इन्वेस्टमेंट अडवाइजर की सुनने से पहले इन बातों पर ध्यान रखें म्यूचुअल फंड निवेशक
अगर असोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया (AMFI) के ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले साल अक्टूबर में फोलियो की संख्या 63.17 करोड़ थी, जो इस साल अक्टूबर में 25 प्रतिशत बढ़कर 79.03 प्रतिशत हो गई। यही नहीं, म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री को अक्टूबर 2018 में सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए करीब 7,900 करोड़ रुपये मिले। यह रकम सालभर पहले के मुकाबले 42 प्रतिशत ज्यादा है। ओवरऑल रिटेल सेगमेंट की ऐसेट्स अंडर मैनेजमेंट साल-दर-साल आधार पर 14 प्रतिशत बढ़कर अक्टूबर 2018 में 9,73,676 करोड़ रुपये हो गई, जो सालभर पहले 8,55,449 करोड़ रुपये थी।
म्यूचुअल फंड्स की लोकप्रियता बढ़ने के साथ गलत बिक्री और गलत खरीदारी का खतरा भी बढ़ा है। म्यूचुअल फंड्स निवेश के कई जरियों में से एक है और बिना उचित योजना बनाए केवल इनमें निवेश करने से कुछ खास फायदा शायद न हो। ऐसे में एक इन्वेस्टमेंट अडवाइजर की भूमिका अहम हो जाती है क्योंकि निवेश करने से पहले वित्तीय लक्ष्यों और रिस्क प्रोफाइल पर नजर डालना जरूरी होता है।
सेबी ने एक लिस्ट जारी कर बताया है कि इन्वेस्टमेंट अडवाइजर्स की सलाह लेते वक्त क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। इस लिस्ट से पहली बार भी निवेश करने जा रहे व्यक्ति को यह पता चल जाता है कि निवेश से पहले किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए और गलत सलाह को एक कान से सुनकर दूसरे से कैसे निकाल देना चाहिए।
क्या करना चाहिए?
1. हमेशा सेबी के पास रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट अडवाइजर्स से ही सलाह लें।
2. सेबी रजिस्ट्रेशन नंबर चेक करें। इसके लिए सेबी के रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट अडवाइजर्स की सूची देखी जा सकती है, जो कैपिटल मार्केट रेग्युलेटर की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इसे ।
3. यह पक्का कर लें कि इन्वेस्टमेंट अडवाइजर के पास वैध रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट है।
4. अपने इन्वेस्टमेंट अडवाइजर को केवल अडवाइजरी फी दें। अडवाइजरी फी का भुगतान बैंकिंग चैनलों से ही करें और अपने भुगतान को दर्ज करने वाली हस्ताक्षरित रसीदें अपने पास रखें।
5. निवेश की सलाह सुनने से पहले अपनी रिस्क प्रोफाइलिंग कराएं। इन्वेस्टमेंट अडवाइजर से कहें कि वह आपके रिस्क प्रोफाइल के आधार पर ही सलाह दें और निवेश के उपलब्ध विकल्पों पर ध्यान दें।
6. सभी जरूरी सवाल पूछें और सलाह पर अमल करने से पहले हर तरह का शक इन्वेस्टमेंट अडवाइजर से बातचीत कर दूर कर लें।
7. इन्वेस्टमेंट के रिस्क-रिटर्न प्रोफाइल का आकलन करने के अलावा लिक्विडिटी और सेफ्टी के पहलुओं की भी पड़ताल कर लें।
8. नियम एवं शर्तें लिखित तौर पर हस्ताक्षर और स्टांप के साथ लेने पर जोर दें। उनको सावधानी से पढ़ें, खासतौर से अडवाइजरी फीस, अडवाइजर प्लान, सलाह की श्रेणियां आदि वाले हिस्सों को। इसके बाद ही इन्वेस्टमेंट अडवाइजर से डील करें।
9. अपने ट्रांजैक्शंस के बारे में सतर्कता बरतें।
10. अपने शक/शिकायतों के निपटारे के लिए उचित अथॉरिटीज के पास जाएं। इन्वेस्टमेंट अडवाइजर ने अश्योर्ड या गारंटीड रिटर्न का ऑफर दिया हो तो इसकी सूचना सेबी को दें।
क्या न करें?
11. ऐसी इकाइयों से डील न करें, जो रजिस्टर्ड न हों।
12. इन्वेस्टमेंट अडवाइस की आड़ में दी जाने वाली स्टॉक टिप्स के जाल में न फंसें।
13. निवेश के लिए रकम इन्वेस्टमेंट अडवाइजर को न दें।
14. इन्वेस्टमेंट अडवाइजर अगर बहुत बढ़ाचढ़ाकर रिटर्न दिलाने का वादा कर रहा हो तो उसके लालच में न फंसें। निवेश के संतुलित निर्णयों पर लालच को हावी न होने दें।
15. लुभावने विज्ञापनों या बाजार की अटकलों के चक्कर में न पड़ें।
16. किसी भी इन्वेस्टमेंट अडवाइजर या उसके प्रतिनिधि की फोन कॉल या मेसेज के आधार पर कोई ट्रांजैक्शन न करकें।
17. इन्वेस्टमेंट अडवाइजर की ओर से बार-बार आने वाली कॉल्स या मेसेज के आधार पर कोई फैसला न करें।
18. इन्वेस्टमेंट अडवाइजर अगर लिमिटेड पीरियड ऑफर या कोई दूसरा इंसेंटिव, गिफ्ट आदि दे रहा हो तो इस जाल से बचें।
19. ऐसे निवेश करने की आपाधापी न करें, जो रिस्क बर्दाश्त करने की आपकी क्षमता और आपके वित्तीय लक्ष्यों के मुताबिक न हो।