25 सालों से बिहार को रुला रहा है AES, आठ सालों में 344 बच्चों ने गंवाई जान
पटना
बिहार में हो रही बच्चों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. लगातार हो रही मासूमों की मौत सिस्टम के सामने किसी पहेली सरीखी साबित हो रही है जिसे न तो डॉक्टर और न ही कोई सरकार सुलझा पा रही है. अबूझ पहेली का रूप अख्तियार कर चुकी एईएस नाम की इस बीमारी पर काबू पाने के दावे तो हर साल किए जाते हैं लेकिन ये बातें इस बीमारी के आने पर पूरी तरह से बेईमानी साबित हो जाती हैं.
एईएस से होने वाली मौत की बात करें तो अकेले इस साल एईएस से बिहार में अब तक 97 बच्चों की मौत हो चुकी है जबकि कई अभी भी मौत के मुंह में हैं. हर मिनट अस्पताल से किसी मां के चीखने या फिर रोने की आवाज निकल कर आती है. मुजफ्फरपुर शहर के दो अस्पतालों के आईसीयू पूरी तरह से बच्चों से भरे हैं और इन आईसीयू में एक-एक बेड पर तीन-तीन बच्चों का इलाज हो रहा है.
बिहार के लिए एईएस ऐसे ही अबूझ पहेली नहीं बना है. इस बीमारी ने 24 साल पहले यानि 1995 में दस्तक दी थी. तब एईएस ने महामारी के रूप में दस्तक दी थी, जिसका कहर आज भी जारी है.
एईएस से होने वाली मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. पिछले 8 सालों की बात करें तो इस दौरान 1134 बच्चे बीमारी का शिकार हुए हैं जिनमें से 344 बच्चों की मौत हो चुकी है, वहीं कई बच्चे विकलांगता के शिकार हो गए हैं.