मुफ्त टेलिकॉम सर्विसेज पर राजीव प्रताप रूडी और रविशंकर प्रसाद में तकरार

मुफ्त टेलिकॉम सर्विसेज पर राजीव प्रताप रूडी और रविशंकर प्रसाद में तकरार

 
नई दिल्ली 

सत्ताधारी बीजेपी के एक सांसद ने बुधवार को संसद में टेलिकॉम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद एक टिप्पणी का विरोध किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि आपदाओं के समय केवल सरकारी दूरसंचार कंपनियां उपभोक्ताओं को मुफ्त सेवा उपलब्ध कराती हैं। प्रश्नकाल के दौरान सवालों का जवाब देते हुए प्रसाद ने कहा कि बाढ़ और साइक्लोन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय केवल बीएसएनएल और एमटीएनएल ग्राहकों को फ्री सर्विसेज देती हैं। 

बीजेपी के ही सांसद राजीव प्रताप रूडी ने टेलिकॉम मिनिस्टर के इस बयान का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अन्य प्राइवेट ऑपरेटर भी आपदाओं के समय फ्री सर्विसेज देती हैं। इस पर प्रसाद ने दावा किया कि प्राइवेट कंपनियां केवल 2 दिन फ्री सर्विस देती हैं, जबकि बीएसएनएल और एमटीएनएल आपदा का प्रभाव खत्म होने तक मुफ्त सेवाएं देती हैं।

रुडी का दावा, 'कॉल ड्रॉप होने के बाद भी पैसे काटती हैं सरकारी कंपनियां' 
रूडी ने यह दावा भी किया कि बीएसएनएल/एमटीएनएल अक्सर कॉल ड्रॉप होने के बाद भी पैसे काटती रहती हैं। उन्होंने कहा कि चूंकि ये सरकारी कंपनियां हैं, लिहाजा जनता को ये सही सुविधा नहीं देंगी तो लोग आखिर में सरकार को ही दोषी ठहराएंगे। विपक्ष के कुछ सदस्यों ने कहा कि इस मामले में सुधार के लिए रूडी को मंत्री बनाया जाना चाहिए। रूडी पिछली सरकार में राज्य मंत्री थे। टेलीकॉम मिनिस्टर ने कहा कि सरकार भी चाहती है कि सरकारी कंपनियों की वित्तीय हालत अच्छी रहे। 
प्रसाद ने कहा, 'सरकारी कंपनियां वित्तीय संकट से जूझ रहीं' 

प्रसाद ने लोकसभा में कहा कि भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) और महानगर टेलीकॉम निगम लिमिटेड (MTNL) जैसी कंपनियां 4जी सर्विसेज स्पेक्ट्रम की कमी और कर्मचारियों के वेतन पर ज्यादा खर्च होने से प्राइवेट कंपनियों का मुकाबला नहीं कर पा रही हैं। प्राइवेट टेलीकॉम कंपनियों की डेटा प्राइस भी काफी कम है। उन्होंने कहा कि वित्तीय परेशानियों से जूझ रही कंपनियों के रिवाइवल के प्लान तैयार किया जा रहा है। टेलीकॉम मिनिस्टर ने कहा, ‘बीएसएनएल और एमटीएनएल को मोबाइल सेगमेंट कड़ी चुनौटी का सामना करना पड़ रहा है। उनकी एंप्लॉयीज कॉस्ट काफी ज्यादा हो गई है और उनके पास 4जी सर्विसेज (बीएसएनएल के कुछ सर्कलों में छोड़कर) भी नहीं है। इसलिए वे निजी कंपनियों के सामने टिक नहीं पा रही हैं।’