कोर्ट की रोक के बाद भी पैरंट्स परेशान, बढ़ी फीस दें या न दें!

 नई दिल्ली 
दिल्ली हाई कोर्ट ने 8 अप्रैल तक उन स्कूलों द्वारा बढ़ी हुई फीस वसूले जाने पर रोक लगा दी है लेकिन पैरंट्स परेशान है। उन स्कूलों द्वारा बढ़ी हुई फीस वसूले जाने पर रोक लगाई गई है जो डीडीए जमीन पर बनाए गए हैं लेकिन पैरंट्स इस बात को लेकर कन्फ्यूज्ड हैं कि उनके बच्चे के स्कूल पर यह रोक लागू होगी या नहीं। गुरुवार को पैरंट्स की परेशानी स्कूलों के आगे नजर आई। घबराए पैरंट्स को हाई कोर्ट की रोक ने गुरुवार को हिम्मत दी और कई स्कूलों में प्रिंसिपल से मिलने की मांग के साथ भीड़ पहुंची। कहीं पैरंट्स का प्रदर्शन हुआ, तो कहीं प्रिंसिपल और मैनेजमेंट के बुरे बर्ताव की शिकायतें सामने आईं। 15 हजार से लेकर 1 लाख तक का एरियर और बढ़ी हुई फीस पैरंट्स के लिए बड़ी मुसीबत बन गई है। इसके अलावा कई स्कूल ऐसे हैं, जिसने बढ़ी हुई फीस और एरियर्स ले भी लिए हैं, वे और भी परेशान हैं। 
 
दिल्ली सरकार ने कहा है कि बड़े-बड़े नाम वाले प्राइवेट स्कूलों के अकाउंट्स का गहराई से ऑडिट कराने से यह सामने आया है कि इन स्कूलों में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक टीचर्स को सैलरी देने के बाद भी करोड़ों रुपये का सरप्लस बचता है। डेप्युटी सीएम और एजुकेशन मिनिस्टर मनीष सिसोदिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि दिल्ली सरकार प्राइवेट स्कूलों के टीचर्स की सैलरी बढ़ाने के खिलाफ नहीं है और सरकार 17 अक्टूबर 2017 को सातवें वेतन आयोग को लागू करने के आदेश जारी कर चुकी है। सरकार ने साफ कर दिया था कि जिन स्कूलों के पास सरप्लस है, वे इस अमाउंट से टीचर्स की सैलरी बढ़ाएं और बाकी स्कूल फीस बढ़ाने के लिए दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग से मंजूरी लें। यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि सरकार टीचर्स की सैलरी बढ़ाने के खिलाफ है। प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी का टीचर्स के लिए सातवें वेतन आयोग को लागू करने से कोई लेना-देना नहीं है। 

सिसोदिया ने कहा कि प्राइवेट स्कूल भी एजुकेशन सिस्टम का हिस्सा हैं और सरकार इनकी स्वायतत्ता में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कानूनी स्थिति यह है कि डीडीए से रियायती दरों पर जमीन लेने वाले प्राइवेट स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले सरकार की मंजूरी लेनी होगी। दिल्ली में ऐसे स्कूलों की संख्या करीब 325 है, जिनमें से 265 ने पहले फीस बढ़ोतरी का प्रपोजल दिया था लेकिन जब सरकार ने खातों की जांच शुरू की तो 32 स्कूलों ने प्रपोजल वापस ले लिया। इस तरह से 92 स्कूलों ने एक तरह से मान लिया था कि उनके पास इतना सरप्लस है कि वे टीचर्स को सातवें वेतन आयोग के मुताबिक सैलरी दे सकते हैं। 233 स्कूलों के खातों की जांच हुई औ्र 150 स्कूलों के पास सरप्लस पैसा पाया गया और उनके प्रपोजल को रिजेक्ट कर दिया गया। बाकी 83 स्कूलों के खातों की जांच चल रही है। इनमें से जिन स्कूलों के पास सरप्लस नहीं है, उनमें से कुछ को फीस बढ़ाने की इजाजत दी गई है।