मां का प्यार इन्हें आज भी खींच लाता है हिमाचल
ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि व्यास, हनुमान, कृपाचार्य, विभीषण व मारकण्डेय के साथ भगवान परशुराम भी चिरंजीवियों में से एक हैं। ये ऐसे जीवित पराक्रमी हैं जिनकी उपस्थिति आज भी पृथ्वी पर मानी जाती है। परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। इस साल परशुराम जयंती सात मई को मनाई जाएगी। इसी दिन अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जायेगा।
ये माना जाता है कि परशुराम प्रभु श्री राम की शख्सियत से प्रभावित होकर तपस्या के लिए हिमालय चले गए थे और आज भी वो वहां किसी गुप्त स्थान पर निवास करते हैं। परशुराम जितने ज्यादा पराक्रमी थे वो अपनी मां से उतना ही अधिक प्रेम भी करते थे। परशुराम जयंती के मौके पर मां के प्रति उनके इसी भाव के बारे में कथा के माध्यम से जानते हैं।
आज भी अपनी मां से मिलने आते हैं परशुराम
हिमाचल के जिला सिरमौर में रेणुका झील है जो पहले राम सरोवर के नाम से जानी जाती थी। इस झील का नाम परशुराम की माता रेणुका के नाम पर ही रखा गया है। इस स्थान पर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर पूर्णिमा तक पांच दिन का मेला लगता है और मान्यता है कि इस दौरान भगवान परशुराम हिमालय से यहां आकर अपनी मां से मिलते हैं। इस झील को रेणुका माता का स्थायी निवास माना जाता है।
माता रेणुका को लेनी पड़ी थी जल समाधि
ऐसा माना जाता है कि सहस्त्रबाहु ने कामधेनु पाने के लिए परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि के आश्रम पर हमला कर दिया था। ऋषि जमदग्नि ने गाय देने से इंकार किया और कहा कि ये गाय भगवान विष्णु ने उन्हें दी है। सहस्त्रबाहु ना सुनकर क्रोधित हो उठा और उसने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। इस घटना से माता रेणुका बहुत दुखी हो उठी और उन्होंने राम सरोवर में कूदकर जलसमाधि ले ली।
झील ने ले लिया महिला का आकार
पराक्रमी परशुराम को अपनी दिव्य दृष्टि से इस घटना का बोध हुआ और उन्होंने अपने फरसे से सहस्त्रबाहु की हत्या कर दी। उन्होंने अपनी शक्ति का प्रयोग करके अपने पिता का जीवन लौटाया। उन्होंने अपनी माता रेणुका को भी झील से बाहर आने का आग्रह किया लेकिन मां ने उस झील को ही अपना निवास स्थान मान लिया था। यही वजह है कि ये झील परशुराम की माता रेणुका के नाम से जानी जाती है और ये भी कहा जाता है कि झील का आकर भी एक महिला के समान हो गया।
इस झील पर हर साल होता है मां पुत्र का मिलन
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर पूर्णिमा के दौरान यहां लगने वाले मेले में कई श्रद्धालु आते हैं। माना जाता है कि परशुराम जी यहां अपनी मां से मिलने आते हैं। मां पुत्र के इस रिश्ते की लंबी आयु के लिए भक्त कामना करते हैं। साथ ही झील के पवित्र जल से स्नान भी करते हैं।