मलेरिया से मौत को ऐक्सिडेंट माने या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला

मलेरिया से मौत को ऐक्सिडेंट माने या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला

 
नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट के सामने एक अनोखा सवाल आया कि क्या मच्छर काटने से मलेरिया होने के कारण हुई मौत को ऐक्सिडेंट का केस माना जाए और ऐक्सिडेंटल इंश्योरेंस पॉलिसी का लाभ मिलेगा? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्लू, वायरल के कारण होने वाली मौत का मामला ऐक्सिडेंट नहीं है। मच्छर से मलेरिया बीमारी होना भी चांस की बात है। इन्सेक्ट काटने से होने वाली बीमारी नेचरल है और यह ऐक्सिडेंट नहीं है। 
मलेरिया सामान्यतौर पर मच्छर के काटने से मानव में फैलता है। वहीं वायरस के कारण भी बीमारी फैलती है और यह रोजाना के जीवन में होता है और इसे आकस्मिक और अप्रत्याशित एक्सिडेंट नहीं कह सकते। 
 
नैशनल कंज्यूमर फोरम का फैसला पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में जिस शख्स का इंश्योरेंस हुआ था, उसकी मौत मोजांबिक में मलेरिया से हुई थी। इस देश में हर तीसरा शख्स मलेरिया की चपेट में आते हैं और इस तरह मलेरिया बीमारी को हम ऐक्सिडेंटल नहीं मान सकते। नैशनल कंज्यूमर फोरम ने मच्छर काटने से मलेरिया के कारण हुई मौत को ऐक्सिडेंट की श्रेणी में रखते हुए इंश्योरेंस कंपनी को क्लेम का भुगतान करने को कहा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कंज्यूमर फोरम के फैसले को पलट दिया। 

सुप्रीम कोर्ट में अनोखा सवाल
जिला उपभोक्ता अदालत, राज्य उपभोक्ता अदालत और नैशनल कंज्यूमर फोरम ने अपने फैसले में कहा था कि मच्छर काटने से मलेरिया के कारण हुई मौत ऐक्सिडेंट की श्रेणी में आएगा, इस फैसले को इंश्योरेंस कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच के सामने यह अनोखा सवाल था कि क्या मच्छर काटने से मलेरिया के कारण हुई मौत का मामला ऐक्सिडेंट से हुई मौत माना जाए? 

बैंक लोन को कवर करने के लिए ली गई थी पॉलिसी 
दरअसल देवाशीष भट्टाचार्य नामक शख्स ने सरकारी बैंक से 16 जून 2011 को होम लोन लिया था। उनकी 19105 रुपये की 113 किश्त बनी थी। उन्होंने लोन सुरक्षा बीमा कराया। इंश्योरेंस कंपनी से नॉन लाइफ प्रॉडक्ट लिया था इसके तहत भूकंप, आग के साथ-साथ पर्सनल ऐक्सिडेंट को कवर किया गया था। इंश्योरेंस लेने वाले शख्स की पोस्टिंग असम में थी फिर वहां से वह मोजांबिक चला गया। वहीं उसे मच्छर ने काटा और मलेरिया से उसकी 22 जनवरी 2012 को मौत हो गई। 

परिजनों ने लगाई लोन कवर की अर्जी 
उसके घर वालों ने जिला उपभोक्ता अदालत बारासात (वेस्ट बंगाल) में अर्जी लगाकर अपना दावा पेश किया और कहा कि पॉलिसी के तहत बाकी की किश्तों का भुगतान इंश्योरेंस कंपनी करे। इंश्योरेंस कंपनी ने दावा किया कि इंश्योरेंस कवरेज में ऐक्सिडेंट से मौत कवर है, मच्छर काटने से मलेरिया के कारण हुई मौत कवर नहीं है। जिला उपभोक्ता अदालत ने कहा कि इंश्योरेंस कंपनी बाकी की किस्त का पेमेंट करे। 

नैशनल कंज्यूमर फोरम ने बरकरार रखा फैसला 
इसके बाद पहले राज्य उपभोक्ता अदालत और फिर नैशनल कंज्यूमर फोरम दिल्ली ने भी जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले को बहाल रखा। नैशनल कंज्यूमर फोरम ने अपने फैसले में कहा कि इंश्योरेंस कंपनी की वेबसाइट कहती है कि कुत्ता काटना, घोड़ा काटना और सांप काटने से हुई मौत भी ऐक्सिडेंट है। ऐसे में यह स्वीकार करना मुश्किल है कि मच्छर से मौत बीमारी है ऐक्सिडेंट नहीं। 

मलेरिया बीमारी से मौत ऐक्सिडेंट नहीं 
इस फैसले को इंश्योरेंस कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई आदमी फ्लू और वायरल से सफर करे तो वह ऐक्सिडेंट नहीं है। यह मैटर ऑफ चांस है। मच्छर से मलेरिया होना भी मैटर ऑफ चांस है। इंसेक्ट (कीड़ा ) काटने से बीमारी नेचरल है और यह एक्सिडेंट नहीं है। नैचरल कोर्स में बीमारी फैलना और मौत ऐक्सिडेंट नहीं है। मौजूदा केस में मौत मलेरिया से हुई है। यहां दलील दी गई कि मच्छर काटने से मलेरिया हुआ और मौत हुई यह ऐक्सिडेंट है, लेकिन हम इस दलील से सहमत नहीं हैं। मोजांबिक में यह मौत हुई है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि वहां हर तीसरे शख्स को यह बीमारी होती है ऐसी स्थिति में हम मलेरिया बीमारी को ऐक्सिडेंट नहीं मान सकते। ऐसे में नैशनल कंज्यूमर फोरम का फैसला खारिज किया जाता है। अदालत ने हालांकि कहा कि जो किश्त इंश्योरेंस कंपनी भुगतान कर चुकी है उसकी रिकवरी न की जाए।