मंडला - रज़ा फाउंडेशन एवं कृष्णा सोबती शिवनाथ निधि द्वारा हिंदी युवा लेखकों का रज़ा समारोह रज़ा साहब के जन्म शती वर्ष में उनके जन्मभूमि मण्डला में आयोजित हुआ। मण्डला के झंकार सभागार में युवा 2022 का दूसरा दिन मलयालम केअयप्पा पणिक्कर, उड़िया के रमाकांत रथ और मराठी के अरुण कोलटकर जैसे भारतीय भाषा के मूर्धन्य कवियों पर केंद्रित रहा। दूसरे सत्र का पहला सत्र अयप्पा पणिक्कर पर केंद्रित था। इस सत्र की पहली वक्ता कवयित्री अनामिका अनु ने कहा कि अयप्पा पणिक्कर की कविताएं प्रयोगधर्मी है। इन कविताओं में दुःख, अवसाद और विस्थापन के पारंपरिक बिम्बों के साथ आधुनिकता बोध का भी चित्रण है। अयप्पा की कार्टून कविता में व्यंग्य सामाजिक और राजनैतिक विद्रूपताओं का द्वंद्व अभिव्यक्त हुआ है। अयप्पा की सभी कभी कविताएँ संवादधर्मी हैं। अगले वक्ता मयंक ने कहा कि अयप्पा ने मलयालम कविता को वैश्विकता दी। उन्होंने मलयालम साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचनात्मक हस्तक्षेप किया। वे आधुनिक मलयालम साहित्य के प्रस्थान बिंदु हैं जिनकी रचनाओं में परम्परा के बरक्स आधुनिक मूल्य बोध का स्वर अधिक मुखर है। मनुष्य के आंतरिक एवं बाह्य द्वंद्व को अपनी रचनाओं में अयप्पा ने उकेरा। इनकी रचनाओं का संसार वैविध्यपूर्ण एवं कौतूहलपूर्ण है। इस सत्र के अंतिम वक्ता आलोचक योगेश प्रताप शेखर ने आलोकधन्वा की कविता 'मैं भी भारत में पैदा होने का मतलब जानना चाहता था' की प्रतिध्वनि से युवा 2022 को समझा जा सकता है। अयप्पा पणिक्कर की कविताएँ भारतीय सामाजिक संरचना के विद्रूपताओं का महिमामंडन नहीं बल्कि उसकी सजग उद्घाटनकर्ता हैं। वे आधुनिक भारतीय जीवन एवं राजनैतिक स्थितियों की विसंगतियों के सहज रचनाकार हैं। प्रेम के नाम पर इन कविताओं में कुंठा नहीं है। अयप्पा के सर्वाधिक निकट हिंदी के पड़ोसी कवि धूमिल और राजकमल चौधरी हैं। करुणा और टीस के बुनियाद पर परंपरा एवं विद्रूप की गूंज, आधुनिकता को व्यक्त करने की बेचैनी, संबंध, प्रेम और कड़वाहट की शैली अयप्पा पणिक्कर की कविताओं के मूल तत्व हैं।

दूसरे दिन का दूसरा सत्र उड़िया के कवि रमाकांत रथ पर केंद्रित था। इस सत्र के पहले वक्ता युवा आलोचक जगन्नाथ दुबे ने कहा कि हिंदी काव्य परम्परा से रमाकांत रथ का जुड़ाव अपनेपन का सघन जुड़ाव है। रमाकांत रथ के यहाँ एक दार्शनिक चिंतन कविता के परस्पर चलता रहता है। पुत्र के मृत्यु से पैदा हुआ विचलन अंधेरे के रूप में उनकी कविताओं का निर्णयक रूप है। रमाकांत रथ ने मृत्युबोध को एक दार्शनिक ऊँचाई दी है जो कुँवर नारायण एवं टैगोर के मृत्युबोध से अलहदा और विशिष्ट है। जैसे निराला ने अपनी कविता सरोज स्मृति में मृत्यु की पीड़ा को सामाजिक स्वीकार्यता दी ठीक वैसे ही रमाकांत रथ उड़िया में उस पीड़ा को सामाजिक स्वीकार्यता दिलाते हैं। इस सत्र की अगली वक्ता कवयित्री नताशा ने कहा कि रमाकांत रथ आधुनिकता बोध से संपृक्त कवि हैं। सूरदास की कविताओं से लेकर भारती की कनुप्रिया तक रथ की श्री राधा एक सायुज्यता निर्मित करती है। रमाकांत