ओंकारेश्वर बांध विस्थापितों को 3 महीने में दी जाए खेती योग्य जमीन : सुप्रीम कोर्ट 

ओंकारेश्वर बांध विस्थापितों को 3 महीने में दी जाए खेती योग्य जमीन : सुप्रीम कोर्ट 

भोपाल 
सुप्रीम कोर्ट ने ओंकारेश्वर बांध विस्थापितों के हक में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की याचिका पर आदेश दिया है कि राज्य सरकार 3 महीने के अन्दर विस्थापितों को पुनर्वास के लिए खेती योग्य जमीन उपलब्ध कराए। आदेश में कहा गया है कि यदि विस्थापित मुआवजा व विशेष पैकेज का विकल्प लेता है तो सरकार को मुआवजे व पैकेज पर अतिरिक्त 90 फीसदी ब्याज देना होगा। नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने इस फैसले का स्वागत करते हुए सरकार से मांग की है कि जमीन के साथ पुनर्वास की अन्य सभी मागों को तत्काल पूरा किया जाए। 

नर्मदा आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता व आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आलोक अग्रवाल ने पत्रकार वार्ता में बताया कि ओंकारेश्वर बांध विस्थापित 12 साल से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। सन् 2008 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने विस्थापितों को जमीन देने का आदेश दिया, परन्तु सरकार उसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील में चली गयी। वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः जमीन देने का आदेश दिया और इस हेतु शिकायत निवारण प्राधिकरण के समक्ष जाने को कहा। 2300 विस्थापितों की याचिका पर शिकायत निवारण प्राधिकरण ने अपने सभी आदेशों में कहा कि सरकार ने पुनर्वास नीति का पालन नहीं किया है और यदि विस्थापित उसे दिए मुआवजे का आधा व विशेष पुनर्वास अनुदान वापस करता है तो उसे जमीन दी जायेगी। 700 विस्थापितों द्वारा पैसा वापस करने के बावजूद सरकार द्वारा मात्र 200 लोगों को जमीन दिखाई गई जो कि बंजर व अतिक्रमित थी। विस्थापितों ने इस जमीन को लेने से इंकार कर दिया।

करना पड़ा था जल सत्याग्रह 

पुनर्वास न करने के बावजूद 2012 में सरकार ने ओंकारेश्वर बांध में पानी का स्त1र 2 मीटर बढ़ा दिया गया। इसके खिलाफ नर्मदा आन्दोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता चितरूपा पालित और अनेक विस्थापितों ने ग्राम घोघलगाँव में 17 दिन पानी में रहकर जल सत्याग्रह किया था। इसके बाद सरकार को पानी कम करना पड़ा और तीन मंत्रियों की समिति बनाई गई। इस समिति की अनुशंसा पर 7 जून 2013 को 225 करोड़ रुपए का विशेष पैकेज दिया गया। इसके बाद फिर 2015 में आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल और अनेक विस्थापितों ने 32 दिन पानी में रहकर जल सत्याग्रह किया था।

कोर्ट में लगायी अवमानना याचिका

सरकार का पैकेज छोटे तथा हरिजन व आदिवासी किसानों के लिये पुनर्वास नीति व सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के अनुरूप नहीं था। सरकार ख़राब जमीन दिखाकर विस्थापित को मजबूर कर रही थी। इस कारण नर्मदा आंदोलन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की गयी। इस याचिका पर अपने फैसले में न्यायालय ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार 3 महीने के अन्दर विस्थापितों को पुनर्वास के लिए खेती योग्य जमीन उपलब्ध कराए। यदि विस्थापित मुआवजा व विशेष पैकेज का विकल्प लेता है तो सरकार को मुआवजे व पैकेज पर अतिरिक्त 15 फीसदी प्रति वर्ष के हिसाब से ब्याअज देना होगा। 6 वर्ष की अवधि के लिए यह राशि 90 फीसदी हो जाती है।  

विस्थापित 28 मार्च को करेंगे प्रदर्शन 

ओंकारेश्वर बांध प्रभावित ग्राम घोघलगाँव में प्रभावितों ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए इसे नर्मदा आन्दोलन की बड़ी जीत बताया। विस्थाुपितों ने तय किया है कि जमीन के साथ पुनर्वास से जुड़े अन्य मुद्दों जैसे घर, प्लाट, अनुदान आदि को लेकर तत्काल सरकार से बात की जाएगी। सरकार यदि बात नहीं करती है तो 28 मार्च को राजधानी भोपाल में विस्थापित प्रदर्शन करेंगे।