तिलक के शुभ मुहूर्त से लेकर पूजन विधि तक, जानें भाई दूज से जुड़ा हर रिवाज

कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 9 नवंबर, शुक्रवार को है। रक्षाबंधन की ही तरह यह पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। धार्मिक आस्था है कि इस दिन बहन के घर भोजन करने से भाई की उम्र बढ़ती है। इस दिन यमराज बहनों द्वारा मांगी गई मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं…
धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि पर देवी यमुना के भाई यमराज अपनी बहन से मिलने उनके घर आए थे। यमुना ने अपने भाई का सत्कार कर उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराया। प्रसन्न होकर यमराज ने अपनी बहन से वर मांगने के लिए कहा। तब देवी यमुना ने कहा कि भाई आप यमलोक के राजा है। वहां व्यक्ति को अपने कर्मों के आधार पर दंड भुगतना होता है। आप वरदान दें कि जो व्यक्ति मेरे जल में स्नान करके आज के दिन अपनी बहन के घर भोजन करे, उसे मृत्यु के बाद यमलोक न जाना पड़े। यमराज ने अपनी बहन की बात मानी और अपनी बहन को वचन दिया। तभी से इस तिथि को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।
इसलिए पड़ा इस पर्व का नाम भाईदूज
आम बोलचाल की भाषा में हिंदी कैलेंडर की द्वितीया तिथि को दूज कहते हैं। क्योंकि यह त्योहार भाई द्वारा बहन के घर आने की मान्यता से जुड़ा है, इसलिए बदलते समय के साथ इस त्योहार का नाम भाई-दूज पड़ गया। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ज्यादातर लोग भाईदूज के नाम से जानते हैं।
विधि
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यम और यमुना सूर्यदेव की संतान हैं। यमुना समस्त कष्टों का निवारण करनेवाली देवी स्वरूपा हैं। उनके भाई मृत्यु के देवता यमराज हैं। यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करने और वहीं यमुना और यमराज की पूजा करने का बहुत महत्व है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक लगाकर उसकी लंबी उम्र के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। स्कंद पुराण में लिखा है कि इस दिन यमराज पूजन करनेवालों को मनोवांछित फल मिलता है। धन-धान्य, यश एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है।