ा के जन्मदिवस के अवसर पर नर्मदा तट पर रजा उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। रज़ा उत्सव की शुरुआत हैदर रज़ा की कब्र में चादर नज़र कर की जाएगी। शुक्रवार की सुबह 10 बजे बिंझिया स्थित कब्रिस्तान में उनकी कब्र पर रज़ा के चाहने वाले खिराजे अकीदत पेश करेंगे। कलेक्टर जगदीश चन्द्र जटिया भी कब्रिस्तान पहुंचकर रज़ा की कब्र पर श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे।
दोपहर 12 बजे रपटा घाट में चित्रकला कार्यशाला एवं माटी के रंग के अन्तर्गत गमले, दिये व गुल्लक में कलाकार अपनी कला के रंग बिखेरेंगे। इस दौरान मण्डला लोकसभा क्षेत्र के सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते, राज्यसभा सांसद श्रीमती सम्पतिया उइके, नगरपालिका अध्यक्ष श्रीमती पूर्णिमा शुक्ला व नगरपालिका उपाध्यक्ष गिरीश चंदानी बतौर अतिथि उपस्थित रहेंगे। शाम 5ः30 बजे सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया है। इसमें अथर्व पाण्डे (तबला वादक), दिवाकर दत्त पाण्डे (माउथ आर्गन) व चिराग उइके (ढोलक) में अपनी प्रस्तुति देंगे। आदित्य एवं चैतन्य ताम्बे द्वारा शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया जायेगा। चारू शुक्ला उपशास्त्रीय गायन प्रस्तुत करेंगे। सोनसाय बैगा- बैगा नृत्य समूह द्वारा विशेष प्रस्तुति की जायेगी। 23 फरवरी की शाम 5ः30 बजे काश्वी आर्य, अदिति हरदहा, अवनि पटैल, श्रुति श्रीवास्तव, अन्वेषा जैन, एन्जल कुकरेजा व अपराजिता चैहान द्वारा समूह नृत्य प्रस्तुत किया जायेगा। अदिति हरदहा, रानी चन्द्रौल, सपना सोनी एकल नृत्य प्रस्तुत करेंगी। विशेष प्रस्तुति के अन्तर्गत श्रीमती रितु वर्मा पण्डवानी गायन की प्रस्तुति देंगी।

रज़ा फाउण्डेशन के संजीव चैबे ने बताया कि भारत के महान आधुनिक चित्रकार सैयद हैदर रज़ा का बचपन मण्डला में बीता। रज़ा के पिता तब मण्डला के वन रेन्ज में फारेस्ट रेंजर के पद पर पदस्थ थे। रजा के बचपन के पहले 8 वर्ष मण्डला जिले में ही बीते। रज़ा ने जीवन में पहली और अंतिम बार गांधी जी को मण्डला में ही देखा। रज़ा की आरंभिक शिक्षा ककैया के सरकारी स्कूल में हुई, जहां के अध्यापक ने ही हैदर रज़ा को बरामदे की दीवार पर एक बिन्दु बनाकर उस पर ध्यान एकाग्र करने को कहा था, जो बरसों बाद पेरिस में रज़ा को याद आया और उन्होंने उसका उपयोग अपने चित्रों में करना शुरू किया और बिन्दु उनका सबसे लोकप्रिय प्रतीक और पहचान बन गया। रज़ा जीवन भर मण्डला और नर्मदा जी को नहीं भूले, और उन्हें देखने, प्रणाम करने कई बार चुपचाप मण्डला आये। रज़ा जबलपुर से मण्डला आते हुए जिले की सरहद पर प्रवेश करते ही कार रूकवाकर सड़क के किनारे की मिट्टी माथे पर तिलक की तरह लगाकर इस मातृभूमि को प्रणाम करते थे। रज़ा के पिता मण्डला में ही दफन हैं। उनके पिता की कब्र के बगल में स्वयं रज़ा को उनकी इच्छा के अनुसार 23 जुलाई 2016 को राजकीय सम्मान के साथ दफन किया गया। रज़ा एक अत्यंत कृतज्ञ और यशस्वी नागरिक हुए हैं जिनकी स्मृति को मण्डला में जगाने और इसकी कई कला-गतिविधियां रज़ा फाउण्डेशन हर वर्ष आयोजित कर रहा है।