मतदान का डाटा सार्वजनिक करने की मांग करने वालों को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने कहा बीच में दखल नहीं

मतदान का डाटा सार्वजनिक करने की मांग करने वालों को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने कहा बीच में दखल नहीं

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के बीच में बूथ वाइज वोटर्स का डेटा सार्वजनिक करने के मामले में निर्देश देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को प्रति बूथ पर पड़े कुल वोटों की जानकारी प्रकाशित करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चुनाव चल रहा है और बीच में दखल नहीं हो सकता है। मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने गर्मी की छुट्टी के बाद के लिए टाल दी है।

चुनाव वाले दिन वोटिंग प्रतिशत कुछ और होता है और एक हफ्ते बाद कुछ और

दरअसल लोकसभा चुनावों के बीच कई राजनीतिक दलों ने वोटिंग के आंकड़ों में गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। राजनीतिक पार्टियों का दावा है कि चुनाव वाले दिन वोटिंग प्रतिशत कुछ और होता है और एक हफ्ते बाद कुछ और। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17C की स्कैन्ड कॉपी अपलोड करने का आदेश दे।

एडीआर की अर्जी पर सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शनिवार को छठे फेज का चुनाव होगा, ऐसे में चुनाव आयोग की परेशानी को हम समझ सकते हैं क्योंकि उसके लिए मैन पावर चाहिए और ग्राउंड पर स्थिति हम समझते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एडीआर की अर्जी पर सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद के लिए तय कर दी है। जस्टिस दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हम सीधे तौर पर अर्जी पर सुनवाई टालते हैं। सिर्फ यह टिप्पणी करते हैं कि इस स्टेज पर रिलीफ क्यों नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पहली नजर में हम इस स्टेज पर रिलीफ देने के पक्ष में नहीं हैं।  

इससे पहले शुक्रवार को सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने दलील दी है कि 19 मई की अर्जी एक क्लासिक केस है कि कैसे कानून का दुरुपयोग किया जाए। एडीआर की ओर से दवे ने कहा कि यह केस नहीं है कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसमें एक मामला पहले के काउंटिंग से पहले से संबंधित है और दूसरा मामला काउंटिंग के बाद का है।

जस्टिस दत्ता ने कहा कि मनिंदर सिंह को पहले सुनते हैं? मनिंदर सिंह ने कहा कि यह याचिका सिर्फ संदेह और गलत आरोपों पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दे रखा है और संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। जजमेंट सुबह दिया गया और फिर याचिका दायर कर दी गई कि इसमें अमुक बात कवर नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम और वीवीपीएटी के मिलान की अर्जी 26 अप्रैल को खारिज कर चुकी है। इस तरह की पहल लोगों के हितों को नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि चुनाव के सेंटिटी पर सवाल उठाया जा रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल को जो फैसला दिया था उसमें धारा-49 एस और फॉर्म 17 सी को डील कर चुका है। सिर्फ संदेह के आधार पर और अंदेशे के आधार पर यह नहीं बताया जा सकता है कि सिस्टम में गलती हो रही है। याचिका में कहा गया है कि 5-6 फीसदी वोटों का अंतर हो रहा है और यह गलत आरोप है।

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