फोन तो हैं दमदार लेकिन बैटरी फिर भी 'फुस्स', जानें क्या है वजह

फोन तो हैं दमदार लेकिन बैटरी फिर भी 'फुस्स', जानें क्या है वजह

सभी जानते हैं कि स्मार्टफोन्स की बैटरी लाइफ कई डिवेलपमेंट्स के बावजूद भी अच्छी नहीं हो पाई है। बड़ी बैटरी और एक्सटर्नल बैटरी बैकअप ऑप्शंस के साथ भी मॉडर्न स्मार्टफोन एक दिन से ज्यादा की बैटरी लाइफ नहीं दे पाते। वहीं, बैटरी के मामले में मौजूदा डिवाइसेज में से बेस्ट भी ज्यादा से ज्यादा दो दिन तक बिना डिस्चार्ज हुए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। फास्ट चार्ज टेक्नॉलजी बेशक बेहतर हो रही हो लेकिन यह भी सच है कि जहां एक ओर स्मार्टफोन बेहतर हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बैटरी लाइफ में सुधार नहीं हो रहा।


स्मार्टफोन्स के शुरुआती दिनों पर गौर करें तो पहले फोन्स की बैटरी लाइफ कहीं बेहतर हुआ करती थी। सिंगल चार्ज पर पुराने हैंडसेट्स की बैटरी कई दिनों तक चल जाया करती थी और फोन भी आज के मुकाबले सस्ते थे। यह सच है कि हैंडसेट स्मार्ट हो गए हैं और बेहतरीन फीचर्स से लैस होकर पुराने फोन के मुकाबले कहीं अडवांस हैं लेकिन उनके लिए जरूरी पावर सोर्स बैटरी पर हम ज्यादा काम नहीं कर पाए हैं। यह जरूरी सवाल है कि बैटरी परफॉर्मेंस को फोन्स की तरह ही बेहतर करने के लिए हमें जरूरी टेक्नॉलजी क्यों नहीं मिल पाई?


मूर के नियम से समझ पाएंगे थ्योरी
एरेगॉन कोलैबरेटिव सेंटर फॉर एनर्जी स्टोरेज साइंस के डायरेक्टर और बैटरी टेक्नॉलजी एक्सपर्ट वेंकट श्रीनिवासन ने इसके जवाब में The Verge से कहा कि इस समस्या का आधार साधारण सा है और मूर के नियम की मदद से बैटरी टेक्नॉलजी को समझना आसान हो जाता है। उन्होंने कहा, 'इसे समझें तो हमारे फोन समय के साथ न सिर्फ बेहतर हुए, उन्हें और पावर की जरूरत पड़ने लगी और यह जरूरत बैटरी के अडवांस होने के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ी।' उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है बैटरी टेक्नॉलजी में कोई सुधार नहीं हुआ लेकिन स्मार्टफोन्स डिवेलपमेंट के मुकाबले यह रफ्तार धीमी रह गई।


यूज हो रहा 90 के दशक का टेक
श्रीनिवासन ने बताया कि पांच साल पहले बैटरी को लेकर हम ऐसी स्थिति में थे कि उससे बेहतर कुछ नहीं किया जा सकता और हम कुछ हटा नहीं सकते। उन्होंने कहा, 'अब न सिर्फ बैटरी के इंटरनल कॉम्पोनेंट्स को कम जगह में रखकर उसका आकार छोटा किया गया है, बल्कि नए बैटरी मटीरियल्स से पुराने को रिप्लेस करके देखा जा रहा है लेकिन इसकी रफ्तार इंजिनियरिंग अडवांसमेंट के मुकाबले धीमी है, इसमें कोई दो राय नहीं।' अब भी स्मार्टफोन बैटरी में लिथियम कोबाल्ट का इस्तेमाल हो रहा है, जो 90 के दशक से बैटरी में प्रयोग किया जाता रहा है। ऐसे में अगर भविष्य में कोई नई टेक्नॉलजी आती है तो उसकी शुरुआत भी नए सिरे से होगी।