पलूशन: बेघरों का सवाल, हम भीतर कैसे रहें
नई दिल्ली
धर्म यादव पिछले एक हफ्ते से तेज बुखार है। सेंट्रल दिल्ली के एक नाइट शेल्टर के बाहर फुटपाथ पर बैठकर वह कहते हैं, 'दर्द सहा नहीं जाता।' उनकी आंखें लाल हैं। 52 साल के यादव दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं। वह शहर के सैकड़ों ऐसे लोगों में हैं जो सड़क पर ही सोते हैं। वह धूल और गाड़ियों से निकलता धुआं उनके लिए परेशानी का सबब रहता है। वह कहते हैं, 'रात को हालात और खराब हो जाते हैं।' धर्म कहते हैं, 'धुएं के कारण कई बार सांस लेना भी मुश्किल होता है। पर हम कहां जा सकते हैं? मेरे पास घर नहीं है।'
दिल्ली की हवा जैसे-जैसे खराब होती जा रही है, प्रशासन ने लोगों, खास तौर पर सांस की बीमारियों से जूझ रहे लोगों, को घर पर ही रहने की सलाह दी है। लेकिन यादव जैसे लोगों के लिए यह सलाह कोई मायने नहीं रखती। शहर में हजारों लोग हैं जो दिहाड़ी मजदूर, स्ट्रीट वेडर और रिक्शा चालक के तौर पर काम करते हैं। इनमें से कई लोग सड़कों पर रहते हैं। पलूशन से उनका कोई बचाव नहीं। अगर आप घर से बाहर रहते हैं तो पलूशन से बचने का कोई तरीका नहीं है। इससे उनके बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है। दिल और सांस की बीमारी का खतरा उन्हें सबसे ज्यादा होता है। इनमें से कई लोगों को रैनबसेरों में भी जगह नहीं मिलती है। ऐसे में उन्हें रात खुले आसमान के नीच काटनी पड़ती है।
शहरी अधिकार मंच के अशोक पांडे ने कहा, 'यहां तक कि अधिकारी भी खतरनाक एयर पलूशन से बचने के निर्देश जारी करते रहते हैं लेकिन राजधानी के बेघर लोगों के लिए कोई रास्ता नहीं है।' उन्होंने कहा ,'ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब रैनबसेरों में लोगों को फेफड़ों में संक्रमण और सांस की बीमारियां और अन्य परेशानियां देखी जाती हैं। कई लोग आंखों और गले में जलन की शिकायत करते हैं। रैनबसेरों में उन्हें चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है लेकिन महंगी दवाई के डर से वे इलाज करवाने से बचते हैं।'
ममता देवी की उम्र 35 साल है। वह उत्तरी दिल्ली के हैदरपुर के स्लम में रहती हैं। उनका कहना है कि उनके पति मोहन लाल एक कंस्ट्रक्शन मजदूर हैं। पलूशन की वजह से उनकी तबीयत खराब है। ममता बताती हैं, 'इस साल की शुरुआत में उनका फेफड़े की छोटी बीमारी का निदान किया गया। इसके इलाज के लिए काफी रकम चाहिए थी।' वह कहती हैं, 'पिछले कुछ हफ्तों से वह लगातार खास रहे हैं और उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही है। लेकिन मेरे पास उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने के पैसे नहीं है।'
जहां एक ओर आर्थिक रूप से सक्षम कुछ लोग एयर प्यूरिफायर खरीद रहे हैं वहीं जो लोग इसे नहीं खरीद सकते वे मास्क का सहारा ले रहे हैं। नरेश कुमार, दिल्ली में रिक्शा चलाते हैं। वह रूमाल से ही अपनी नाक और मुंह ढक लेते हैं। उन्होंने कहा, 'मैं रोज 200-300 रुपये मास्क पर खर्च नहीं कर सकता।'
दीपिका कुमारी एक एनजीओ के साथ काम करती हैं। उन्होंने कहा, 'कंस्ट्रक्शन मजदूर और अकुशल मजदूर लगातार धूल के संपर्क में रहते हैं इसलिए उनके लिए खतरा सबसे ज्यादा है। पटाखों के चलते इस सीजन में यह परेशानी और बढ़ जाती है।'