देवरिया में रमापति राम त्रिपाठी, जाति का गणित फिट, बाहरी के नाम पर विरोध

देवरिया में रमापति राम त्रिपाठी, जाति का गणित फिट, बाहरी के नाम पर विरोध

 
देवरिया 

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की है. पार्टी ने गोरखपुर से भोजपुरी अभिनेता रवि किशन को मैदान में उतारा है. जबकि हाल ही में जूता कांड से चर्चा में आए संतकबीर नगर के सांसद शरद त्रिपाठी का टिकट काट कर उनके पिता रमापति राम त्रिपाठी को देवरिया से टिकट दिया है.

रमापति राम त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाने को लेकर माना जा रहा है कि बीजेपी ने देवरिया के जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की है. बीजेपी के इस कदम को लेकर स्थानीय लोगों में मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिली. एक पक्ष का मानना है कि कलराज मिश्रा के बाद दोबारा बाहरी प्रत्याशी को उतारना देवरिया का दुर्भाग्य है, वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि बाहर से उम्मीदवार लाकर बीजेपी ने स्थानीय खेमेबाजी को रोकने का काम किया है.  

देवरिया स्थित बाबा राघवदास डिग्री कॉलेज (बीआरडीपी) में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. समरेंद्र बहादुर सिंह रामपति राम त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाए जाने को गैर तार्किक मानते हैं. उनका कहना है कि, ‘बीजेपी का स्थानीय कार्यकर्ता सालों भर झंडे बैनर लेकर पार्टी के लिए काम करता है. ठंड हो, बरसात हो, गर्मी हो, हर मौसम में पार्टी के लिए काम करता है, लेकिन जैसे ही चुनाव लड़ने की बारी आती है, बाहरी प्रत्याशी का लाकर थोप दिया जाता है.’ उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रत्याशी से लोग मिलने में सहजता महसूस करते हैं. शादी ब्याह में बुलाते हैं, एक आत्मीयता महसूस करते हैं, बाहरी में वो बात नहीं होती है.

वहीं एक राष्ट्रीय दैनिक के स्थानीय संस्करण में पत्रकार शशिकांत मिश्रा कहते हैं कि देवरिया में कई लोगों के नामों को लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें प्रत्याशी बनाया जा सकता है, लेकिन बीजेपी का यह फैसला चौंकाने वाला है. हालांकि उनका मानना है कि इससे बीजेपी के कोर वोटर पर कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.

पत्रकार विजय पासवान कहते हैं कि स्थानीय प्रत्याशी होता तो उसका पक्ष ज्यादा मजबूत होता, वह लोगों से आसानी से मिल पाता. लेकिन बाहरी उम्मीदवार के लिए स्थानीय जनता से मेल-मिलाप करने में ही काफी समय लग जाएगा और चुनाव में ज्यादा समय नहीं बचे हैं. लिहाजा रमापति राम त्रिपाठी को लोगों को जानने पहचानने और लोगों को उन्हें जानने पहचानने की एक चुनौती होगी. जूता कांड का जिक्र करते हुए वह भोजपुरी में बताते हैं कि चौक चौराहों पर लोग यह कहते सुने जा सकते हैं ‘देखअ...जूता खोरवा का बाप आइल बा.’

देवरिया के बीआरडीपी कॉलेज में पढ़ा रही डॉ. भावना सिन्हा कहती हैं कि इससे बीजेपी ने पार्टी में स्थानीय गुटबाजी और समीकरण को साधने की कोशिश की है. उन्होंने कहा, ‘असल में, देवरिया में बीजेपी को बाहरी प्रत्याशी भेजना मजबूरी है, यहां हर मोहल्ले में एक प्रत्याशी थे.’ लेकिन वह यह भी कहती हैं कि बाहरी प्रत्याशी लेकर स्थानीय लोगों में नाराजगी है, वह नाराजगी सोशल मीडिया में भी दिख रही है.

डॉ. सिन्हा कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यंग जनरेशन को राजनीति में आने की हिमायत करते हैं, लेकिन देवरिया के लिए प्रत्याशी चुनते वक्त इस सिद्धांत पर अमल नहीं दिखता है. उनका मानना है कि इसका असर वोटिंग पर पड़ सकता है, वह कहती हैं कि दो चीजें हो सकती हैं या तो NOTA का बटन ज्यादा दबेगा या वोटिंग परसेंट प्रभावित होगा. जूता कांड के जिक्र पर वह कहती हैं कि देवरिया में राजपूत और ब्राह्मण का सवाल कायम है. जाहिर है जूता कांड हवा में बना रहेगा.

बैंक ऑफ बड़ौदा के सेवानिवृत्त डीजीएम एपी जायसवाल इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. बाहरी प्रत्याशी की बात को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि यह कोई मुद्दा ही नहीं है. स्थानीय स्तर पर पार्टी में कई गुट बन गए थे. हर कोई दावेदारी कर रहा था. लिहाजा बीजेपी की सर्वे टीम ने अच्छा सुझाव दिया और पार्टी ने उसी के अनुसार कदम उठाया होगा. एपी जायसवाल का मानना है कि देवरिया का राजनीतिक और जातिगत समीकरण रमापति राम त्रिपाठी के लिए मददगार साबित होगा.

जूता कांड का खामियाजा

कुछ दिन पहले संत कबीर नगर से बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी और मेंहदावल से पार्टी के विधायक राकेश बघेल के बीच कलेक्ट्रेट में एक बैठक के दौरान मारपीट हो गई थी. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. माना जा रहा है कि इस घटना से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व काफी नाराज था, जिसका खामियाजा शरद त्रिपाठी को उठाना पड़ा.