अपने अन्दर संस्कार को पहचानो और प्रकट करो, आत्मनिर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर बढो: श्रद्धेय श्री प्रणव पंडया जी
प्रांतीय युग सृजेता षिविर के दूसरे दिन सर्वप्रथम मंगल प्रवचन में श्री विष्णु भाई पण्ड्या जी ने युवाओं को तनाव मुक्त रहते हुए अपने लक्ष्य पर अडिग रहने हेतु कहा तभी उनका भविष्य स्वर्णिम हो सकता है। प्रातः 10ः00 बजे युवकों के प्रेरणाश्रोत्, दार्षिनिक, गायत्री के प्रवक्ता, सच्चे मार्ग प्रदर्षक तथा प्रवासी होकर जन् जन् में युवा ऊर्जा का प्रवाह करने वाले माननीय प्रणव पण्ड्या जी का कार्यक्रम संयोजक डाॅ. अजय तिवारी, और मुख्य प्रबंध ट्रस्टी डाॅ. अनिल तिवारी, ने पुष्पमाला, शाल श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर श्रद्धेय प्रणव पंण्डया जी का स्वागत किया। कार्यक्रम सुबह 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक चला रात्रि में दीप यज्ञ हुआ जिससे पूरा परिक्षेत्र दीपों की रोषनी से जगमगा उठा। मंच पर उपस्थित हुये श्री कालीचरण शर्मा जी के द्वारा उद्बोधन दिए गए। साथ ही श्री मनोज तिवारी जी के द्वारा गायत्री महायज्ञ अभियान का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। जिसमें उन्होने बताया कि हमारा सबसे नवीनतम् कार्यक्रम- पुनसवन संस्कार हैं जिसे डाॅ. अमिता सक्सेना जी के द्वारा चलाया जा रहा है।
अब तक 10,000 हजार घरों में यह संस्कार दे दिया गया है। 1058 बाल संस्कार शाला, 16,800 यज्ञ, अखण्ड ज्योति की स्थापना के साथ वृक्ष गंगा अभियान कार्यक्रम चलाए भी चलाए जा रहे हैं। तद्ोपरांत समय की मांग प्रखर प्रतिभा पर माननीय पण्ड्या जी ने अपना उद्बोधन दिया। आपने कहा- अन्तर्मुखी न होकर बर्हिमुखी हों। अपनी युवा क्षमता को पहचाने। केवल अपने अन्दर संस्कार को पहचानो और प्रकट करो, आत्मनिर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर बढो। यात्रा अनवरत् चलने वाली है। जिस दिन लक्ष्यबिन्दु मिल जाए तो वही जागरण है। युवाओं को गीता पढना चाहिए। गीता ही राष्ट्र का आधार है नवसृजेता इस गीता के द्वारा ही सबल बनेगंे। निराषा और अवसाद से कभी भी थककर नही बैठना चाहिए। निराषा से ही आत्महीनता आती है।
अपने आत्मनिर्माण से राष्ट्रनिर्माण होता है। प्रवचन से देष नहीं बदलता क्योंकि प्रवचन करने वाले का विचार उसके आचरण के अनुसार नहीं होता। साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा, सत्संग के साथ राष्ट्रवादी चिन्तन होना चाहिए। सभी धर्मो से सीखें जिन्हें आप ज्ञानी मानते हैं। अपने मन में आए हुए विषाद को त्याग दें इससे मनुष्य में नपुंसकता आती हैं। अर्थात् अपने सामथ्र्य से अपने कर्म को सुदृढ करें, मानवीय गरिमा के अनुरूप आचरण करें। केवल पेट प्रजनन ही नहीं अपितु राष्ट्रार्जन करें एवं राष्ट्र निर्माण करें। साथ ही आपने कहा अपना मूल्य समझे तथा स्वंय के महत्व को समझे हम ईष्वर की श्रेष्ठ निधि है विष्वास बदलना होगा हम किसी विषेष कार्य हेतु आए है। सर्वाधिक ताकत विचारों में है। सकारात्मक एवं क्रियात्मक विचार होना चाहिए तभी हम अपने अंदर अन्तर्निहित शक्तियों को विकसित कर सकते हैं एवं श्रेष्ठ बन सकते है। अपना उद्धार स्वंय करें, मन का भय शत्रु है वही हमारा मित्र है। सर्वश्रेष्ठ सलाहकार हमारा मन है। त्वरित लाभ नहीं दूरगामी परिणाम के लाभ को चाहे परमात्मा के श्रेष्ठ पुत्र हो हम ईष्वर की बगिया के श्रेष्ठ फूल है परिष्कृत मनःस्थिति को पहचानना होगा यही आध्यात्म है। मानव मन को स्वंय मंथन की आवष्यकता है। स्वंय जलकर जगत को प्रकाषित करें, जप तपस्या भक्ति सब जीवन की सौगात है, तभी निषा के बाद ही ज्ञान का सूर्योदय होता है।
