एमबीबीएस की ज्यादा फी से कर्ज के जाल में फंस रहे डॉक्टर
नई दिल्ली
प्राइवेट कॉलेजों से डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले स्टू़डेंट्स लोन लेकर महंगी फी के भार तले ऐसे दब जा रहे हैं कि पढ़ाई के बाद उसे चुकता करना जी का जंजाल बन जा रहा है। प्राइवेट कॉलेजों से एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों के लिए फी का गणित कुछ ऐसा बन रहा है कि पांचवे साल पढ़ाई पूरी कर निकलने के बाद उनपर 50 लाख रुपये तक का बोझ रह रहा है।
औसतन एमबीबीएस के एक प्राइवेट कॉलज की वार्षिक ट्यूशन फी करीब 10 लाख रुपये है। पांच सालों की पढ़ाई के दौरान हॉस्टल, मेस, लाइब्रेरी, इंटरनेट और परीक्षाओं में शामिल कुल खर्च को जोड़ लें तो यह 50 लाख रुपये के पार कर जा रही है। अब अगर 50 लाख के एजुकेशन लोन की ईएमआई की गणना करें तो यह हर महीने करीब 60 हजार रुपये तक आती है। कई राज्यों में डॉक्टरों की की सैलरी 45000 से लेकर 65000 रुपये तक होती है।
प्राइवेट डॉक्टरों की बात करें तो शुरुआती सैलरी इससे कम भी हो सकती है। ऐसे में डॉक्टरों के लिए ईएमआई चुकाना ही भारी मुसीबत का सबब बन जा रहा है। सरकार एक तरफ ज्यादा प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को खोलने की अनुमति दे रही है। दूसरी तरफ डॉक्टरों की कमी का हवाला देते हुए एमबीबीएस की सीटें भी बढ़ाई जा रहीं हैं। ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या अधिक फी सरकार के इस उद्देश्य को चोट नहीं पहुंचा रही? क्या ईएमआई चुकाने के बाद एक डॉक्टर के पास अपनी जीविका चलाने लायक पैसा बच रहा है?
कई बैंकों में बिना कोलैट्रल के 7 से 10 लाख से अधिक का एजुकेशन लोन नहीं दिया जा रहा। कोलैट्रल के रूप में अधिकतर घर या जमीन गिरवी रखी जाती है। इसकी मदद से संपत्ती की कीमत के बराबर का लोन मिल जाता है। सामान्तया 10-12 साल की अवधि वाले एजुकेशन लोन पर 10 से 12.5 फीसदी तक का ब्याज लगता है। अगर एजुकेशन लोन न हो तो कई अभिभावक अपने बच्चों की एमबीबीएस फी नहीं भर सकते।
सरकारी कॉलेजों में भी फी ज्यादा
2017 में टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा 210 प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के विश्लेषण में पाया गया कि करीब 50 की फी 10 से 15 लाख रुपये थी। 30 से अधिक कॉलेजों की फी इससे भी ज्यादा थी। कई सरकारी कॉलेजों की भी वार्षिक ट्यूशन फी काफी ज्यादा मिली। एमबीबीएस की पढ़ाई के 4.5 साल पूरे होने के बाद स्टूडेंट्स को एक साल की पेड इंटर्नशिर मिलती है। इस दौरान उनकी सैलरी 20 से 25 हजार रुपये/महीने तक होती है।