मप्र पंचायत चुनाव: OBC सीटों पर चुनाव कराने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

मप्र पंचायत चुनाव: OBC सीटों पर चुनाव कराने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

बेंच ने कहा कि आप तत्काल अपनी गलती सुधारिए

भोपाल, मध्य प्रदेश में पंचायत चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश ओबीसी सीटों को लेकर मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से 4 दिसंबर को जारी चुनाव अधिसूचना पर रोक लगाने संबंधी याचिका पर दिया है। जस्टिस एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार की बेंच ने राज्य निर्वाचन आयोग को स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य वर्ग के लिए अधिसूचित करने के निर्देश दिए हैं। 

बेंच ने कहा कि ओबीसी रिजर्वेशन नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट के विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र सरकार फैसले के विरुद्ध है। बेंच ने यह भी कहा कि इसी तरह का ओबीसी कोटा महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में लागू किया गया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।  

यह है आदेश
जस्टिस खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा- "मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना में ओबीसी के लिए 27% सीटों को आरक्षित रखा गया है। यह आरक्षण महाराष्ट्र के संबंध में हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। हम राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश देते हैं कि वह सभी स्थानीय निकायों में ओबीसी सीटों के लिए आरक्षित चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगाए। उन सीटों को सामान्य वर्ग के लिए दोबारा नोटिफाई किया जाए।"

राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार
बेंच ने कहा कि आप तत्काल अपनी गलती सुधारिए। सरकार आपसे क्या कह रही है, यह मत सुनो। कानून जो कहता है, वह करो। अगर चुनाव संविधान के अनुसार हो रहे हैं, तो कराइए। हम चाहते हैं कि टैक्सपेयर्स के पैसे का नुकसान न हो। हम नहीं चाहते कि राज्य निर्वाचन आयोग किसी और के कहने पर कुछ भी करे। हम इस मामले में और ज्यादा कंफ्यूजन नहीं चाहते। अगर चुनाव कराए, तो जनता का पैसा बर्बाद भी हो सकता है। आप उसकी चिंता करें। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आग से न खेलें
नोटिफिकेशन पर नाराजगी व्यक्त करते हुए बेंच ने राज्य निर्वाचन आयोग से यह भी कह दिया कि प्लीज, आग से न खेलें। आपको इस परिस्थिति को समझना चाहिए। राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के आधार पर फैसले मत लीजिए। हर राज्य का पैटर्न अलग है? भारत का सिर्फ एक ही संविधान है और अब तक एक ही सुप्रीम कोर्ट है। हम नहीं चाहते कि मध्य प्रदेश में कोई भी प्रयोग हो और महाराष्ट्र जैसा फैसला वहां भी आए। तब जनता का पैसा बर्बाद होगा। 

14 हजार 525 अभ्यर्थी फार्म जमा कर चुके
प्रदेश में पहले और दूसरे चरण के पंचायत चुनाव के लिए अब तक 14 हजार 525 अभ्यर्थी फार्म जमा कर चुके हैं। शुक्रवार को आठ हजार 81 नामांकन जमा किए गए। जिला पंचायत सदस्य के लिए 186, जनपद पंचायत सदस्य के लिए 695, सरपंच पद के लिए 4 हजार 781 और पंच पद के लिए 2 हजार 419 अभ्यर्थियों ने फाॅर्म जमा किए। शनिवार को भी नामांकन पत्र जमा किए जाएंगे।

बता दें कि अब तक जिला पंचायत सदस्य के लिए 302, जनपद पंचायत सदस्य के लिए 1 हजार 132, सरपंच पद के लिए 9 हजार 371 और पंच पद के लिए 3 हजार 720 अभ्यर्थियों द्वारा फार्म जमा किए जा चुके हैं। नामांकन फाॅर्म जमा करने की अंतिम तारीख 20 दिसंबर है। इनकी जांच 21 दिसंबर को होगी और 23 दिसंबर तक नाम वापस लिए जा सकेंगे

आयोग ले रहा कानूनी सलाह
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंचायत चुनाव को लेकर दिए आदेश के मद्देनजर राज्य निर्वाचन आयोग और राज्य सरकार में मंथन का दौर शुरू हो गया है। दोनों अपने-अपने स्तर पर कानूनी सलाह ले रहे हैं। इसके बाद ही चुनाव के संबंध में आगामी निर्णय लिया जाएगा।

वर्तमान आरक्षण व्यवस्था
प्रदेश के 52 जिलों के हिसाब से आठ जिला पंचायत अनुसूचित जाति, 14 अनुसूचित जनजाति और 13 अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हो रही थीं। प्रदेश में आरक्षण की जो व्यवस्था है उसके तहत जिस जिले में अनुसूचित जाति-जनजाति का आरक्षण 50 प्रतिशत से कम होता है वहां अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रविधान है।

इनका कहना है
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का परीक्षण कराने के बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के आम निर्वाचन के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित पंच, सरपंच, जनपद व जिला पंचायत सदस्य के पदों की निर्वाचन प्रक्रिया को स्थगित किया गया है। आगामी निर्णय विधि विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद लिया जाएगा।
- बीएस जामोद,सचिव राज्य निर्वाचन आयोग।

यह है मामला 
यह फैसला मनमोहन नागर बनाम मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग मामले में आया है। याचिकाकर्ताओं ने मध्य प्रदेश ऑर्डिनेंस नंबर 14/2021 मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज (संशोधन) अधिनियम 2021 को चुनौती दी थी। इसमें मध्य प्रदेश में पंचायत चुनावों में आरक्षण और परिसीमन को लेकर प्रावधान किए गए थे। कांग्रेस नेता सैयद जाफर, जया ठाकुर एवं अन्य ने अपनी याचिका में कहा है कि अध्यादेश पंचायत चुनाव अधिनियम की मूल भावना के विपरीत है। यह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है। यह रोटेशन व्यवस्था के खिलाफ है। इस वजह से अध्यादेश को रद्द किया जाए। 
इस याचिका पर ग्वालियर बेंच ने 7 दिसंबर को आदेश में अंतरिम राहत देने से इनकार किया था। इसके बाद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और विजय कुमार शुक्ला ने 9 दिसंबर को अंतरिम राहत देने से इनकार किया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि जब सहयोगी बेंच ने अंतरिम आदेश जारी कर दिया है तो नया आदेश देना न्यायिक अनुशासन के विपरीत होगा। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। 15 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को 16 दिसंबर को हाईकोर्ट के सामने अंतरिम राहत के लिए आवेदन में संशोधन करने की अनुमति दी थी। शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा था कि हाईकोर्ट के सामने 4 दिसंबर 2021 की चुनाव अधिसूचना को चुनौती नहीं दी गई थी।