तृतीय सत्र में षिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव श्री अतुल कोठारी जी ने कहा- युवा में अपूर्व क्षमता है इसलिए आवष्यकता है हम अपने को स्थिर बनाए, ध्यान तभी लगता हैै, जब मन स्थिर हो, ईष्वर सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वव्यापी है। देवता ईष्वर में उपाधि में अंतर है, सारा ऐष्वर्य जिसके पास है, वह ईष्वर है वो सर्वोच्चता है, तंरगे एकाग्र हो जाती है हमारी चंचलता तल्लीनता के बाद तन्यमयता में बदल जाती है। ध्यान आवष्यक है, प्रसन्नता आंतरिक है, सुख बाह्य है - सुख, हर्ष, इन्द्रिय, तृप्ति ये सभी आस्थाई है, जहाँ स्थाई प्रसन्नता न हो वहाॅ सुख कहाॅ, प्रसन्नता स्थायित्व लाती है। व्यक्ति में बुराई होती है पर हम उसको जानकर भी दूर नहीं कर पाते। धर्म आवष्यक है क्योंकि तभी न्याय मिमांसा है। सत्य ही धर्म है। कथन, कथानक बन जाता है कहानी में बहाव है, पूर्णत्व है। मध्यान् 3ः00 बजे माननीय प्रणव पण्ड्य जी के द्वारा स्वामी विवेकानंद विष्वविद्यालय द्वारा संचालित आयुर्वेदिक महाविद्यालय के भवन का लोकापर्ण किया गया। समूहषं समानांतर सत्र जिसमें आगामी योजनाओं की चर्चा श्री योगेन्द्र गिरि जी के द्वारा कि गई। संध्या 4ः00 बजे वृक्षारोपण एवं श्रमदान का कार्यक्रम, वृक्ष अभियान अंतर्गत किया गया। जिसके प्रभारी श्री मनोज तिवारी एवं श्री अमर धाकड थे। आकाष से उतार कर सितारों को सजाने का साहस मातृशक्ति द्वारा किया गया। जिसमें विभिन्न विषयों को लेकर आकृति बनाते हुए 11,000 दीपों से प्रांण को सजाया गया। यह भी एक मनोहारी सांस्कृतिक प्रस्तुत थी। आयुर्वेद भवन का लोकार्पण श्रद्धेय माननीय प्रणव पंडया जी, षिवदर्षन प्रसाद तिवारी, अषोक तिवारी, अजय तिवारी, अनिल तिवारी, अभिषेक दीपू भार्गव, अजय दुबे, ने का लोकार्पण किया।
कार्यक्रम में उपस्थित श्रीमति श्रीदेवी तिवारी, रेनु तिवारी, प्रतिभा तिवारी, अषोक तिवारी, अभिषेक भार्गव, अजय दुबे, अनुराग प्यासी, राजीव हजारी, विष्णु आर्य, अतुल मिश्रा, अरविंद तोमर, कमलेष साहू, राजेन्द्र षिलाकारी, जेपी पांडेय, अनिल ढिमोले, रविन्द्र अवस्थी, भगवत पाठक, महेषनेमा, सोनू दुबे, राहुल समेले, अजय मिश्रा, बाटू दुबे, राकेष तिवारी, नरेन्द्र घोषी सुरेन्द्र तिवारी, डाॅ. विनोद तिवारी, सहित 10 से 12 हजार लोगों की संख्या कार्यक्रम में उपस्थित रही। शांतिमंत्र के बाद दिवस का कार्यक्रम समाप्त हुआ। डाॅ. अनिल तिवारी ने अपील की है कि कल कार्यक्रम के अंतिम दिन समय सुबह 6 से 1 बजे तक युवा चेतना षिविर में विभिन्न कार्यक्रम होंगें समस्त धर्म प्रेमी बंधुओं से अपील है कि कार्यक्रम में समय पर उपस्थित होकर धर्मलाभ अर्जित करें। युवा चेतना षिविर के मीडिया प्रभारी अनिल दुबे ने बताया कि प्रतिदिन पंडाल का बढाया जा रहा है अपार जन समूह उपस्थित हो रहा है।