गाइडलाइन की खुलेआम उड़ाई जा रहीं धज्जियां, बढ़ रहा मौतों का आंकड़ा

भोपाल
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के उपचार के लिए सरकार ने तीन प्रकार के अस्पताल चिन्हित किए हैं। इन अस्पतालों में मरीजों के लक्षण और स्वास्थ्य के अनुसार भर्ती करने के आदेश दिए गए हैं। लेकिन राजधानी में ही इस गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा है। डेडिकेटेड कोविड़ हॉस्पिटल्स (डीसीएच) में एसिम्टोमेटिक (अति मंद लक्षणों वाले) मरीज भर्ती हो रहे हैं। नतीजा जरूरतमंद गंभीर मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। बीते हफ्तेभर से डीसीएच में बेड, वेंटिलेटर और आईसीयू की कमी होने लगी है।
सरकार ने बढ़ते संक्रमण के बीच आर्थिक बोझ कम करने और इलाज के लिए अस्पतालों की संख्या बढ़ाने के लिए निजी अस्पतालों को इलाज की मंजूरी दी है। सरकार की दलील है कि इन अस्पतालों में आर्थिक रूप से मजबूत लोग अपनी जांच और उपचार खुद के पैसे से कराएंगे। लेकिन अब भी मंत्री, विधायक और धनाढ्य लोग भी सरकारी खचे पर उपचार करा रहे हैं।
राजधानी के हमीदिया अस्पताल में कोरोना से मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इसकी दो बड़ी वजह सामने आई हैं। मरीज शुरुआती दौर में शहर के अस्पतालों में इलाज के लिए दौड़ भाग करते हैं। समय पर सही इलाज न मिलने से हालत बिगड़ जाती है। नतीजतन हमीदिया पहुंचने से पहले केस बिगड़ चुका होता है। दूसरी बात शहर के निजी अस्पताल कोरोना के गंभीर मरीजों को भर्ती करने के बजाए हमीदिया भेज देते हैं ताकि मौतों के मामले हमीदिया के नाम दर्ज हो। हफ्तभर पहले विदिशा के एक नेता को हमीदिया से निजी अस्पताल में शिफ्ट करने के लिए अधिकारियों और नेताओं के फोन पहुंचे। निजी अस्पताल की एंबुलेंस हमीदिया लेने पहुंची। लेकिन कोविड ब्लॉक के ग्राउंड फ्लोर में जैसे ही कोरोना संक्रमित नेताजी का आॅक्सीजन सेच्युरेशन बहुत कम दिखा। प्रायवेट अस्पताल की एंबुलेंस और स्टाफ रफूचक्कर हो गया।
स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना काल की शुरुआत में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अस्पतालों की वर्गीकरण किया था। इसके तहत गंभीर मरीजों के लिए डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल (डीसीएच) चिन्हित किए थे। भोपाल में चिरायु के साथ हमीदिया और एम्स अस्पताल शामिल हैं। वहीं कम लक्षण वाले या एसिम्टोमेटिक मरीजों के लिए कोविड केयर (सीसीसी) व कम गंभीर मरीजों के लिए डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर बनाए गए। इसके अलावा संदिग्ध मरीजों के लिए अलग-अलग जगहों पर क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाए गए थे। हालांकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ही इस वर्गीकरण की धज्जियां उड़ा रहे हैं।