आरबीआई के पास रिजर्व पड़ी पूंजी पर तकरार, जानें क्या कह रही है सरकार
नई दिल्ली
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) का आरोप है कि सरकार अपना खजाना भरने के लिए उसके खजाने पर हाथ फेरना चाहती है। यह दोनों के बीच जारी तरकार के विभिन्न कारणों में एक बड़ा कारण है। वित्त मंत्रालय ने आरबीआई के इस आरोप को खारिज कर दिया और कहा कि आपातकालीन परिस्थिति के लिए आरबीआई को कितनी पूंजी की जरूरत है, इस पर विचार-विमर्श होनी चाहिए।
सरकार की सफाई
पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने सफाई दी कि वह आरबीआई के पास अतिरिक्त पड़े 3.6 लाख करोड़ रुपये हथियाना नहीं चाहती है। हालांकि, उसका यह भी कहना है कि वह केंद्रीय बैंक के लिए उचित आर्थिक पूंजी ढांचा (अप्रोपिएट इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क) तय करने को लेकर चर्चा कर रही थी। कितने रिजर्व की जरूरत?
सरकार जिस ढांचे की बात कर रही है, वह मूलतः यह है कि आरबीआई को सुचारू संचालन के लिए कितनी पूंजी की दरकरार है और उसे कितनी अतिरिक्त रकम सरकार को दे देनी चाहिए। इसका स्पष्ट मतलब है कि केंद्र ने भले ही किसी खास रकम (3.6 लाख करोड़ रुपये) की मांग की हो, लेकिन वह एक ढांचा तय करना चाहती है। अगर उसके मुताबिक ढांचा तय हुआ तो उसे 3.6 लाख करोड़ से भी ज्यादा रकम मिल सकती है।
ढांचे की जरूरत क्यों?
सरकार को लगता है कि आरबीआई के पास उससे बहुत ज्यादा रिजर्व पड़े हैं, जितने की दरकार संभावित वित्तीय आपातकाल से निपटने के लिए है। दुनियाभर, मसलन अमेरिका एवं यूके, के कुछ केंद्रीय बैंक अपनी कुल संपत्ति का 13 से 14 प्रतिशत रिजर्व के रूप में रखते हैं। वहीं, आरबीआई 27 प्रतिशत रिजर्व रखता है जबकि रूस जैसे कुछ देशों के केंद्रीय बैंक तो इससे भी ज्यादा रकम रिजर्व के रूप में रखते हैं। दरअसल, हर देश का केंद्रीय बैंक अतीत के अनुभवों एवं भविष्य के संभावित संकट के आधार पर जोखिम का आकलन करते हैं और उसके मुताबिक रिजर्व तैयार करते हैं।
अतीत में अर्थशास्त्रियों ने की वकालत
अतीत में भी अर्थशास्त्रियों ने आरबीआई के पास पड़ी अतिरिक्त पूंजी सरकार को दिए जाने की वकालत की थी, ताकि सरकार उसे उत्पादक कार्यों में लगा सके। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने इसकी वकालत की थी। उन्होंने सरकार को 4 लाख करोड़ रुपये दिए जाने की बात कही थी। 2013 में मालेगम समिति ने 1.49 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त रकम का आकलन किया था।
आरबीआई के पास कितना रिजर्व?
इस वर्ष 30 जून को आरबीआई ने अपने बैलेंस शीट में 36.17 लाख करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति का जिक्र किया था। रिजर्व के रूप में इसका 27 प्रतिशत 9.7 लाख करोड़ रुपये होता है। अगर वह इसे घटाकर 14 प्रतिशत तक लाता है, जैसा कि सरकार चाहती है, तो उसे रिजर्व के रूप में 5 लाख करोड़ रुपये की ही दरकार होगी। इसका मतलब है कि उसे सरकार को 4.7 लाख करोड़ रुपये सौंपने होंगे।
सारा विवाद अभी ही क्यों?
एक रिपोर्ट कहती है कि चूंकि 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक है, इसलिए विश्लेषकों का मानना है कि सरकार मतदाताओं को लुभाने के लिए सार्वजनिक हित की बड़ी परियोजनाओं पर भरपूर खर्च करके अर्थव्यवस्था को गति देना चाहती है। इसके लिए उसके पास पर्याप्त धन नहीं है।
आगे क्या?
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के पास दो विकल्प हैं: सरकार से हां में हां मिलाएं या पद से इस्तीफा दे दें। आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने विवादित व्याख्यान में सरकार के साथ इसी तरह के विवाद में अर्जेंटिना के केंद्रीय बैंक के प्रमुख द्वारा इस्तीफे का जिक्र किया। अर्जेंटिना सरकार ने विदेशी कर्ज चुकाने के लिए अपने केंद्रीय बैंक से उसके पास पड़े रिजर्व से पूंजी देने को कहा था।