पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर आमने-सामने मोदी-इमरान

नई दिल्ली
11 दिसंबर 2015 को इमरान खान भारत के दौरे पर थे. उस दिन उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नई दिल्ली में मुलाकात की. गर्मजोशी भरी इस मुलाकात में भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने की प्रतिबद्धता दोहराई गई. तब इमरान खान एक पूर्व क्रिकेटर और पाकिस्तानी सांसद के तौर पर भारत दौरे पर थे. इमरान खान ने मोदी को पाकिस्तान आने का न्योता दिया और तब मुलाकात की ये तस्वीर काफी चर्चा में रही थी.
आज अलग हालात, अलग मंच
42 महीने बाद आज हालात अलग हैं, दोनों नेताओं की स्थितियां अलग हैं और अब मंच पर भी अलग है. अब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं, बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद नरेंद्र मोदी दूसरी बार चुनाव जीतकर, और भी मजबूत होकर उभरे हैं. 13-14 जून को किर्गिस्तान के बिश्केक में दोनों नेता आमने-सामने होंगे. मौका होगा शंघाई सहयोग संगठन यानी SCO सम्मेलन का. ये पहला मौका होगा जब दोनों नेता किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक साथ पहुंचेंगे.
कैसे पिघलेगी रिश्तों में जमी बर्फ?
आज दोनों देशों के रिश्ते हाल के दिनों में सबसे तल्ख हैं, रिश्तों में बर्फ जमी हुई है और पाकिस्तान की जमीन पर पल रहा आतंकवाद रिश्तों में सुधार की किसी भी कोशिश की राह में बाधा बना हुआ है. मुंबई, उरी, पठानकोट और पुलवामा जैसे न जाने कितने घाव पाकिस्तान के आतंकी भारत को दे चुके हैं और पाकिस्तानी हुक्मरान एक्शन के नाम पर दिखावे से ज्यादा कुछ करते नजर नहीं आते. ऐसे में भारत साफ कर चुका है कि आतंकवाद रुके बिना पाकिस्तान से अब कोई बातचीत नहीं होगी.
मोदी-इमरान के किर्गिस्तान के लिए रवाना होने से पहले पाकिस्तान की सरकार और खुद इमरान खान दो हफ्ते में तीन बार कोशिश कर चुके हैं कि भारत बातचीत की पेशकश को मान ले. लेकिन अब भारत पाकिस्तान के दोहरे चरित्र पर भरोसा करता हुआ नहीं दिखता.
इमरान-मोदी की मुलाकात के किसी प्लान से इनकार करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने साफ कहा-
'जहां तक मेरी जानकारी है, बिश्केक के एससीओ सम्मेलन में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ द्विपक्षीय बैठक की कोई योजना नहीं है.'
पठानकोट हमले के वक्त से वार्ता पटरी से उतरी
जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच वार्ता बंद है. इसके बाद हुए उरी हमले के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर नई नीति का एहसास दुनिया को कराया. जब भारतीय सैनिकों ने पीओके में घुसकर आतंकी ठिकानों को तबाह किया. फिर इसी साल 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में आतंकी हमला हुआ. जिसके जवाब में भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक कर पाकिस्तान को सीधा सबक सिखाया. दोनों देश युद्ध की कगार पर खड़े थे.
लेकिन विंग कमांडर अभिनंदन को तुरंत रिहा कर पाकिस्तान भारत की सीधी कार्रवाई को फिलहाल टालने में सफल रहा. लेकिन भारत अब ये खुला ऐलान कर चुका है कि आतंकी हमले होंगे तो पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई होगी. भारत की तरफ से स्पष्ट कहा जा चुका है कि पाकिस्तान के अपनी धरती पर मौजूद आतंकियों पर कार्रवाई करने से पहले वह वार्ता की मेज पर नहीं आएगा.
कितना ठोस है आतंकियों के खिलाफ पाकिस्तान का एक्शन?
पुलवामा आतंकी हमले के बाद भी पाकिस्तान ने एक्शन का वैसे ही दिखावा किया जैसे कि वह 2008 के मुंबई हमलों के वक्त कर चुका था. लेकिन आतंक के मदरसों पर तालबंदी और कुछ आतंकियों की नजरबंदी से आगे वह जा नहीं सका. इसलिए भारत ने बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों को एयरस्ट्राइक कर तबाह किया. साथ ही यूएन में अमेरिका-फ्रांस और ब्रिटेन के सहयोग से भारत आतंकी मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित कराने में सफल रहा. जबकि चीन पाकिस्तान से दोस्ती निभाने की नाकाम कोशिश में जुटा रहा.