के यहां प्रेम का प्रतिदान नहीं स्त्रीत्व की मांग है। प्रेम में निहित रहस्यवाद के साथ-साथ स्त्री मुक्ति की गहन आकांक्षा और उत्सवधर्मी चित्त का रेखांकन और पितृसत्ता का सहज नकार है। रथ की श्रीराधा में आध्यात्मिकता का विचार नहीं बल्कि प्रेम का गहन अर्थ देने की कोशिश है। अगले वक्ता के तौर पर कवि शंकरानंद ने कहा कि कोई भी रचनाकार अपने समय के सरोकारों के साथ ही सम्भव होती है रथ की कविताओं में निहित भाव और सम्वेदना उन्हें महत्वपूर्ण बनाती हैं। रथ की कविताओं में निहित भाव और सम्वेदना उन्हें महत्वपूर्ण बनाती है। इन कविताओं की भाव, शिल्प, सम्वेदना और भाषा चकित करती है। यह उतनी ही हिंदी की है जितनी उड़िया की। रहस्य, कौतुक और प्रेम की भावभूमि पर ये कविताएँ सम्भव होती है जिनमें शोक के बरक्स जीवन का ताप बहुत गहरा है जिसमें निहित उदासी हताश नहीं करती है। इन कविताओं का आधार अर्थ की बहुलता पर टिका हुआ है। अगले वक्ता के रूप में कथाकार अणुशक्ति सिंह ने कहा कि उड़िया कविता को रथ ने आधुनिक बनाया। इन कविताओं में एक ओर आम आदमी के जीवन की जद्दोजहद है तो दूसरी ओर आध्यात्मिकता का उच्च धरातल भी है। कवि रथ की कविताओं में निहित पलायन उनके रोमांटिक बोध का नतीजा है। रथ श्रीराधा में अधिक आध्यात्मिक और भावपूर्ण है। कवि इस सत्र की अंतिम वक्ता कवयित्री लवली गोस्वामी ने कहा कि अधिकतर कवियों ने राधा के जीवन को कृष्ण के आसपास ही दिखाया है जबकि रथ की राधा मनुष्य-जीवन के अधिक नजदीक है। रथ की राधा का साहस निराशा का साहस है। रथ के यहां सफलता की कामना से प्रदूषित नहीं है बल्कि इश्क का विलोपन मौजूद है। अप्राप्य की कामना और असफल प्रतीक्षा रथ की राधा को एकाकी और हठी बनाती है। रथ की श्रीराधा की विशिष्टता हिन्दू देवताओं के प्रति किया गया प्रतिप्रश्न है।

युवा 2022 का अंतिम सत्र मराठी के कवि अरुण कोलटकर पर एकाग्र है। इस सत्र की पहली वक्ता कवयित्री पूनम वासम ने कहा कि जीवन की छोटी से छोटी घटनाओं, स्थानिकता को अरुण कोलटकर ने अपनी कविताओं में दर्ज किया। पुलिसिया यथार्थ, अपराध आदि का सूक्ष्म वर्णन अरुण की कविता में मौजूद है। केवल नवीनता के आधार पर नहीं बल्कि उसके समांतर नई सृजनात्मकता एवं मानवीय साक्षात्कार के तत्व से अरुण कोलटकर की कविताएं सम्भव हुई हैं। व्यवस्था विरोध, भाषाई प्रयोग, विद्रोह का तीखा तेवर अरुण कोलटकर की कविता के आधार है। अरुण जी का बिम्ब विधान सर्वथा नया है। अगले वक्ता के रूप में अम्बर पांडेय ने कहा कि अरुण कोलटकर की कविताएँ बारादरी जैसी है किंतु उसके अन्तः पुर में प्रवेश कठिन है। अरुण कोलटकर के भाषाई प्रयोगों में विशेषणों को जगह कम है। कोलटकर दुनिया एवं स्व को दो अलग दुनिया नहीं मानते। कोलटकर शुरुआत में समझ में नहीं आते पर उन कविताओं का विट समझ आता है। अगले वक्ता के तौर पर बोलते हुए कवि वीरू सोनकर ने कहा कि कोलटकर अपनी कविताओं में एक नया सौंदर्य रचते हैं जिनमें एक विशेष कौंध है। अरुण कोलटकर की कविताओं पर पश्चिमी प्रभाव है। उनकी कविता विवरणात्मक हैं। वे कविता में कहे-अनकहे