टीपू सुल्तान की विरासत पर सियासत क्यों? 2019 पर बीजेपी की नजर

टीपू सुल्तान की विरासत पर सियासत क्यों? 2019 पर बीजेपी की नजर

 
नई दिल्ली 

कर्नाटक की कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन सरकार आज (10 नवंबर) टीपू जयंती मना रही है. बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठन कर्नाटक सरकार के इस कार्यक्रम का जोरदार विरोध कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के विरोध के सियासी मायने भी निकाले जाने लगे हैं.

कर्नाटक में कांग्रेस के तत्कालीन सीएम सिद्धारमैया ने 2015 में कर्नाटक में टीपू जयंती की शुरुआत की थी. हालांकि उन्होंने इसके पीछे कर्नाटक की विरासत को याद करने का तर्क दिया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचना उनका मकसद रहा.

बता दें कि 18वीं सदी के मैसूर के शासक टीपू सुल्तान को भारतीय मुस्लिम समाज अपना नायक मानता रहा है. उन्हें भारतीय राष्ट्रीय एकता के मिसाल के तौर पर पेश करता है. कांग्रेस ने भी टीपू जंयती मनाने के पीछे यही तर्क दिया है. बीजेपी इस आयोजन का शुरू से ही विरोध करती रही है. बीजेपी टीपू सुल्तान को कट्टर मुस्लिम शासक बताती है. बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठनों का कहना है कि टीपू सुल्तान ने मंदिर तोड़े और बड़े पैमाने पर हिंदुओं का धर्मांतरण करवाया.  

2015 में जैसे ही कांग्रेस ने इस जयंती को मनाने का ऐलान किया बीजेपी विरोध में कूद पड़ी और लगातार इसे कांग्रेस का तुष्टिकरण कहती रही है. मौजूदा राजनीति परिदृश्य में उस मुद्दे को उठाना बीजेपी की और बड़ी राजनीतिक मजबूरी हो गई है. साल 2017 में तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी सत्ता में नहीं आ सकी. भाजपा सबसे बड़ी पार्टी जरूर बनी, लेकिन 2012 में गंवाई सत्ता को वापस नहीं पा सकी.

इस चुनाव के बाद बीजेपी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस और जेडीएस एक साथ हो गये. राज्य में बीजेपी अकेली पड़ गई है. राजनीतिक पंडितों के मुताबिक रोजगार, भ्रष्टाचार, नोटबंदी, खेती, सीबीआई, आरबीआई जैसे मुद्दों पर केंद्र में घिरी बीजेपी के लिए धर्म की शरण में जाना बीजेपी की मजबूरी है. ये एक मात्र ऐसा मुद्दा है जिसमें बीजेपी को अपर हैंड हासिल है.

इधर राज्य में जेडीएस-कांग्रेस की सरकार बनने के बाद जनता पर इनकी पकड़ लगातार मजबूत हुई है. हाल के उपचुनाव के नतीजे इसके साक्षी है. यहां पर बीजेपी को पांच सीटों पर 4-1 से हार झेलनी पड़ी. इस उपचुनाव में बीजेपी बेल्लारी सीट भी हार गई. बीजेपी का पिछले 15 सालों से इस सीट पर कब्जा था. कांग्रेस केन्द्र में 10 साल तक सत्ता में रही लेकिन इस सीट को नहीं जीत पाई थी, लेकिन जेडीएस-कांग्रेस ने जब हाथ मिलाया तो बीजेपी का ये दुर्ग ढह गया.

विश्लेषक मानते हैं कि कर्नाटक से मिल रहे सियासी संकेतों ने बीजेपी को धार्मिक गोलबंदी पर मजबूर किया है. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले पूरे देश में धर्म की राजनीति जोरों पर है. केरल में सबरीमाला, उत्तर भारत में राम मंदिर को लेकर बीजेपी के तेवर सख्त हैं. वहीं कर्नाटक में बीजेपी अपनी सियासी जमीन तैयार करने के लिए टीपू सुल्तान जंयती के रूप में मुद्दा मिल गया है.

कुमारस्वामी ने बनाई दूरी

राज्य की सत्ता का सुख भोग रही जेडीएस हमेशा से इस आयोजन से दूर रही है. सूत्रों की मानें तो गौड़ा परिवार शुरू से ही इस आयोजन के पक्ष में नहीं था, लेकि गठबंधन सरकार की जटिलताओं ने उन्हें इस आयोजन को हरी झंडी देने पर मजबूर किया है. हालांकि सीएम एचडी कुमारस्वामी खुद इस आयोजन से दूर रहेंगे. बीजेपी ने इस मामले पर जेडीएस पर भी हमला बोला है. बीजेपी सांसद शोभा करंदलाजे ने कहा है कि टीपू जयंती का आयोजन कर सिद्धारमैया ने अपनी सत्ता खो दी अब ऐसा ही उनके साथ होने वाला है जो टीपू जंयती मनाने जा रहे हैं.