हाफिज सईद की नजरबंदी और हाल में ईद पर उसकी खुली तकरीर पर रोक लगाकर पाकिस्तान ने भारत को आतंक के खिलाफ एक्शन का संदेश देने की पिछले हफ्ते कोशिश जरूर की है ताकि बातचीत के लिए भारत तैयार हो जाए लेकिन इतने से भारत के बातचीत की टेबल पर लौटने की गुंजाइश कम ही है.
दो हफ्ते में तीन कोशिशें
आर्थिक तंगी से गुजर रहा पाकिस्तान कर्ज के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गुहारें लगा रहा है. एफएटीएफ से बैन का खतरा अलग से उस पर बना हुआ है. यहां तक कि पहली बार पाकिस्तान ने अपना रक्षा बजट घटाने का ऐलान भी किया है. इसके अलावा भारत से बार-बार बातचीत शुरू करने के लिए भी वह गिड़गिड़ा रहा है.
- 26 मई को पाकिस्तान पीएम इमरान खान ने पीएम मोदी को फोन कर जीत की बधाई दी, और वार्ता का आग्रह किया.
- पाकिस्तान की तरफ से एससीओ सम्मेलन में दोनों शीर्ष नेताओं की बातचीत के दिए गए संकेत
- भारत ने कहा- एससीओ सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी की पाक पीएम से वार्ता की कोई योजना नहीं है
- 4 जून को पाक विदेश सचिव शाह महमूद भारत पहुंचे, इससे दोनों पीएम की मुलाकात की अटकलें लगीं
- 6 जून को पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने एस जयशंकर को चिट्ठी लिख वार्ता की फिर गुहार लगाई
- भारत ने फिर से कहा- आतंक के खात्मे से पहले पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत नहीं होगी
- 7 जून को इमरान खान ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख फिर बातचीत की गुहार लगाई.
अपनी चिट्ठी में इमरान खान ने पीएम मोदी को दोबारा सत्ता में आने पर बधाई दी. इमरान ने दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच बातचीत की पेशकश करते हुए सभी जरूरी मसलों समेत कश्मीर के मुद्दे को हल करने की बात कही. इमरान खान ने आगे लिखा-
'दोनों देशों के बीच बातचीत ही एकमात्र उपाय है, जिससे दोनों देशों के लोगों की गरीबी दूर हो सके. क्षेत्रीय विकास के लिए मिलकर काम करना काफी महत्वपूर्ण है. पाकिस्तान सभी समस्याओं का हल तलाशना चाहता है, जिसमें कश्मीर मुद्दा भी शामिल है.'
इमरान को शपथ में नहीं बुलाकर दिया झटका
2014 में शपथ ग्रहण में पीएम मोदी ने पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को न्योता दिया था. बाद में अचानक पाकिस्तान पहुंचकर पीएम मोदी ने सबको चौंकाते हुए शांति की कोशिशों को एक मौका दिया था. लेकिन पाकिस्तान की ओर से आतंकी हमलों के सिवा कुछ नहीं मिला. इसके बाद दूसरी पारी के लिए जब 30 मई 2019 को पीएम मोदी ने शपथ ली तो इमरान को नहीं बुलाकर बिम्सटेक के सदस्य देशों को बुलाकर पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने और पाकिस्तान को कड़ा संदेश पीएम मोदी ने दिया.
दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद पीएम मोदी सबसे पहले पड़ोसी देश मालदीव और फिर श्रीलंका गए. उसके बाद शंघाई सहयोग संगठन की मीटिंग में. एससीओ बैठक से इतर रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और तमाम सदस्य देशों के नेताओं से उनकी द्विपक्षीय मुलाकातें होंगी. लेकिन पाकिस्तान के पीएम इमरान खान से किसी भी मुलाकात की संभावना को भारत ने खारिज कर दिया है.
क्या है एससीओ समिट, जहां मोदी-इमरान समेत तमाम नेता जुटेंगे
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी शंघाई सहयोग संगठन-SCO का गठन 2001 में रुस, चीन, किर्गिज रिपब्लिक, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान, उजबेकिस्तान के राष्ट्रपतियों के द्वारा किया गया था. भारत को एससीओ में सदस्यता 2017 में मिली थी इसी दौरान पाकिस्तान को भी इस संगठन में सदस्यता मिली थी. भारत के लिए एससीओ एशिया और सोवियत क्षेत्रों में तेजी से उभरते देशों के साथ सहयोग बढ़ाने का एक मंच है तो पाकिस्तान को उसके साथी चीन की मौजूदगी में भाव नहीं देकर आतंकवाद पर कड़ा संदेश देने के लिए भी एक अच्छा कूटनीतिक अवसर.