ऐसा था गुरु नानक का जीवन, धूप में लेटे थे सांप ने की छाया

ऐसा था गुरु नानक का जीवन, धूप में लेटे थे सांप ने की छाया

गुरु नानक देव ने सिख धर्म की स्थापना की थी। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन और सुख का ध्यान न करते हुए दूर-दूर तक यात्राएं की और लोगों के मन में बस चुकी कुरीतियों को दूर करने की दिशा में काम किया। इस साल 23 नवंबर, शुक्रवार को इनका जन्मदिन है। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को इनका जन्मदिन प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।

नानकजी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है।

इनके पिता का नाम कल्याणचंद या मेहता कालूजी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था। नानक बचपन से ही प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। बचपन से ही इनमें सांसारिक विषयों के प्रति कोई खास लगाव नहीं था। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा और मात्र 8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली।

इनके प्रश्नों के आगे खुद को निरुत्तर जानकर इनके शिक्षक इन्हें लेकर इनके घर पहुंचे तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़कर चले गए। इसके बाद नानक का सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत होने लगा। छोटे बच्चे की ईश्वर में इतनी आस्था देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य मानने लगे क्योंकि नानक ने बचपन में ही कुछ ऐसे संकेत दिए थे कि लोगों की आस्था इनमें बढ़ने लगी। यहां तक कि इनके ग्राम प्रमुख शासक राय बुलार भी इनमें आस्था रखते थे। इनकी बहन नानकी इन्हें बहुत प्रेम करतीं और इनमें गहरा विश्वास रखती थीं।

इनके जीवन से जुड़ी एक घटना इस प्रकार है कि एक बार बालक नानकजी सो रहे थे, सोते समय सूरज की छाया उनके मुख पर पड़ रही थी। सूरज की तपिश से उनकी नींद न टूटे इसलिए पास ही बने बिल में रहनेवाले एक सांप ने अपने फन से इनके सिर पर अपनी छाया कर ली।

नानक का विवाह सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले श्री मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। फिर 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों बेटों के जन्म के उपरांत 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा पर निकल गए। इन्होंने न केवल भारत वर्ष में बल्कि अरब, फारस और अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों की यात्राएं भी कीं।