बलराम जयंती: संतान की लंबी आयु के लिए इस विधि से करें पूजा
भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग तरह और परंपराओं से बलराम जयंती का पर्व मनाया जाता है। ये त्योहार भगवान बलराम के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। बलराम जी भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे। देश के कुछ हिस्सों में ये त्योहार अक्षय तृतीया के दिन तो कुछ हिस्सों में श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। वहीं कुछ श्रद्धालु ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीने यानी मई और अप्रैल में बलराम जयंती मनाते हैं।
देश के उत्तरी राज्यों में बलराम जयंती का पर्व ललही चौथ या षष्ठी के रूप में भी लोकप्रिय है। इस दिन को गुजरात में रंधन छठ या बलदेव छठ भी कहा जाता है। वृद्ध और युवा वैष्णव, महिला और पुरुष इस दिन को बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ मनाते हैं।
इस शुभ अवसर पर श्रद्धालु बलराम जयंती पूजन का आयोजन करते हैं। बलराम जयंती के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है।
बलराम जयंती की तिथि
सूर्योदय - 21 अगस्त, 2019, प्रात: 6 बजकर 8 मिनट पर
सूर्यास्त - 21 अगस्त, 2019, सांय: 6 बजकर 51 मिनट पर
षष्ठी तिथि आरंभ - 21 अगस्त, 2019, प्रात: 5 बजकर 30 मिनट पर
षष्ठी तिथि समाप्त - 21 अगस्त, 2019, सांय: 7 बजकर 6 मिनट पर
बलराम जयंती का महत्व
हिंदू धर्म और पुराणों के अनुसार भगवान बलराम को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है। वह भगवान कृष्ण के बड़े भाई भी थे। वह बहुत शक्तिशाली थे और उन्होंने क्रूर राक्षस असुर धेनुक का वध किया था। हिंदू ग्रंथों के अनुसार उन्हें भगवान विष्णु का शेषनाग भी कहा जाता है।
वासुदेव और देवकी की सातवी संतान के रूप में बलराम जी ने जन्म लिया था। उन्होंने अपने जीवन में कई राक्षसों का वध किया था। बलराम जयंती पर बलराम जी की पूजा करने से स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है। बलराम जयंती पर पूजन एवं व्रत करने से शारीरिक मजबूती मिलती है। ये व्रत खासतौर से संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। कई महिलाएं अपने बच्चे की लंबी उम्र के लिए भी ये व्रत करती हैं।
बलराम जयंती के व्रत की विधि
बलराम जयंती पर सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूजा की तैयारी करें।
अब घर में बने पूजन स्थल को फूलों और पत्तियों से सजाएं।
भगवान कृष्ण और भगवान बलराम की मूर्तियों को नए वस्त्रों से सुसज्जित कर पूजन स्थल में स्थापित करें।
भगवान कृष्ण और भगवान बलराम को समर्पित सभी मंदिरों में बलराम जयंती का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु शाम तक अन्न का सेवन नहीं करते हैं। पंचामृत से भगवान कृष्ण और बलराम जी का अभिषेक किया जाता है।
भोग लगाने के लिए प्रसाद बनाया जाता है। इसे पहले भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर बाकी श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है।
इस दिन नृत्य, भजन और सांस्कृतिक गीतों का गायन भी किया जाता है।