छत्तीसगढ मुख्यमंत्री विवाद: राहुल गांधी से 3 घंटे की मुलाकात में नहीं बनी बात, सोनिया करेंगी अंतिम फैसला

छत्तीसगढ मुख्यमंत्री विवाद: राहुल गांधी से 3 घंटे की मुलाकात में नहीं बनी बात, सोनिया करेंगी अंतिम फैसला

नई दिल्ली/रायपुर, प्रदेश में ढाई-ढाई साल के फार्मूले को लेकर चल रहे विवाद के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से भेंट की है। पार्टी दोनों नेताओं के बीच विवाद सुलझाने के लिए लगभग 3 घंटे तक चली बैठक में पुरी कोशिश की गई है। पर विवाद सुलझता नहीं दिख रहा है। बैठक के बाद भी टी एस सिंहदेव की नाराजगी बरकरार बताया जा रहा है। बतादें, राहुल करीब 3 घंटे तक चली इस बैठक के बाद पार्टी की तरफ से यह दिखाने की कोशिश की गई कि सबकुछ ठीक है। प्रदेश प्रभारी PL पुनिया ने कहा कि बैठक में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। बैठक में प्रदेश के सभी संभागों के विकास पर बात हुई। हालांकि, पार्टी सूत्रों का कहना है कि बैठक पुरी तरह से नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे पर केंद्रित थी। और राहुल गांधी ने अपने द्वारा किये गये कमिटमेंट पर अडिग रहे और दो टूक कह दिया की 2018 मे किये गये समझौते के तहत फार्मूले का पालन करना होगा।अब गेंद सोनिया के पाले में, राहुल का निर्णय पुनिया ने भूपेश को साफ कर दिया है ।

अंतिम फैसला पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी लेंगी

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी कई विकल्पों पर विचार कर रही है। इस बारे में अंतिम फैसला पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी लेंगी। दरअसल, छत्तीसगढ में सरकार के गठन के बाद से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव के बीच संबंध सहज नहीं रहे हैं। मुख्यमंत्री बघेल सरकार ने 17 जून को अपने ढाई साल पूरे कर लिए हैं। इसलिए, टी एस सिंहदेव समर्थक उन्हें तत्काल मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं।

टी एस सिंहदेव समर्थकों का दावा है कि सिंहदेव से ढाई साल बाद मुख्यमंत्री बनाने का वादा राहुल गांधी जी के द्वारा किया गया था। उनके करीबी नेताओं का कहना है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी नहीं सौपता है तो वह बघेल सरकार से अपने को अलग कर सकते हैं। इससे कम पर वह कोई समझौता नहीं करेंगे। अब इस बारे में निर्णय पार्टी हाईकमान को करनी है। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आदिवासी विधायकों का हाईकमान के सामने अपने पक्ष में शक्ति परिक्षण के रूप में परेड कराने की तैयारी में ,26 को दिल्ली दिल्ली कूच करने की तैयारी में आदिवासी विधायक अब यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा इसमें कितनी सच्चाई है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के बीच रिश्तों में उस वक्त तनाव और बढ गया, जब पार्टी विधायक बृहस्पति सिंह ने सिंहदेव पर हत्या कराने का आरोप लगाया। बृहस्पति सिंह का कहना था कि सिंहदेव उनकी और अन्य दो तीन विधायकों की हत्या करवाकर मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। बृहस्पति सिंह मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते हैं। हालांकि, बाद में उन्होंने अपने आरोप वापस ले लिए और सदन में माफी भी मांग लिए थे। उसके बाद अमरजीत भगत के द्वारा टी एस सिंह देव की बेइज्जती किया गया कांग्रेस भवन अम्बिकापुर का उद्घाटन में बाबा के द्वारा फीता काटने के बाद फीर से फीता लगाकर अमरजीत के द्वारा फीता बाबा के मौजूदगी में काटा गया । इससे पहले भी अनेकों बार बाबा की बेइज्जती भूपेश बघेल के द्वारा अनेकों माध्यम से कराया जा चुका है । जैसे नान के आरोपी आलोक शुक्ला को रिटायरमेंट के बाद संविदा नियुक्ति देकर बाबा के ही विभाग में सचिव नियुक्त किया गया है। जबकि नेता प्रतिपक्ष रहते बाबा ने आलोक शुक्ला के खिलाफ प्रधानमंत्री और केन्द्र सरकार को लेटर लिखकर सी बी आई जांच कराने और कडी कार्यवाही की मांग किया था ।उस समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने भी उस पत्र में अपना हस्ताक्षर कर उक्त मामले में अपना समर्थन करते हुए बाबा का साथ दिया था। आज उसी नान के आरोपियों को बाबा के खिलाफ स्तमाल किया जा रहा है। इस तरह से अनेको उदाहरण है बाबा को किनारे लगाने और बेइज्जती करने का इसलिए टी एस सिंह देव के द्वारा मुख्यमंत्री पद से नीचे कोई भी समझौता करने के पक्ष में नहीं है।