के सीमाओं को जानते हैं। तंज को वे कविता में निहित आधुनिकता बोध के साथ पकड़ते हैं। अरुण कोलटकर का गद्य उनकी कविताओं की तरह अराजक है। वे महानगरीय यांत्रिकता के बीचोंबीच मनुष्यता की शिनाख्त कर लेते हैं। सत्र के अगले वक्ता आलोचक कुमार सुशांत ने कहा कि अरुण कोलटकर सरल सुबोध भाषा में लिखते हैं। अपनी उबलती अनुभवों को अंगारे में नहीं फेंकते उनमें एक धीमी ऊष्मा होती है जिनमें एक लय होता है। कोलटकर के पास एक वैज्ञानिक सोच है। वे भाषा को लिरिकल बनाते हुए संगीत तक ले जाते हैं। सत्र की अंतिम वक्ता कवयित्री स्मिता सिन्हा ने कहा कि कला के अन्य विधाओं के साहचर्य के बावजूद अरुण का कविता से निकट का परिचय है। सैद्धांतिक आतंक के बिना भी सम्वेदना के साहचर्य से अच्छी कविता लिखी का सकती है। अरुण की कविता में अराजकता एवं व्यवस्थित जीवन में एक संतुलन है। वे अपनी कविताओं में विडम्बना और व्यवस्था विरोध रचते हैं। मिथकीय आडम्बर एवं अंधविश्वास के बरक्स वे मनुष्यता के सहज विश्वास के कवि हैं। अरुण कमल मनुष्यता के उत्सवधर्मी जयघोष के कवि हैं जहाँ ईश्वर मनुष्य की दुनिया से अपदस्थ किया जा चुका है।
युवा 2022 के समापन सत्र में कार्यक्रम के पर्यवेक्षक कवि असंग घोष, कवि-कथाकार आनंद हरसुल, कवि नरेंद्र पुण्डरीक, कवि-कथाकार-आलोचक प्रियदर्शन, वरिष्ठ कवि अरुण कमल और रज़ा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी और हिंदी के वरिष्ठतम कवि श्री अशोक वाजपेयी ने टिप्पणी की। कवि असंग घोष ने कहा कि युवाओं को सुनते हुए दो दिनी आयोजन में मैं काफी समृद्ध हुआ। कवि प्रियदर्शन ने कहा कि आज आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली को पुनर्व्याख्यायित करने की आवश्यकता है। कवि नरेंद्र पुण्डरीक ने कहा कि आने वाले कठिन समय के लिए युवाओं को तैयार रहना चाहिए। इन युवाओं की तैयारी हमें आश्वस्त करती है। कवि अरुण कमल ने कहा कि यहां आकर युवाओं के बारे में हमारी बनी बनाई पूर्व धारणाएं खंडित हुई हैं। रज़ा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी और हिंदी के वरिष्ठ कवि श्री अशोक वाजपेयी ने कहा कि इस बार का युवा तीन अर्थों में ऐतिहासिक है। पहले अर्थों में पहली बार हिंदी को अखिल भारतीय स्वरूप देने की कोशिश, दूसरे अर्थों में हिंदी के युवाओं ने पहली बार गैर हिंदी कवियों पर व्यस्थित विचार किया और तीसरे अर्थों में यह रज़ा के जन्मशती के अवसर पर उनके जन्मस्थान मण्डला में हुआ है। अशोक जी ने युवाओं को शब्दों के स्वयं सिद्धि से बचने के लिए चेताया। परम्परा, आधुनिकता, अमूर्तन आदि जैसे शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। युवाओं को अपने वक्तव्यों में भी अमूर्तन से बचना चाहिए। भाषा का आलोचना में असावधान प्रयोग से बचना चाहिए। शब्दों के इस्तेमाल में हमें सावधानी बरतनी चाहिए। किसी भी एक बुनियादी भाव को लेकर महान रचना लिखी जा सकती है।
कार्यक्रम के पश्चात सभी प्रतिभागियों ने मण्डला अवस्थित रज़ा कला वीथिका का अवलोकन एवं नर्मदा जी के सुरम्य तट का भ्रमण भी किया।