छत्तीसगढ़ में मनरेगा में पंजीकृत 13 लाख मजदूर रह गए बेरोजगार

रायपुर
मजदूरों के पलायन पर हो-हल्ला के बीच एक सच यह भी है कि राज्य के 13 लाख मजदूरों को पंजीकरण के बाद भी मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना में भी रोजगार नहीं मिल पाया। बेरोजगारी की मार झेल रहे मजदूर ऐसी ही परिस्थिति में रोजगार के लिए पलायन को मजबूर हो रहे हैं।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में वर्तमान में 38 लाख परिवार रजिस्टर्ड हैं, लेकिन सिर्फ 25 लाख परिवारों को ही रोजगार मिल पाया है। बाकी बचे 13 लाख मजदूरों को रोजगार नहीं मिल पाया है। मनरेगा के तहत पिछले तीन सालों में किसी भी साल लगातार तीस दिन तक काम करने वाले मजदूरों को टिफिन देने की योजना बनाई गई है।
इस दायरे में 10 लाख 30 हजार मजदूर आ रहे हैं। अगस्त में इन मजदूरों को टिफिन दिया जाएगा। बाकी लोगों को न रोजगार मिला न टिफिन मिल पाएगा। हालांकि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अफसरों का दावा है कि काम मांगने वाले मजदूरों को काम दिया जा रहा है।
पिछले वर्ष भी बेरोजगार रहे थे 13 लाख मजदूर
प्रदेश में 2016-2017 में 38 लाख परिवारों के 82 लाख मजदूरों को मनरेगा के तहत रजिस्टर्ड किया गया। इसमें से मात्र 55 लाख मजदूरों को ही रोजगार मिल रहा है। 13 लाख बेरोजगार है।। जिन्हें मनरेगा में काम मिला उनमें भी महज एक लाख 72 हजार 904 मजदूर ही ऐसे हैं जिन्हें सौ दिन से ज्यादा काम मिल पाया। यह स्थिति तब है जबकि मनरेगा में रजिस्टर्ड मजदूरों को साल भर में 150 दिन का रोजगार मुहैया कराने का नियम है।
नागपुर की कंपनी करेगी टिफिन सप्लाई
अगस्त में मजदूरों को मिलेगा बांटा जाएगा। प्रदेश के दस लाख 30 हजार मजदूरों को टिफिन दिया जाएगा। टिफिन उन्हें ही मिलेगा जो पिछले तीन साल में कम से कम 30 या उससे ज्यादा दिनों तक काम कर चुके हैं। टिफिन के लिए शासन ने नागपुर की कंपनी को टेंडर दिया है। कंपनी राज्य के 146 जनपदों में टिफिन सप्लाई करेगी।
इनका कहना है
प्रदेश में पहली बार महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों को टिफिन दिया जाएगा। मजदूर काम मांगते हैं, तो उनको काम दिया जाता है, जो मजदूर रजिस्ट्रेशन के बाद भी काम मांगने नहीं आए तो उनको काम नहीं मिल पाया है।
-पीसी मिश्रा, सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा आयुक्त मनरेगा