आदिवासी समाज सहित परंपरागत वन निवासियों को भी उनके अधिकार दिलाने का सिलसिला शुरू

रायपुर
लोकवाणी की 17वीं कड़ी नया बजट-नए लक्ष्य विषय पर बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि बस्तर में बदलाव की सबसे बड़ी जरूरत वहां के लोगों के स्वाभिमान को वापस लौटाने व स्वावलम्बन दिलाने की थी। आदिवासी समाज की जिंदगी को समझने की थी। सारे संसाधन उनके आसपास होते हुए भी उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा था। जिसकी शुरूआत हमने की। दो साल पहले तक मात्र 7 लघु वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य पर होती थी। हमने उसे बढ़ाकर 52 तक पहुंचा दिया।
तेंदूपत्ता संग्रहण को उनकी आय का मुख्य जरिया बताया जाता था। लेकिन वर्ष 2018 तक मात्र 2500 रू. प्रति मानक बोरा मजदूरी दी जाती थी। हमने आते ही इसे बढ़ाकर 4 हजार प्रति मानक बोरा कर दिया। बहुत बड़े पैमाने पर वन अधिकारों के दावे खारिज करते हुए बहुत बड़ी आबादी को बहुत बुनियादी अधिकारों से वंचित किया गया था। हमने निरस्त दावों की समीक्षा कराई और बहुत बड़े पैमाने पर वन अधिकार पट्टे दिए। इस तरह आदिवासी समाज ही नहीं बल्कि परंपरागत वन निवासियों को भी उनके अधिकार दिलाने का सिलसिला शुरू हुआ। हमने वनों की तरह ही ग्रामीण अंचलों में भी परंपरागत रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया। हमने दो सालों में एक ऐसी संरचना बना ली है, जिससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी सहित आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को तत्काल सहायता मिले। उनकी जेब में नकद राशि जाए, जो उनकी क्रय शक्ति के साथ उनका स्वावलम्बन बढ़ाए। साथ ही उनके भीतर उद्यमशीलता का विकास करे। हमारे प्रदेश में विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न, वनोपज तथा हाथ की कला से बहुत ही उम्दा, वस्तुएं बनाने की परिपाटी है। परंपरागत ज्ञान के रूप में ये चीजें आज भी जनमानस में है जिसे बढ़ाने के लिए हमने कुछ नए फैसले लिए हैं।
शहरी क्षेत्रों में पौनी-पसारी योजना की तर्ज पर एक कदम और आगे बढ़ते हुए अब ग्रामीण क्षेत्रों में रूरल इंडस्ट्रियल पार्क की स्थापना का प्रावधान नए बजट में किया गया है। छत्तीसगढ़ के स्थानीय कृषि उत्पादों जैसे ढेकी का कूटा चावल, घानी से निकला खाद्य तेल, कोदो, कुटकी, मक्का से लेकर सभी तरह की दलहन फसलें, विविध वनोपज जैसे इमली, महुआ, हर्रा, बहेरा, आंवला, शहद एवं फूलझाडू इत्यादि व वनोपज से निर्मित उत्पाद तथा टेराकोटा, बेलमेटल, बांसशिल्प, चर्मशिल्प, लौहशिल्प, कोसा सिल्क तथा छत्तीसगढ़ी व्यंजनों जैसी सभी सामग्रियों को एक ही छत के नीचे विपणन की सुविधा प्रदान की जाएगी। इसके लिए राज्य एवं राज्य के बाहर सी-मार्ट स्टोर की स्थापना की जाएगी, जो विशिष्ट छत्तीसगढ़ी ब्राण्ड के रूप में मशहूर होंगे। योजना के माध्यम से स्थानीय उत्पादकों को अधिक लाभांश दिलाने की व्यवस्था भी की जाएगी।