बालाघाट में तीन महीने से मुखबिरों को नहीं मिल रहा मुखबिरी का पैसा
बालाघाट
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में नक्सलियों की मुखबिरी करने वाले सीक्रेट सोल्जर (Secret soldier) अब मुफलिसी के शिकार हो रहे हैं. उन्हें तीन महीने से मुखिबरी का पैसा नहीं मिला. ये ऐसे मुखबिर हैं, जिनकी सूचना पर पुलिस ने कई ईनामी नक्सलियों को मार गिराया. इतना ही नहीं, समय पर जानकारी मिलने से कई बड़ी घटनाओं को भी रोका गया.
तीन महीने से ज्यादा का समय हो चुका है और बजट न मिलने की वजह से पुलिस इन्हें मुखबिरी का पैसा नहीं दे पा रही. हैरत की बात है कि नक्सल प्रभावित बालाघाट (Balaghat) जिले को छोड़ दिया जाए, तो प्रदेश के दूसरे जिलों में मिलने वाला बजट लगातार जारी किया जा रहा है.
कमलनाथ सरकार पर आर्थिक संकट का असर अब मुखबिरी के फंड भी दिखने लगा है. नक्सलियों और उनसे जुड़े मूवमेंट की मुखबिरी करने वाले सीक्रेट सोल्जर को स्पेशल फंड मिलता है. इस फंड को नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में सक्रिय मुखबिरों को हर महीने दिया जाता है. जिला पुलिस मुखबिरी की राशि तय कर मुखबिरों को देती है लेकिन आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार ने पिछले तीने महीने से स्पेशल फंड का बजट जारी नहीं किया है. फंड नहीं मिलने की वजह से बालाघाट पुलिस के अधिकारी भी लाचार हैं. सूत्रों ने बताया कि जिला पुलिस के आला अधिकारी सीक्रेट सोल्जर के फंड को लेकर पुलिस मुख्यालय में कई बार गुहार भी लगा चुके हैं.
3 महीने से मुखबिरी की राशि नहीं मिलने की वजह से जिले की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था प्रभावित हो रही है. एक मुखबिर को न्यूनतम दस हजार रुपए और अधिकतम बीस हजार रुपए तक मुखबिरी की राशि हर महीने मिलती है. पुलिस मुखबिरों को अलग-अलग श्रेणी में रखकर हर महीने मुखबिरी की राशि देती है. नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में 350 से ज्यादा सक्रिय मुखबिर हैं. हर महीने जिला पुलिस को मुखबिरी की राशि के लिए 60 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक मिलते हैं.
नक्सलियों की मुखबिरी करना इतना आसान काम नहीं है. बीते दो सालों में मुखबिरी के शक में नक्सली चार लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं. इसलिए पुलिस की स्पेशल टीम से ही जिले में सक्रिय मुखबिर संपर्क में रहते हैं. पुलिस मुखबिरों को सीक्रेट सोल्जर कहती है. इनके अलग-अलग कोड रहते हैं. जुलाई में मुखबिर की सूचना पर बालाघाट पुलिस ने एक महिला समेत दो इनामी नक्सलियों को मार गिराया था. दोनों नक्सली टांडा एरिया कमेटी के सक्रिय सदस्य थे. उन पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र सरकारों ने कुल 14-14 लाख रुपए का इनाम रखा था.