बिहार में पूर्वी हवा के प्रभाव के चलते मौसम खुशनुमा 

बिहार में पूर्वी हवा के प्रभाव के चलते मौसम खुशनुमा 

पटना 
बिहार में पुरवा ने अपना दायरा बढ़ा दिया है। रविवार तक राज्य के उत्तरी भाग को छोड़कर शेष में पछुआ का प्रभाव था, लेकिन पिछले 24 घंटों में इसमें बदलाव आया है। अब पूरे सूबे में सतह पर और सतह के ऊपर पुरवा का प्रवाह बढ़ने से नमी की मात्रा बढ़ने लगी है। इससे अधिकतर शहरों के अधिकतम तापमान में एक से दो डिग्री की गिरावट आई है। पटना का पारा भी दो डिग्री नीचे आया है। मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार पुरवा की वजह से फिलहाल दो तीन दिनों तक तापमान में वृद्धि के आसार नहीं हैं। दोपहर में गर्मी की स्थिति रहेगी, लेकिन शुष्क हवाओं से लोगों को निजात मिली है। न्यूनतम तापमान में आंशिक बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी। 

 
 इधर, पिछले साल मानसून के बाद ही अब तक सूबे में बारिश बहुत कम हुई है। इस वजह से मखाना की खेती कर रहे किसानों की समस्या बढ़ गई है। कोसी इलाके के किसान मौसम के इस तेवर से परेशान हैं। किसान चिन्मय बताते हैं कि अमूमन मानसून के बाद बारिश कम होती है, लेकिन यह थोड़ी बहुत बारिश ही मखाना की खेती कर रहे किसानों के लिए वरदान की तरह है। पिछले साल नवंबर के बाद से ही बारिश नहीं हुई है। नतीजतन किसान खुद से मखाना का बीज तैयार नहीं कर सके। इस वजह से उन्हें बाजार से बीज खरीदने की मजबूरी हुई है। इस साल जनवरी से अबतक बारिश न के बराबर हुई है। खेत सूखे पड़े हैं और ताल तलैये का पानी लगातार सूख रहा है। मखाना की खेती करने वाले किसानों की सिंचाई के कृत्रिम साधनों पर निर्भरता बढ़ी है। लॉकडाउन के दौरान केंद्र ओर राज्य सरकार की ओर से मखाना की खेती को प्रोत्साहन दिए जाने के बाद पूर्णिया सहित राज्यभर में मखाना की खेती का दायरा तेजी से बढ़ा है। ऐसे में बारिश के न होने से किसान खासकर मखाना की खेती कर रहे किसानों की चिंता का बढ़ना वाजिब है। 

 अप्रैल आ गया है और बिहार में यह समय कालवैशाखी का है। अब तक पूरे सूबे में कालवैशाखी का प्रभाव दिखना शुरू हो जाता था। अचानक तेज हवा के साथ गरज तड़क वाले बादल आते थे और 30 से 35 किमी के दायरे में आंधी पानी की स्थिति बनती थी। इस बार मार्च बीत जाने के बाद भी ऐसी स्थिति न के बराबर बनी है।  बिहार सरकार के कृषि सलाहकार अनिल कुमार झा का कहना है कि बेशक इस बार सूबे में अक्टूबर से लेकर मार्च तक बारिश कम हुई है। ऐसा पश्चिमी विक्षोभों का प्रभाव कम होने से हुआ है। इसका प्रभाव कमोबेश सभी मौसमी फसलों पर हुआ है। मखाना भी इससे अछूता नहीं है।