धनुष के लिए भटक रहा राष्ट्रीय तींरदाज

धनुष के लिए भटक रहा राष्ट्रीय तींरदाज

वाराणसी
अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालयीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में एक स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पदक तथा राष्ट्रीय जूनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में रजत पदक जीतने वाला बनारस का होनहार तीरंदाज शिवम केसरी अंतरराष्ट्रीय स्तर के एक अदद धनुष के लिए दर-दर भटकने को विवश है। अंतरराष्ट्रीय स्तर का धनुष खरीदने के लिए शिवम ने जूनियर नेशनल में रजत जीतने के बाद सन 2017 में तत्कालीन राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी को लिखित आवेदन उनके आवास पर जाकर दिया।

जून 2018 में दोबारा लिखित आवेदन दिया। दिसंबर 2018 में राष्ट्रीय अंतर विश्वविद्यालयीय मुकाबले में दो रजत और एक कांस्य जीतने के बाद वह फिर राज्यमंत्री से मिला, लेकिन अब तक सुनवाई नहीं हुई है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में बीपीएड प्रथम वर्ष के छात्र शिवम ने इसके अलावा प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय में होने वाली जन सुनवाई, क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी से लेकर जिला प्रशासन तक का दरवाजा खटखटाया है। हर जगह से उसे आश्वासन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिला।

शिवम कहता है, तीरंदाजी सीखने के लोभ में ही मैंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, लेकिन वहां संसाधन होते हुए भी उनके इस्तेमाल का मौका नहीं मिला। हार कर मैंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया। यहां प्रैक्टिस करने की इजाजत तो मिल गई है लेकिन संसाधनों का पूर्णत: अभाव है।

शिवम को अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुकाबलों की तैयारी के लिए इंटरनेशनल बो (धनुष) की जरूरत है, जिसकी शुरुआती कीमत ढाई लाख रुपये है। होटल में खाना पकाकर परिवार का गुजारा करने वाले उसके पिता विजय केशरी ने किसी तरह पैसे जुटाकर दस हजार वाला भारतीय धनुष शिवम को दिलाया है। यह सिर्फ राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए ही मान्य है।

शिवम के अंदर इस खेल में आगे बढ़ने और कुछ कर गुजरने का जज्बा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. ओमप्रकाश मिश्र ने भरा। शिवम के पड़ोस में रहने वाले प्रो. मिश्र ने उसकी प्रतिभा को पहचानते हुए उसका उचित मार्गदर्शन किया।

तीरंदाज  शिवम केसरी के अनुसार, वर्तमान में गुजरात विश्वविद्यालय के लिए सेवाएं दे रहे प्रो. ओमप्रकाश मिश्र की प्रेरणा और माता-पिता से मिल रहे प्रबल समर्थन ने मेरा हौसला बनाए रखा है। मैं विपरीत से विपरीत हालात में भी हार नहीं मानूंगा।