आतंकियों की पहचान जाहिर कर कश्मीर में भर्ती तेज करने की फिराक में हिज्बुल मुजाहिदीन

  नई दिल्ली 
आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन ने बड़ी संख्या में कश्मीरियों की भर्ती करने के लिए नई चाल चली है। भले ही उसने अपने साथ आए कश्मीर के युवाओं की तस्वीरें सोशल मीडिया के जरिए पहले शेयर की हों पर अब उन्हें एक बार फिर सार्वजिनक कर 'हीरो' के तौर पर पेश कर रहा है। इसके जरिए हिज्बुल भर्ती तेज करने के लिए लोगों को लुभाने की कोशिश कर रहा है। बुरहान वानी की बरसी पर हिज्बुल ने कश्मीर के उन युवाओं की लिस्ट जारी की, जो आतंक का दामन थाम चुके हैं। इसके जरिए आतंकी गुट यह जताना चाहता है कि बड़ी संख्या में कश्मीरी युवा आतंक के रास्ते पर आ रहे हैं।  
 


जम्मू और कश्मीर पुलिस के प्रमुख एसपी वैद ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 'हिज्बुल ने लोगों को आकर्षित करने के लिए सूचना जारी की है। इनमें से कई ऐसे लोग हैं, जिनके बारे में J&K पुलिस को पहले से जानकारी थी। वास्तव में, बडगाम के एक कॉन्स्टेबल का भी नाम इसमें है, जिसके बारे में पहले से जानकारी है कि वह करीब 4-5 महीने पहले हिज्बुल में शामिल हो चुका है। आतंकी गुट सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि कश्मीर में हर कोई अलग-थलग हो चुका है और वे आतंकवाद की ओर बढ़ रहे हैं।' 

 
केंद्रीय एजेंसियों द्वारा किए गए आकलन के अनुसार हिज्बुल मुजाहिदीन आतंकवाद को ग्लैमर से जोड़कर पेश करना चाहता है। इसके लिए वह बंदूक लिए कश्मीरी युवाओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहा है। इनमें से कई ऐसे भी हैं जो अच्छे परिवार से आते हैं और उच्च शिक्षा हासिल किए हैं। 

हिज्बुल की रणनीति तैयार करने और कश्मीर में उसके मूव्स में पाकिस्तान और ISI की अहम भूमिका होती है। ऐसे में पाक की कोशिश है कि कश्मीर में फाइट को 'स्थानीय संघर्ष' के तौर पर पेश किया जाए और यह दिखाया जाए कि स्थानीय खुद आतंकी गुटों में शामिल हो रहे हैं। एक अधिकारी ने यह भी कहा, 'हिज्बुल द्वारा कश्मीरी युवाओं की पहचान को जाहिर करवाकर पाकिस्तान और ISI एक तरह उन्हें जम्मू और कश्मीर पुलिस को कार्रवाई करने के लिए आगे कर रही हैं। सोशल मीडिया का इस्तेमाल कश्मीरी युवाओं को भड़काने और भर्ती करने के लिए किया जा रहा है। इनमें ज्यादातर युवा ऐसे होते हैं जिनके पास हथियार काफी कम होते हैं और उन्हें कोई प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता है पर उन्हें पुलिस की गोलियों से मरने के लिए धकेल दिया जाता है।' 

ऐसे कश्मीरियों के अंतिम संस्कार में लोगों की भीड़ जुटती है, राजनीति शुरू हो जाती है और ऐसे में लोगों की भावनाओं के साथ खेलकर आतंकियों को भर्ती करने का मौका मिल जाता है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'एक तरफ स्थानीय कश्मीरी युवाओं की पहचान को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक किया जा रहा है तो वहीं लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के विदेशी आतंकियों (जिन्हें पाकिस्तान में पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाता है और हथियार भी) को गोपनीय तरीके से तैनात किया जाता है और J&K में असली आतंकी वारदात के लिए उन पर भरोसा किया जाता है।' 

अधिकारी ने वानी का उदाहरण सामने रखते हुए कहा कि हिज्बुल ने वानी को सोशल मीडिया पर हीरो के तौर पर पेश करना शुरू किया। कुछ समय बाद ही वह एक एनकाउंटर में मारा गया, पर उसकी मौत के बाद भी आतंकी गुट ने उसके सहारे लोगों को भड़काने का काम जारी रखा।