क्या होते हैं लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट, जिसे तबाह कर भारत बना सुपरपावर

क्या होते हैं लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट, जिसे तबाह कर भारत बना सुपरपावर

डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने 'मिशन शक्ति' के तहत लो-अर्थ ऑर्बिट में सैटेलाइट को तबाह कर दिया है। 'मिशन शक्ति' को 3 मिनट में पूरा किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश की सुरक्षा और तकनीकी उपलब्धि के मामले में एंटी-सैटेलाइट एक बड़ा मुकाम है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। हम आपको बता रहे हैं कि लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट क्या होते हैं।


डेटा कम्युनिकेशन में यूज होते हैं लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट
लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट सिस्टम का इस्तेमाल टेलीकम्युनिकेशन में किया जाता है। ये सैटेलाइट्स पृथ्वी की सतह से 650-1,600 किलोमीटर ऊपर होते हैं। इन सैटेलाइट का इस्तेमाल मुख्य रूप से ई-मेल, विडियो कॉन्फ्रेंसिंग और पेजिंग जैसे डेटा कम्युनिकेशन में किया जाता है। ये सैटेलाइट बहुत तेजी से मूव करते हैं और इन्हें स्पेस में फिक्स नहीं किया जाता है। ज्यादातर कम्युनिकेशन ऐप्लीकेशंस लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि लो-अर्थ ऑर्बिट में इन सैटेलाइट को प्लेस करने में कम एनर्जी लगती है। इसके अलावा, सफल ट्रांसमिशन के लिए इन सैटेलाइट्स को कम पावरफुल ऐम्प्लिफायर की जरूरत होती है।


लगातार बढ़ रही है इन सैटेलाइट की लोकप्रियता
लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट की हाई स्पीड के कारण इन सैटेलाइट से ट्रांसमिट होने वाला डेटा एक सैटेलाइट से दूसरे में जाता है, क्योंकि सैटेलाइट बहुत तेजी से ट्रांसमिशन स्टेशन की रेंज में आते-जाते रहते हैं। लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट को लगातार कवरेज उपलब्ध कराना होता है। स्टडी में खुलासा किया गया है कि इन सैटेलाइट्स की बढ़ती लोकप्रियता के कारण लो-अर्थ ऑर्बिट में काफी भीड़ हो गई है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ऑर्बिट में सैटेलाइट्स की संख्या को लगातार ट्रैक करती है।


सैटेलाइट्स की तीन कैटिगरी होती है। लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट, मीडियम अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट और जियो सैटेलाइट। लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट, जियो सैटेलाइट के मुकाबले छोटे होते हैं। लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट में नई टेक्नॉलजी और कॉन्सेप्ट को टेस्ट करना कहीं ज्यादा आसान और सुविधाजनक होता है। हालांकि, किसी सेलेक्टेड लोकेशन में फुल कम्युनिकेशन सर्विसेज देने के लिए 1,000 से ज्यादा लो-ऑर्बिट सैटेलाइट्स की जरूरत पड़ सकती है।