चुनाव के बाद सिंहदेव को नहीं मिला था मौका

दरअसल 2018 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस की ओर से भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की ओर से सीएम पद के लिए दावा किया गया था। तब बघेल को कमान मिली थी और कहा जा रहा था कि ढाई साल के बाद टीएस सिंह देव सीएम बनाया जाएगा। हालांकि केंद्रीय लीडरशिप या राज्य के किसी नेता की ओर से इस पर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया था। दिल्ली के लिए बघेल ने हवाई अड्डे पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्हें पार्टी हाईकमान की ओर से बुलाया गया है। इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि राज्य के विधायकों की मौजूदगी में सीएम परिवर्तन का फैसला हो सकता है।

जाने पुरा मामला क्या है
कल जब छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दो दिग्गज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और ढाई-ढाई साल के कथित फ़ॉर्मूले के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदार टीएस सिंहदेव दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात कर रहे थे तो छत्तीसगढ़ में पूरी कांग्रेस के साथ-साथ विपक्ष और सरकार के नौकरशाहों की नजर दिल्ली पर टिकी हुई थी। राहुल गांधी से यह मुलाकात करीबन 2 घंटा 50 मिनट तक चली।चर्चा खत्म होने के बाद दोनों नेताओं के अलावा राहुल गांधी के निवास पर मौजूद रहे छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीएल पुनिया भले ही पत्रकारों को चर्चा कर जो भी वजह बताई हो,इसके इतर विश्वस्त सूत्रों के हवाले से ये खबर है कि यह चर्चा पूरी तरह से ढाई-ढाई साल के CM को लेकर ही केंद्रित रहा और राहुल गांधी ने दोनों नेताओं भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव से इसे लेकर चर्चा ही नहीं कि बल्कि One-to-one कई दौर की चर्चा की ताकि छत्तीसगढ़ में इस मुद्दे को लेकर मचे बवाल का कोई आसान रास्ता निकाला जा सके।

राहुल गांधी ने तय किया था ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला

गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों के बाद साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 90 में से अप्रत्याशित रूप से 68 सीटों पर जीत हासिल करी।चूंकि चुनाव जब लड़ा गया था तो संयुक्त नेतृत्व में लड़ा गया था और पार्टी ने चुनाव में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा घोषित नहीं किया था। इस वजह से विधायक दल की बैठक में नेता चुने जाने के बजाये सारा कुछ पार्टी आलाकमान पर छोड़ दिया गया। कई दिनों तक इसके चार दावेदार दिल्ली में जमे रहे और इस बीच ताम्रध्वज साहू का नाम लगभग तय कर लिया गया।इससे आश्वस्त ताम्रध्वज साहू दिल्ली छोड़ रायपुर के लिए रवाना हो गए। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि इस निर्णय की खबर से अन्य दावेदार असहज महसूस करने लगे। घोषणापत्र बनाने से लेकर चुनाव की एक-एक रणनीति तय करने वाले टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल इस फ़ैसले के बाद अड़ गये और राहुल गांधी के साथ दुबारा बैठक  करने उन्हें राजी कर लिया। परंतु इस बैठक में भी पेंच वहां जा कर फंस गया कि इन दोनों में कौन और बैठक में फैसला हुआ कि भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के फॉर्मूले पर काम करेंगे और यह वही फॉर्मूला है जो आज पार्टी के लिए एक फांस बन गई है।