राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित, 4 घंटे चली सुनवाई में क्या हुआ

नई दिल्ली
36 राफेल फाइटर जेट की खरीद मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई पूरी हो गई है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच में पौने चार घंटे लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया। एक तरफ जहां प्रशांत भूषण व अन्य ने कहा कि इस मामले में भारत सरकार के कहने पर भारतीय ऑफसेट कंपनी को चुना गया। भारतीय कंपनी को ऑफसेट का ठेका दिया गया जबकि इस कंपनी का कोई अनुभव नहीं था। वहीं केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा कि डील तय नियम के मुताबिक हुई है ये मामला एक्सपर्ट देख सकते हैं जूडिशियरी इसका आंकलन नहीं कर सकती।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि राफेल की खरीद में अनियमितता हुई है लिहाजा एफआईआर दर्ज कर मामले की कोर्ट की निगरानी में छानबीन की जाए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि पब्लिक डोमेन में आए बगैर कीमत पर बहस नहीं होगी। जो मामला पब्लिक डोमेन में होगा उस पर बहस होगी। कोर्ट के अंदर बुधवार को लाइव क्या हुआ, जानिए
याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा: केंद्र सरकार ने जो दस्तावेज दिए हैं उससे साफ है कि गंभीर किस्म का फ्रॉड हुआ है। जहां भी अवैध ऐक्ट हुआ है वहां से अपराध शुरू हो जाता है ऐसे में केस दर्ज किया जाए।
याची विनित ढांढा: कैबिनेट कमिटी का अप्रूवल 23 सितंबर 2016 को हुआ था लेकिन पीएम ने अप्रैल में ही बयान दिया था कि राफेल खरीदने जा रहे है पहले ही ऐसा बयान कैसे जारी हो सकता है।
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याची संजय सिंह: सरकार ने कहा है कि कीमत नहीं बताएंगे जबकि संसद में दो बार कीमत बताया गया। 18 मार्च 2018 को बयान दिया कि राफेल की कीमत 670 करोड़ है। जब बाद में विशेष तौर पर इस बारे में पूछा गया तो कहा कि कीमत 670 है जो बिना सर्विस के है। जबकि पहले दिए बयान में सर्विस के साथ कीमत बताई थी। 25 मार्च 2015 तक 126 एयर क्राफ्ट की डील थी। लेकिन दो हफ्ते में एकाएक उसे कम कर दिया गया और पुराने डील को कैंसल कर नया डील भारत सरकार ने कर दिया और 36 राफेल का सौदा किया गया। दस्तावेज खामोश है कि इसके लिए विभाग के प्रक्रिया की मंजूरी ली गई या नहीं। अगर 2001 में 126 एयर क्राफ्ट की जरूरत थी तो बाद में इसकी संख्या 200 या 300 होनी चाहिए थी। उसके कम कर 36 कैसे कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण: तीन मुद्दे हैं प्रक्रिया, ऑफसेट और कीमत। इंटर गवर्नमेंट अग्रीमेंट (आईजीए) के लिए जो शर्त हैं उसको भी संतुष्ट नहीं किया गया। 2007 में प्रक्रिया शुरू हुई थी 126 राफेल के खरीद की। इसके लिए एयरफोर्स ने जरूरत बताई थी। कैटगराइजेश प्रक्रिया है। ये तय हुआ कि कुछ विमान खरीदे जाएंगे यानी उड़ने वाले तैयार विमान लिए जाएंगे साथ ही तकनीक और अन्य तमाम सहूलियतें ली जाएंगी और एचएएल उसे बनाएगी। दसॉ को शॉर्टलिस्ट किया गया। 2012 से लेकर 2015 तक कीमत तय होने की प्रक्रिया चली और तय हुआ कि 18 विमान उड़ने वाले कंडिशन में देंगे और बाकी 108 के लिए तकनीक मुहैया कराएगी और एचएएल बनाएगी। 25 मार्च 2015 को पेरिस में प्रेस कॉन्फ्रेंस हुआ और देसॉ के साथ-साथ एचएएल के अधिकारी थे। तब कहा गया कि 95 फीसदी कीमत का मसला हल हो गया है और डील साइन होना बाकी है। दसॉ ने कहा कि वह एचएएल के साथ मिलकार काम करेंगे। लेकिन 15 दिन बाद 8 अप्रैल 2015 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश सचिव ने पीएम के फ्रांस दौरा से पहले कहा कि डील पूरी होगी। और 10 अप्रैल 2015 को बयान जारी किया गया कि 36 राफेल खरीदे जाएंगे।
कोई टेक्नॉलजी ट्रांसफर नहीं होगा और एचएएल बाकी का निर्माण नहीं करेगा। नए ऑफसेट क्लॉज के तहत पार्ट बनाने के लिए कंपनी तय की गई। 17 अप्रैल 2015 को फ्रांसिसी मीडिया ने कहा कि डील चेंज हो गया भारत सरकार चाहता था कि डील में अमुक भारतीय ऑफसेट कंपनी आए। कोई नहीं जानता कि डील क्यों चेंज हुआ। ऑफसेट पार्टनर के तौर पर रिलायंस डिफेंस को चुना गया। 28 मार्च को यानी 13 दिन पहले इसके लिए कंपनी बनाई गई। इस कंपनी को कोई रक्षा के मामले में अनुभव नहीं था फिर उन्हें उपकरण बनाने के लिए क्यों चुना गया। सरकार की सफाई थी कि डील इसलिए चेंज हुआ कि जल्दी विमान चाहिए था। लेकिन पहले की डील में 18 विमान अप्रैल 2019 में आता लेकिन नई डील में उसके बाद डिलवरी की बात है ऐसे में जल्दी के लिए डील चेंज हुआ ये बोगस दलील है। पीएम ने जॉइंट बयान में ये कैसे कहा कि 126 के बदले अब 36 राफेल खरीदे जाएंगे इस बयान का आधार क्या है।