इस सीट पर किन्नर की एंट्री से राजनैतिक दलों में हड़कंप, रोचक होगा मुकाबला

इस सीट पर किन्नर की एंट्री से राजनैतिक दलों में हड़कंप, रोचक होगा मुकाबला

इंदौर 
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को बड़ी चुनौती मिलने वाली है। पहली बार विधानसभा चुनाव में एक-दो नहीं बल्कि पांच किन्नर चुनौती दे रहे हैं। इंदौर-2 से बाला वेश्वर, दमोह - रेहाना, होशंगाबाद-पांची देशमुख, कटनी की बड़वारा - दुर्गा मौसी और अंबाह से नेहा चुनाव मैदान में हैं। इनमें सबसे ज्यादा खतरा मुरैना जिले की अंबाह विधानसभा सीट पर है, क्योंकि इस बार भाजपा, कांग्रेस और बसपा के साथ निर्दलीय नेहा ने भी ताल ठोकी है।नेहा के इस फैसले ने राजनैतिक दलों की दिलों की धड़कन को बढ़ा दी है। हालांकि यह पहला मौका नही है। इससे पहले देश की पहली किन्नर शबनम मौसी विधानसभा चुनाव जीती थी। वो सोहागपुर से विधायक चुनी गयी थीं, उसके बाद सागर में लोगों ने एक किन्नर पर भरोसा कर महापौर को चुना था।

दरअसल, मुरैना की अंबाह विधानसभा सीट पर पिछले चुनाव में बसपा को सफलता मिली थी।वर्तमान में बहुजन समाजवादी पार्टी से सत्यप्रकाश सखवार विधायक हैं। 2013 में उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार बंसीलाल को हराया था, वहीं कांग्रेस के अमर सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे। इस दफा बसपा ने फिर सत्यप्रकाश को मैदान मे उतारा है, तो भाजपा ने नए चेहरे के रुप मे पूर्व विधायक के पुत्र और जिला पंचायत के सदस्य गब्बर सखवार को मौका दिया है।वही कांग्रेस ने भी नये चेहरे कमलेश जाटव पर दांव खेला है।लेकिन इस बार समीकरण कुछ बदले है। क्षेत्र की जनता भाजपा, कांग्रेस और बसपा से काफी नाराज है, क्षत्रिय, बाह्मण और सवर्णों में आक्रोश है। उसका कारण एससी-एसटी एक्ट और दो अप्रैल की हुई हिंसात्मक घटना है।ऐसे में भाजपा प्रत्याशी का विरोध किया जा रहा है लोग उन्हें गांव तक में घुसने नही दे रही है, वही कांग्रेस प्रत्याशी को बाहरी कहकर कार्यकर्ता ही नकारने में लगे हुए है।ऐसे में बेडिया समाज की छारी जाति की नेहा पहली पसंद बनती जा रही है।यह इस जाति का ज्यादा प्रभाव है। यहां तक की युवा और महिलाओं में भी नेहा बाकी की तुलना में क्षेत्र में तेजी से उभर रही है।वही नेहा किन्नर माफ है बांकी सब साफ है नारे ने जोर पकड़ा हुआ है। इस नारे ने भाजपा, कांग्रेस समेत बसपा की नींद उड़ा दी है। पार्टी इस सीट को हथियाने के लिए नई नई रणनीतियां बनाने में जुटी हुई है, जनता को एक सुत्र में साधने के लिए भरसक प्रयास किए जा रहे है।

     सुत्रों की माने तो नेहा की दावेदारी के पीछे कांग्रेस-भाजपा के बड़े नेता का हाथ है। दोनों पार्टी के नेताओं को सबक सिखाने के लिए नेहा को मैदान में उतारा गया है।इसके साथ ही बेडिया समाज द्वारा एससी-एसटी एक्ट का असरदार विरोध भी कारण बन रहा है। ऐसे में नेहा की जीत पक्की मानी जा रही है।नेहा आज की लड़ाई में सबसे आगे है और वो दिन दूर नही जब अंबाह का इतिहास नेहा द्वारा लिखा जाएगा। वैसे भी यहां की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है इसलिए जाति के हिसाब से वोट बटोरने का चांस यहां कम है। अंबाह परपंरागत रूप से भाजपा की सीट रही है, लेकिन सरकार से खफा यहां की जनता ने पिछले चुनाव में बसपा प्रत्याशी को विधायक बना दिया। लेकिन इस बार भाजपा पूरी कोशिश किए हुए है, वही कांग्रेस-बसपा भी एडी से चोटी तक का जोर लगाए हुए है।खैर फैसला तो ११ दिसंबर को ही आएगा, लेकिन इसके पहले देश-प्रदेश के लोगों की निगाहें इस सीट पर आ टिकी है।