rajesh dwivedi
सतना। चुनाव के पूर्व विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में टिकट के दावेदारों की लड़ाई अब चरम पर पहुंच गई है। नागौद विधानसभा क्षेत्र में भी अब ऐसा ही नजारा देखा जा रहा है।

यूं तो क्षेत्रीय मतदाताओं ने नागेंद्र सिंह पर खासा विश्वास जताते हुए वर्ष 2003 व 2008 में उन्हें चुनाव जिताया मगर विधायक और फिर मंत्री बनकर उन्होंने जिस प्रकार से कार्यकर्ताओं और क्षेत्रवासियों की उपेक्षा की , उससे लगातार चुनाव जीत रही भाजपा जीत की पटरी से उतर गई और इस सीट पर वर्ष 2013 में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह ने कब्जा जमा लिया। सूत्रों की मानें तो उस दौरान भाजपा प्रत्याशी के हार की इबारत लिखने में पूर्व मंत्री ने प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस के नेता यादवेंद्र सिंह का साथ दिया था, ताकि नागौद में उनके राजनैतिक अस्तित्व को चुनौती न दी जा सके। अब एक बार पुन: चुनावी बिसात बिछी है, जिसमें परदे के पीछे से नागेंद्र सिंह अपने मोहरे चल रहे हैं और नागौद में संगठन व कार्यकर्ताओं को एक ऐसे दोराहे पर खड़ा कर रहे हैं जहां कार्यकर्ता भ्रमित हो रहे हैं। यदि क्षेत्रवासियों की मानें तो कहीं पूर्व मंत्री गुट की ओर से डॉ. रश्मि सिंह को प्रत्याशी बताया जाता है तो कहीं यह कह दिया जाता है कि वे स्वयं चुनाव लड़ेंगे, जिससे मतदाता उहापोह की स्थिति में है।
नागेंद्र से अधिक था गगनेंद्र का वोट प्रतिशत
यदि वर्ष 2003 व वर्ष 2008 में भाजपा प्रत्याशी रहे नागेंद्र सिंह को मिले वोट प्रतिशत की तुलना वर्ष 2013 के भाजपा प्रत्याशी गगनेंद्र सिंह को मिले वोट प्रतिशत से तुलना की जाय तो स्पष्ट है कि गगनेंद्र सिंह से नागेंद्र सिंह पीछे ही रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2003 व 2008 में नागेंद्र सिंह को क्रमश: 35149 (30.43 फीसदी)व 36249 (30.45 फीसदी) मत हासिल हुए थे जबकि गगनेंद्र सिंह ने 45815 (31.07फीसदी)मत प्राप्त किया था। बेशक पूर्व मंत्री की परदे के पीछे की राजनीति ने उनकी जीत की राह पर रोड़े अटका दिए थे, लेकिन बावजूद इसके गगनेंद्र ने नागौद क्षेत्र के कार्यकर्ताओं का साथ नहीं छोड़ा जबकि नागेंद्र सिंह नागौद के लिए विगत पांच सालों से अप्रवासी की तरह ही रहे हैं। इस बीच मंडलों का विस्तार हो या संगठनात्मक विस्तार ,गगनेंद्र सिंह केंद्रीय भूमिका में रहे हैं, जिसके चलते नागौद विधानसभा क्षेत्र के तकरीबन हर मंडल का कार्यकर्ता उनके पीछे खड़ा है। इस तथ्य को पूर्व मंत्री का गुट अच्छी तरह भांप चुका है बावजूद इसके टिकट के लिए नूराकुश्ती लड़ी जा रही है।