यहां मंत्री के सामने चुनौती बने बागी पूर्व मंत्री, 14 -14 घंटे प्रचार कर रहे कुसमारिया
दमोह
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। लेकिन बावजूद इसके बीजेपी की राह कठिन बनी हुई है। दमोह विधानसभा सीट जो कि पिछले 28 साल से बीजेपी के कब्जे में है अब हाथ से फिसलती हुई नजर आ रही है। यहां बीजेपी को कांग्रेस से कम और अपनों से ज्यादा खतरा दिखाई दे रहा है। इस बार राज्य के वित्त मंत्री और भाजपा विधायक जयंत मलैया के सामने ना सिर्फ कांग्रेस के राहुल सिंह लोधी बल्कि भाजपा से बागी बने निर्दलीय प्रत्याशी रामकृष्ण कुसमासिया भी है। अभी तक इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रहती आई है लेकिन इस बार के समीकरण कुछ और है। कुसमारिया भाजपा का गणित बिगाड़ सकते है।
दरअसल, इस सीट पर कुल 2.12 लाख मतदाता हैं। कांग्रेस ने मलैया को हराने के लिए हर विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार बदले पर कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार जयंत मलैया को चुनाव नहीं हरा सका। हां कई बार मलैया को कड़ी टक्कर जरूर मिली पर परिणाम बीजेपी के ही पक्ष में रहे। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के जयंत मलैया और कांग्रेस के चंद्रभान के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली थी। इस चुनाव में मलैया को 5 हजार वोट से जीत मिली थी, जबकि वोट फीसदी का अंतर सिर्फ 3.3 ही रहा।इसके अलावा बीएसपी और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी ने भी इस सीट पर चुनाव लड़ा था। इससे पहले भी साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के जयंत मलैया और कांग्रेस के चंद्रभान के बीच और भी कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। नतीजों में बीजेपी के मलैया को सिर्फ 130 वोटों से जीत मिली थी। इस चुनाव में हार-जीत में 0.1 फीसदी वोटों का अंतर रहा।
इस चुनाव में बीएसपी को करीब 7 फीसदी वोट हासिल हुए थे। इस बार कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदला है। कांग्रेस ने यहां से राहुल सिंह लोधी को मैदान में उतारा है । वही टिकट ना मिलने से नाराज भाजपा के दिग्गज नेता औऱ पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमासिया मैदान में है।दमोह में कुसमरिया का एक बड़ा जनाधार है जो चुनाव में बीजेपी का गेम प्लान चौपट कर सकता है।कांग्रेस को भरोसा है कि कुसमारिया के चुनाव लड़ने से भाजपा के पारंपरिक कुरमी वोटों के बिखराव का लाभ उसे ही मिलेगा। ऐसे में भाजपा के पारंपरिक लोधी-कुरमी वोटों का गणित गड़बड़ाने की स्थिति बनी हुई है। भाजपा, कांग्रेस और बसपा के राष्ट्रीय नेता भी पार्टी की साख बचाने में जुटे हुए हैं।
खबर है कि कुसमारिया चुनावी तैयारियां जोरों-शोरों से कर रहे है। कुसमारिया के घर देर रात तक कार्यकर्ताओं की चहल-पहल देखने को मिल रही है।चुनावी रणनीतियां बनाई जा रही है। कुसमरिया 14-14 घंटे जनसंपर्क कर रहे हैं। जनता से सीधा संपर्क साधा जा रहा है।उधर एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के चलते सवर्ण वर्ग खासतौर पर ब्राह्मण सत्ताधारी दल से खफा चल रहे हैं। यही कारण है कि 2008 और 2013 का चुनाव बारीक अंतर से जीते मलैया की नींद उड़ी हुई है। पुख्ता चुनावी मैनेजमेंट विनम्र स्वभाव और सहजता मलैया का सकारात्मक पक्ष है, लेकिन उनके करीबियों के नाम पर कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों की विपरीत राय बाधक भी बन रही है।।